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UP Panchayat Election 2021: पंचायत चुनावों को लेकर क्यों भिड़ रही हैं पार्टियां? जानिए बड़ी वजह

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लखनऊ: यूपी (UP) में 15 अप्रैल से त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव (UP Panchayat Election 2021) शुरू हुए थे. इनमें ग्राम पंचायत चुनाव, क्षेत्र पंचायत चुनाव और जिला पंचायत चुनाव शामिल थे.

ग्राम पंचायत चुनाव- इस चुनाव में गांव की जनता अपने ग्राम प्रधान को वोट कर चुनती है. इस चुनाव में जनता सीधे वोट करती है. इसके साथ ही गांवों में ग्राम पंचायत सदस्य भी चुने जाते हैं.
बीडीसी यानी क्षेत्र पंचायत सदस्य- इस चुनाव में भी जनता सीधे वोट करती है और बीडीसी सदस्यों को चुनती है.
ज़िला पंचायत सदस्य- इस चुनाव में भी जनता सीधे वोट करती है और ज़िला पंचायत सदस्यों को चुनती है.

ये तीनों चुनाव (UP Panchayat Election 2021) एक साथ होते हैं. जनता जब पोलिंग बूथ पर वोट डालने जाती है तो उसे एक साथ तीनों चुनाव का वोट डालना पड़ता है. यह चुनाव किसी पार्टी के सिंबल पर नहीं होता है. हालांकि इस बार बीजेपी और सपा ने अपने अपने प्रत्याशियों का समर्थन किया था.

ग्राम प्रधान और बीडीसी के आँकड़े तो नहीं मिल पाए थे कि किस पार्टी के समर्थन वाले कितने प्रधान और बीडीसी जीते थे. हालांकि 2 मई को जब ज़िला पंचायत सदस्य के चुनावी नतीजे आए तो उसमें बीजेपी कई ज़िलों में सपा से पिछड़ गई थी.

यूपी- ज़िला पंचायत सदस्य चुनाव (3050 सीटें)
जीते हुए उम्मीदवार
1. सपा समर्थित- 851 (+-10)
2. बीजेपी समर्थित- 618 (+-10)
3. BSP समर्थित- 320
4. RLD समर्थित- 68
5. कांग्रेस समर्थित- 65
6. अपना दल समर्थित- 47
7. अन्य एवं निर्दलीय- 1081 (बीजेपी और सपा के बाग़ी ज़्यादा हैं, अन्य छोटे दल भी शामिल)

जनता के चुनाव के बाद अब बारी आती है जीते हुए ज़िला पंचायत सदस्य और बीडीसी की. ज़िला पंचायत सदस्य हर ज़िले में अपना ज़िला पंचायत अध्यक्ष चुनते हैं. वहीं बीडीसी यानी क्षेत्र पंचायत सदस्य अपना ब्लॉक प्रमुख चुनते हैं. इन दोनों ही चुनावों में जनता सीधे वोट नहीं करती है.

यूपी में ज़िला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव (UP Panchayat Election 2021) 3 जुलाई को हुए. इस चुनाव में ज़िला पंचायत सदस्यों ने वोट किया. यूपी में यह चुनाव आमतौर पर सत्तापक्ष का चुनाव माना जाता है यानी जिसकी प्रदेश में सरकार उसके उतने ही ज्यादा ज़िला पंचायत अध्यक्ष. यह परंपरा इस बार भी जारी रही.

कुल ज़िले (सीटें)- 75
बीजेपी- 67
सपा- 5
आरएलडी- 1
निर्दलीय- 2

वहीं जब यूपी (UP) में सपा की सरकार थी तो सबसे ज़्यादा ज़िला पंचायत अध्यक्ष सपा के जीतकर आए थे. वर्ष 2015-16 में ज़िला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में 38 सीटें सपा निर्विरोध जीत गई थी. उसके बाद उसने जोड़तोड़ कर 27 सीटें और जीत ली. ऐसा करके उसने कुल 65 ज़िला पंचायत अध्यक्ष सीटें अपनी झोली में डाली थीं. उन चुनावों में बीजेपी को केवल 3 सीटें मिली थीं.

वहीं 2010-11 में जब यूपी में मायावती की सरकार थी तो बीएसपी 20 ज़िला पंचायत अध्यक्ष की सीट निर्विरोध जीती थी और कई ज़िला पंचायत अध्यक्ष बीएसपी के बने थे.

इसके बावजूद जिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव (UP Panchayat Election 2021) के नतीजों को विधानसभा चुनाव का सेमिफ़ाइनल नहीं कहा जा सकता है. इसकी वजह ये है कि वर्ष 2011 में सबसे ज़्यादा ज़िला पंचायत अध्यक्ष की सीटें जीतने वाली मायावती की 2012 में यूपी में सरकार चली गई. वहीं 2015-16 में 65 ज़िला पंचायत अध्यक्ष की सीटें जीतने वाली समाजवादी पार्टी की सरकार भी 2017 के चुनाव में चली गई.

अब बात करते हैं यूपी में ब्लॉक प्रमुख चुनाव (UP Block Pramukh Election 2021) की. यूपी में कुल 826 ब्लॉक हैं. राज्य में हज़ारों की संख्या में BDC यानि क्षेत्र पंचायत सदस्य चुनाव जीतकर आए हैं. हर ब्लॉक में बीडीसी अपना ब्लॉक प्रमुख चुनते हैं. इस बार भी यूपी में बीजेपी और सपा ने अपने समर्थन वाले ब्लॉक प्रमुख प्रत्याशी की घोषणा की है. इस चुनाव में भी जनता सीधे वोट नहीं करती है. इस चुनाव में BDC सदस्य ही वोट करते हैं.

यूपी में 8 जुलाई को ब्लॉक प्रमुख नामांकन था. ज़िला पंचायत अध्यक्ष की तरह यह चुनाव भी सत्ता, बाहुबल और धनबल का चुनाव माना जाता है. समाजवादी पार्टी ने आरोप लगाए कि बीजेपी के कार्यकर्ताओं ने पूरे यूपी में गुंडई की और उनके कई प्रत्याशियों का पर्चा दाखिल नहीं होने दिया. सपा ने यह भी आरोप लगाया कि सपा के प्रत्याशियों के पर्चे फाड़ दिए और उन्हें नामांकन करने से रोका गया.

हालांकि बीजेपी सपा के आरोपों को ख़ारिज कर रही है. इसी दौरान यूपी के कई ज़िलों से हिंसा की ख़बर आई. यूपी पुलिस ने भी माना कि कई ज़िलों में गड़बड़ी हुई. सपा चुनाव आयोग शिकायत करने पहुंची. यूपी सरकार ने लखीमपुर खीरी मामले में कार्रवाई भी की.

अब 10 जुलाई को ब्लॉक प्रमुख चुनाव (UP Block Pramukh Election 2021) का मतदान होगा. उन सीटों पर मतदान होगा, जहां पर निर्विरोध ब्लॉक प्रमुख नहीं बने हैं. हालांकि ख़बर आ रही है कि लगभग 200 ब्लॉक में बीजेपी निर्विरोध चुनाव जीत गई हैं. इन ब्लॉक को लेकर सपा ने चुनाव आयोग से शिकायत की और कहा कि हमारे प्रत्याशियों का पर्चा भी दाखिल कराएं और तब तब इन ब्लॉक का निर्वाचन रद्द करें.

ब्लॉक प्रमुख के पास कोई विशेष अधिकार नहीं होते हैं. इसके बावजूद यह सियासत की पहली सीढ़ी माना जाता है. ब्लॉक प्रमुख बनने वाले प्रत्याशी का इलाके में दबदबा बढ़ जाता है. इसके बाद वह विधानसभा चुनाव की दावेदारी करता है. यह चुनाव विशुद्ध प्रतिष्ठा और सम्मान का चुनाव माना जाता है. कई ब्लॉकों में तो पीढ़ी दर पीढ़ी एक ही खानदान के लोग ब्लॉक प्रमुख बनते चले आ रहे हैं.

ब्लॉक प्रमुख की कोई सैलरी नहीं होती है और ना ही कोई विशेष मानदेय. क्षेत्र पंचायत की जब बैठक होती है तो हर एक बीडीसी सदस्य को 500 रूपये का मानदेय मिलता है. बीडीसी सदस्य के तौर पर ब्लॉक प्रमुख को भी बैठक में शामिल होने पर 500 रूपये ही मानदेय मिलता है.

हालांकि केन्द्र सरकार के 13वें वित्त आयोग और राज्य सरकार की राज्य वित्त निधि से बजट ब्लॉक के लिए ज़रूर आता है. यह बजट भी कोई बहुत ज़्यादा नहीं होता है. दोनों योजनाओं का बजट अगर मिला दें तो भी मात्र 50-60 लाख रूपये का ही प्रतिवर्ष बजट ब्लॉक में आता है. इन पैसों से ब्लॉक प्रमुख कुछ इलाक़ों में विकास के कार्य कराते हैं.

बीजेपी अपना कार्यकर्ताओं को ब्लॉक प्रमुख बनाना चाहती है. इसके जरिए वह अपने नाराज कार्यकर्ताओं को एडजस्ट करना चाहती है. ब्लॉक प्रमुख बनने से उन्हें विकास कार्यों की कुछ शक्तियाँ मिल जाएंगी.

वहीं एसपी अच्छी तरह जानती है कि इस चुनाव (UP Block Pramukh Election 2021) में बीजेपी के ही ज़्यादा ब्लॉक प्रमुख बनेंगे, क्योंकि बीजेपी सरकार में है. इसके बावजूद एसपी हर ब्लॉक में इसलिए लड़ रही है ताकि मुख्य विपक्षी पार्टी के तौर पर यूपी में सपा दिखाई दे. इसीलिए ब्लॉक प्रमुख के चुनाव में पूरे यूपी में बीजेपी और सपा कार्यकर्ता आमने सामने दिखे. जिन ब्लॉक में सपा को नामांकन से रोका गया, वहां सपा के नेताओं और कार्यकर्ताओं ने प्रदर्शन किया.

ऐसा करके एसपी यह संदेश देना चाहती है कि यूपी में बीजेपी से सिर्फ़ अखिलेश यादव ही लड़ रहे हैं और बीएसपी-कांग्रेस कहीं नहीं हैं. इस चुनाव को लड़ने से बीएसपी अध्यक्ष मायावती मना कर चुकी हैं और कांग्रेस कहीं एकाध जगह दिखाई पड़ रही है.

यूपी (UP) विधानसभा चुनाव से 6 महीने पहले उत्तर प्रदेश की सियासत में पूरी तरह से उबाल है. अब देखना यही होगा कि 2022 के चुनाव में जनता किसके साथ जाती है.