आधुनिक भारत की पहली महिला शिक्षिका सावित्रीबाई फुले की आज 189वीं जयंती है. बतौर समाज सुधारक उनका नाम हमेशा इतिहास के सुनहरे पन्नों में लिखा जाएगा. मराठी में कविताएं लिखने वाली सावित्रीबाई का जीवन कठिनाइयों से भरा रहा. महिला अधिकारों की रक्षा और स्त्री उद्धार के लिए काम करते हुए उन्हें काफी विरोध सहना पड़ा. करीब 160 साल पहले उन्होंने जो ‘पाप’ किया, उसकी बदौलत भारतीय महिलाओं को नई पहचान मिली. महिलाओं को शिक्षा का हक दिलाने का श्रेय सावित्रीबाई को ही जाता है.
सावित्री का 3 जनवरी 1831 को हुआ था. महज 9 साल की उम्र में उनका विवाह 1840 में ज्योतिबा फुले से कर दिया गया. ज्योतिबा फुले को महाराष्ट्र और भारत में सामाजिक सुधार आंदोलन के लिए जाना जाता है. ज्योतिबा एक पति से बढकर सावित्रीबाई के संरक्षक, गुरु और समर्थक थे. पति के सहयोग से ही सावित्री बाई महिला उद्धार के अपने मिशन को साकार कर पाईं.
महिलाओं के लिए ‘पाप’ मानी जाती थी पढ़ाई
सावित्री का जीवन संघर्ष से भरा रहा है. जब वो स्कूल जातीं थी तो लोग उन्हें पत्थर मारते थे. गंदगी फेंकते थे. अंदाजा लगाया जा सकता है कि सामाजिक विषमताओं के बाद भी खुद को शिक्षित करना और उसके बाद बालिका विद्यालय खोलना कितना मुश्किल रहा होगा. 160 साल पहले महिलाओं के लिए पढ़ना सामाजिक पाबंदी और पाप था. अब ऐसे में जब वो बालिकाओं को पढाने के लिए जाती थी तो लोग उन पर गोबर, कीचड़, गंदगी, विष्ठा तक फेंका करते थे लेकिन देश की महानायिका ने तब भी हार नहीं मानी. सावित्री बाई एक साड़ी अपने साथ लेकर चला करती थीं. स्कूल पहुंचकर वो गंदी साड़ी बदल लिया करती थीं.
3 जनवरी 1848 में ज्योतिबा फुले और सावित्रीबाई, अलग अलग जातियों की 9 छात्राओं के साथ मिलकर बालिका विद्यालय खोलने में सफल हुए. उसके बाद एक साल के अंदर पांच और विद्यालय खोले गए. उनके प्रयासों के लिए तत्कालीन सरकार ने उन्हें सम्मानित भी किया.
सावित्री का मिशन छुआछूत मिटाना, विधवा विवाह रुकवाना, दलित महिलाओं को शिक्षित बनाना, महिलाओं की मुक्ति कराना था. उन्होंने 1852 में बालिकाओं के लिए विद्यालय की स्थापना की. वो भारत के पहले बालिका विद्यालय की पहली प्रधानाचार्या रहीं. इसके अलावा पहले किसान स्कूल की संस्थापक भी रहीं.