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ये कौन सा ऐप है जिससे मोबाइल नेटवर्क न होने पर भी चैट और कॉल कर सकते हैं?

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2014 की बात है. हॉन्ग-कॉन्ग में लोग सड़कों पर उतरे हुए थे. प्रोटेस्ट कर रहे थे. प्रो-डेमोक्रेसी प्रोटेस्ट. लोकतंत्र के समर्थन में विद्रोह. इसी प्रोटेस्ट के दौरान एक ऐप का नाम खबरों में हिलोरे लेने लगा. फायरचैट.

फायरचैट के ज़रिए चैट और कॉल की जा सकती है, मोबाइल नेटवर्क के बगैर. अगर किसी इलाके का मोबाइल नेटवर्क जाम कर दिया जाए, तब भी फायरचैट चलता रहेगा. लोग एक दूसरे को कॉल और मैसेज कर सकेंगे.

इंडिया में कई जगहों पर प्रोटेस्ट हो रहे हैं. सरकार ने कुछ इलाकों में मोबाइल नेटवर्क और इंटरनेट जाम कर दिया है. ऐसे में एक बार फिर फायरचैट का नाम सुनने को मिल रहा है.

इस आर्टिकल में हम आपको बताएंगे कि फायरचैट जैसे ऐप बिना मोबाइल नेटवर्क के कैसे काम करते हैं.

पहले समझ लेते हैं कि मोबाइल नेटवर्क कैसे काम करता है.

‘अरे! टावर आ रहा है क्या?’

जब हमारे यहां किसी को पूछना होता है, मोबाइल में नेटवर्क है या नहीं? तो वो बोलता है मोबाइल में टावर है या नहीं? इतना अंदाज़ा तो सभी को है कि मोबाइल नेटवर्क हमारे इलाके में लगे टावर की मदद से काम करते हैं. लेकिन एग्ज़ैक्टली टावर की मदद से नेटवर्क कैसे चलता है?

मोबाइल टावर तक डिजिटल सिग्नल इलेक्ट्रोमैग्नेटिक वेव में कोड होकर आते हैं. (सोर्स – रॉयटर्स)

नेटवर्क का मतलब होता है जाल. जानकारी का जाल. आपके मैसेज, कॉल और इंटरनेट वाला डेटा सब जानकारी ही है. नेटवर्क की मदद से जानकारी को एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाया जाता है. आपको एक जानकारी यहां से कहीं और पहुंचानी है. वो कैसे जाएगी?

मान लीजिए जानकारी एक गेंद है. और आपका फोन गेंद फेंकने वाली एक मशीन है. आपको ये गेंद 500 किलोमीटर दूर प्रिया के फोन पर पहुंचानी है. लेकिन आपका फोन एक कमज़ोर मशीन है. वो 500 मीटर दूर तक ही गेंद फेंक सकता है. तो फिर ये गेंद 500 किलोमीटर दूर प्रिया के घर कैसे जाएगी?

यहां काम आते हैं टावर. टावर में होती है पावर. टावर एक ऐसी मशीन है जो दूर तक गेंद को फेंक सकता है.

कई सारे टावर का एक नेटवर्क होता है. हर टावर एक षटकोण जैसे इलाके के लिए ज़िम्मेदार होता है. (सोर्स – विकिमीडिया)

आपका फोन सबसे नज़दीक मौजूद टावर को गेंद पास करता है. वो टावर अपने बगल वाले दूसरे टावर की तरफ गेंद फेंकता है. दूसरा टावर तीसरे टावर की तरफ. ऐसे करते हुए गेंद प्रिया के सबसे नज़दीक वाले टावर तक पहुंचेगी. और वो टावर गेंद को प्रिया के फोन की तरफ फेंक देगा.

ये प्रोसेस इतना सिंपल नहीं होता. बीच में और भी बहुत कुछ होता है. और ये सब बहुत फास्ट स्पीड से होता है. लेकिन अपने लिए इतनी समझ काफी है.

अब इस गेंद वाले गेम में सरकार को लाते हैं. कहने को तो टावर प्राइवेट कंपनियों के होते हैं. लेकिन सरकार का इन पर कंट्रोल होता है. किसी इलाके में सरकार को नेटवर्क जाम करना होता है, तो सरकार ये टावर वाला सिस्टम बंद करा देती है. और कोई टावर आपका उछाली गेंद को प्रिया तक नहीं पहुंचा पाता. अब गेंद प्रिया तक कैसे पहुंचे?

सरकार नोट बंद करा सकती है, फिर नेटवर्क तो बहुत छोटा खेल है. (सोर्स – रॉयटर्स)

यहां मोबाइल नेटवर्क की बहन की एंट्री होती है. बहन का नाम है मैश नेटवर्क. फायरचैट जैसे ऐप मैश नेटवर्क का इस्तेमाल करते हैं. ये मैश नेटवर्क क्या होता है?

‘ज्योत से ज्योत जगाते चलो’ – मैश नेटवर्क

तेरहवीं सदी में एक मराठी कवि हुए – संत ज्ञानेश्वर. 1964 में संत ज्ञानेश्वर पर एक फिल्म बनी. फिल्म में लता मंगेशकर ने एक गाना गाया है –

ज्योत से ज्योत जगाते चलो, प्रेम की गंगा बहाते चलो

मैश नेटवर्क इसी प्रिंसिपल पर काम करता है. टावरों के बगैर प्रिया तक गेंद पहुंचाने का एक दूसरा तरीका भी है. हमारे फोन में ब्लूटूथ और वाईफाई नाम की चीज़ें होती हैं. इनके ज़रिए हमारे फोन 50-100 मीटर तक तो गेंद फेंक सकते है.

मैश नेटवर्क में टावर जैसा कोई बिचौलिया नहीं होता. आपका फोन बगल वाले दूसरे फोन को गेंद पास करता है. दूसरा फोन तीसरे को. और ऐसे पास होते-होते गेंद प्रिया तक पहुंच जाएगी. मैश नेटवर्क में हर फोन डाकिए का काम करता है.

Source – Firechat

एक चीज़ ध्यान में रहे. प्रिया का फोन उस मैश नेटवर्क से जुड़ा होना चाहिए. मतलब प्रिया के फोन में भी यही ऐप होनी चाहिए. और आप से लेकर प्रिया में बीच में कई फोनों का मैश नेटवर्क में होना ज़रूरी है. मान लीजिए गेंद पहुंचते-पहुंचते बीच में दो फोनों के बीच ज़्यादा दूरी आ गई तो? मतलब अगर इतनी दूरी आ गई कि ब्लूटूथ और वाईफाई बगल वाले फोन तक ही गेंद फेंक पाए तो क्या होगा?

देखिए, ऐसा तो है नहीं कि मैश नेटवर्क वाले फोन एक ही जगह जमे रहेंगे. मनुष्य पेड़ तो है नहीं कि एक ही जगह टिका रहेगा. मनुष्य एक जगह से दूसरी जगह जाता है. और साथ में अपना फोन भी ले जाता है. जब एक जगह से कोई फोन दूसरी जगह जाएगा तो कहीं और के मैश नेटवर्क की कतार से उसका फोन कनेक्ट हो जाएगा. और जैसे ही वो कनेक्ट होगा, आपकी गेंद उन फोनों में पहुंच जाएगी. और वहां से वो प्रिया के फोन तक का रास्ता ढूंढेगी.

अगर मैश नेटवर्क के किसी फोन को इंटरनेट मिल गया तो बहुतई बढ़िया खेल होगा. मान लीजिए किसी इलाके में इंटरनेट जाम है. लेकिन उसकी बॉर्डर पर किसी फोन में नेटवर्क आ रहे हैं. नेटवर्क आ रहे हैं मतलब वो फोन गेंद उछालने में पास वाले टावर की मदद ले सकता है. गेंद मैश नेटवर्क वाली कतार से होते हुए इंटरनेट वाले फोन तक पहुंचेगी. ये इंटरनेट वाला फोन टावर की मदद से गेंद को कितनी भी दूरी तक पहुंचा सकता है. बिना इंटरनेट वाले इलाके से ये गेंद पूरी दुनिया के पास पहुंच जाती है.

मैश नेटवर्क में जितने ज़्यादा फोन होंगे ये उतना ही मज़बूत होगा. इसे असल मायने में लोकतंत्र का नेटवर्क कहा जा रहा है. क्योंकि ये अपनी ताकत लोक (लोगों) से ही जुटाता है. लोकतंत्र में सरकारें भी अपनी ताकत लोगों से जुटाती हैं, लेकिन ऐसा पांच साल में एक ही बार होता है.