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बिहार के इस गांव में प्याज की महंगाई का कोई असर नहीं, ये है वजह…

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बांका. प्याज की आसमान छूती कीमतों को लेकर पूरे देश में हाय तौबा है. बिहार में प्याज के नाम पर तो पॉलिटिक्स भी शुरू हो चुकी है. पप्पू यादव सरीखे नेता इस मुद्दे पर सरकार को घेरने की हर कोशिश कर रहे हैं. जाहिर है सस्ते प्याज के लिए मारामारी है. हालांकि बिहार का एक ऐसा गांव भी है जहां के लोगों को प्याज की महंगाई से कोई लेना-देना नहीं है.

दरअसल बांका जिला के धोरैया प्रखंड का कुमारडीह गांव के बारी टोला के लोग कई पीढ़ियों से प्याज का इस्तेमाल नहीं करते हैं. कुमारडीह मूल रूप से यादव बहुल गांव है. 1000 आबादी वाले इस गांव के बुजुर्ग राम यादव की मानें तो गांव में पुरानी मान्यता को मानते हुए लोग पूरी तरह से शाकाहारी हैं. यहां न तो प्याज का इस्तेमाल होता है और न ही लहसुन का. मांस और मदिरा के सेवन का तो सवाल ही नहीं.

पुरानी मान्यता ये है कि गांव में वंश वृद्धि नहीं होने पर एक संत ने शाकाहारी बनने की सलाह दी. इसके बाद यहां के बुजुर्गों ने कबीरपंथ अपना लिया. फिर प्याज, लहसुन सहित मांस का सेवन नहीं करने की परम्परा शुरू हुई जो आज तक कायम है. वहीं, यहां के अन्य बुजुर्ग कैलाश यादव कहते हैं कि वे अपने खेतों में प्याज उपजाते तो हैं पर उसका सेवन नहीं करते बल्कि बाजारों में बेचते हैं.

गांव की महिलाएं भी इस परम्परा को अपनाने में पुरुषों से पीछे नहीं हैं. यहां की पुतुल देवी, भगवानी देवी सहित कई महिलाएं बताती हैं कि शादी के बाद कुमारडीह आने पर पूरी तरह से शाकाहारी हो गईं. अपने मायके में प्याज, लहसुन का सेवन करने वाली महिलाओं ने यहां की परम्परा अपनाने में गुरेज नहीं किया.
गांव की लड़कियां शादी करने के बाद ससुराल में भी प्याज, लहसुन का सेवन नहीं करने की कोशिश करती हैं.

कुमारडीह गांव का बारी टोला पूरी तरह से कबीरपंथ को मानता है. कई पीढ़ी पूर्व गांव मे उन वंश वृद्धि नहीं होने पर इस पंथ से जुड़े लोगों की सलाह से शाकाहारी बनने का संकल्प लिया. कहा जाता है कि यहां वंश वृद्धि होने लगी जिसके बाद से आज भी ये परम्परा कायम है.