मेट्रो सिटी के तौर पर विकसित हो रहे रायपुर में अब देश भर के बोर्डिंग और इंटरनेशनल स्कूल प्रबंधकों की नजर पड़ी है। बड़े घरानों में बच्चों को देश के बेहतर स्कूलों की तलाश रहती है। राजधानी के एक निजी होटल में आठ और नौ नवंबर को ऐसे ही कुछ बोर्डिंग्स और निजी स्कूलों का प्रीमियर स्कूल एग्जीबिशन लगाया जा रहा है। पिछले सालों में प्रदेश के बच्चों को बाहर के बड़े बोर्डिंग स्कूल में पढ़ाने का ट्रेंड बढ़ा है। इन स्कूलों में फीस भी मोटी ली जाती है। पहली कक्षा के लिए ही न्यूनतम डेढ़ लाख से लेकर तीन लाख रुपये तक की फीस है।
जाहिर सी बात है ये स्कूल मध्यम वर्ग से अभी दूर हैं फिर भी प्रदेश के उच्च वर्ग के पैरेट्स को आकर्षित करने के लिए इस साल नवंबर से ही बोर्डिंग स्कूल प्रबंधकों ने बच्चों का दाखिला कराने के लिए मशक्कत शुरू कर दी है। वहीं रायपुर के निजी स्कूलों में जनवरी से पहली कक्षा में दाखिले की प्रक्रिया शुरू होगी।
पैरेंट्स से करते हैं सीधी बात
जब भी बोर्डिंग स्कूल की बात आती है तो एक्सपर्ट भी सलाह देते हैं कि बोर्डिंग स्कूल भेजते समय पैरंट्स को दूरदर्शिता दिखानी चाहिए। यह बच्चों के लिए कितना फायदेमंद होगा दाखिला कराने से पहले पैंरट्स होने के नाते उनकी जिम्मेदारी होती है कि बच्चे के फ्यूचर से संबंधित फैसला लेते समय वे इसकी पड़ताल भी कर लें।
यह होता है बोर्डिंग स्कूल का प्रभाव
दावा किया जाता है कि बोर्डिंग स्कूल का बच्चों पर अधिक प्रभाव पड़ता है वे अपेक्षाकृत अधिक अनुशासित होते हैं। इससे उनके जीवन और कॅरियर में भी प्रभाव पड़ता है। पढ़ाई में ध्यान केंद्रित होता है। बच्चों में हर काम को खुद से करने की आदत डाली जाती है, इसलिए वे अधिक जिम्मेदार बनते हैं।
कुछ हैं नकारात्मक पक्ष भी
बोडिर्ंग स्कूल का नाम आते ही बहुत सारे लोग इसके नकारात्मक भी सोचते हैं। पैरेंट्स सोचते हैं कि बच्चा उनसे दूर रहेगा। बच्चों से दूसरे लोग सख्ती से पेश आएंगे। उन्हें अति अनुशासित माहौल में रखा जाता है।
देशभर में ये बड़े बोर्डिंग स्कूल
राजकुमार कॉलेज, रायपुर
दून स्कूल, देहरादून
सेंट मैरी हाई स्कूल, माउंट आबू
डलहौजी पब्लिक स्कूल, डलहौजी
बिशप कॉटन स्कूल, शिमला
स्टेप बाई स्टेप इंटरनेशनल स्कूल, जयपुर
वेलहम गर्ल्स स्कूल, देहरादून
राजकुमार स्कूल, राजकोट
मायो कॉलेज, अजमेर
एक्सपर्ट व्यू : मार्केटिंग बढ़ी
बोर्डिंग स्कूलों के लिए मार्केटिंग ट्रेंड पहली बार देखने को मिल रहा है, नए स्कूलों को पहले मशक्कत करनी पड़ती है। – अविनाश सिंह, प्रिंसिपल, राजकुमार कॉलेज