Home जानिए हज यात्रा के वो राज, जो केवल एक हाजी ही जानता है

हज यात्रा के वो राज, जो केवल एक हाजी ही जानता है

83
0

हज के बारे में उसके इतिहास से शुरूआत करते हैं. मुस्लिम कौम में तो बच्चे-बच्चे को हज के बारे में पता होता है, पर अन्य धर्मों के लिए यह रहस्य ही है कि आखिर मुस्लिमों का इकलौता ​तीर्थ क्यों है?तो जनाब हज के बारे में इस्लामिक किताबों में एक किस्सा दर्ज है. जिसके अनुसार करीब 4 हजार साल पहले मक्का कुछ नहीं था. न वहां कोई काबा था, न ही अल्लाह का नामो निशां. उस वक्त धरती पर अल्लाह के बंदे पैग़ंबर अब्राहम थे. उनकी दो पत्नियां थीं. सारा और हाजिरा. हाजिरा का एक बेटा था इस्माइल. ये सभी फिलस्तीन में रहते थे जबकि धार्मिक प्रचार के लिए पैग़ंबर अब्राहम अरब में थे.वे चाहते थे कि दोनों पत्नियों के बीच मनमुटाव न हो, इसलिए हाजिरा और इस्माइल को अरब बुला लिया जाए. पर जब उन्हें यह ख्याल आया, तब अल्लाह का फरमान उनके पास पहुंचा. अल्लाह का हुक्म था कि उन्हें अपनी किस्मत पर छोड़ दो. पैग़ंबर अब्राहम ने उन्हें खाने पीने का कुछ सामान पहुंचाया और फिर अल्लाह के आदेशानुसार उन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया.सामान कितने दिन चलता, एक वक्त जब सब खत्म हो गया और दोनों मां-बेटे भूख से तिलमिलाने लगे तो वे सफ़ा और मारवा पहाड़ी से होते हुए नीचे उतरे. यहां आकर हिम्मत जवाब दे गई और हाजिरा ने अल्लाह को याद किया.इस्माइल ने तिलमिलाहट में अपना पैर जमीन पर पटका और तभी वहां से पानी का एक गुबार फूट पड़ा. मां बेटों ने अपनी प्यास बुझाई और फिर उसी पानी को सहेजकर उसका व्यापार शुरू कर दिया. कुछ ही दिनों में उनका ​जीवन पटरी पर आ गया. जब पैग़ंबर अब्राहम उनके पास लौटे तो परिवार को खुशहाल पाया.इसके बाद पैगंबर ने उस स्थान पर अल्लाह के नाम का एक तीर्थ बनाने का निश्चय किया. उन्होंने बेटे इस्माइल की मदद से एक छोटा-सा घनाकार निर्माण किया. इसके भीतर दो पिलर बनाएं गए. इसे काबा कहा गया.माना जाता है काबा का पवित्र जल जिसे ‘जमजम’ कहा जाता है, यह वही पानी का ‘स्रोत’ है.

इस तरह काबा बन तो गया, पर इसका प्रचार उस स्तर पर नहीं हुआ. वक्त ढलता गया और अरब में अन्य धर्मों के अनुयायियों ने दस्तक दी. यहूदियों के यहां पहुंचने के बाद मूर्ति पूजा शुरू हुई. तब काबा और उसके आसपास भी कई मूर्तियों की स्थापना करवाई गई.सालों बाद जब अल्लाह ने पैगंबर मोहम्मद को धरती पर भेजा, तो उन्होंने एक बार फिर इस्लाम की आवाज बुलंद की. नतीजा यह हुआ कि अरब के मक्का शहर में उनके कई दुश्मन तैयार हो गए जो उनकी हत्या की योजना बना रहे थे.साल 628 में जब पैगंबर मोहम्मद को एहसास हुआ कि मक्का उनके लिए सुरक्षित नहीं है, तो वे अपने 1400 अनुयायियों के साथ पैदल यात्रा करते हुए मदीना पहुंचे. यहां आकर उन्होंने पैगंबर अब्राहम के स्थापित किए हुए काबा की फिर से देख-रेख शुरू की. सभी ​मूर्तियों को हटा दिया गया, चूंकि इस्लाम में अल्लाह की कोई मूरत नहीं.मदीना में ही उन्होंने प​हली मस्जिद का निर्माण किया. इस तरह पैगंबर मोहम्मद की यात्रा पहली हज यात्रा कहलाई और इसके बाद हज को हर मुसलमान के लिए अनिवार्य घोषित कर दिया गया. काबा के पास तीन खंबे के रूप में शैतान भी है. कहा जाता है कि जब अल्लाह के आदेश पर पैगंबर अब्राहम ने अपने बेटे को प्यास तड़पने दिया तब शैतान उनके पास आया.उसने उन्हें अल्लाह के हुक्म से भटकाने की कोशिश की. उन्होंने शैतान को भगाने के लिए उस पर पत्थर फेंके. काबा के पास ही वह स्थान है, जहां शैतान के संकेत के तौर पर तीन पिलर है और हाजी उस पर पत्थर फेंकते हैं.

अब आपको बताते हैं हज यात्रा के पांच दिन के वो राज जो केवल हजी ही जानते हैं. इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक हज यात्रा 12वें महीने ज़िलहिज या ईद-उल-अज़हा की 8 से 12 तारीख के दौरान होती है. यात्रा शुरू करने से पहले यात्रियों को एहरम पहनना होता है.यह बिना सिलाई वाले सफेद कपड़े होते हैं. इस पोशाक को पहनने के बाद औरत-मर्द, गरीब-अमीर का भेद खत्म हो जाता है. यह पोशाख इस बात का संदेश है कि अल्लाह की नजर में सभी एक हैं.पांच दिन की इस यात्रा के पहले दिन हज यात्री सुबह की नमाज अदा कर मक्का से 5 किलोमीटर दूर मीना पहुंचते हैं. यहां दिन की बाकी चार नमाजें पूरी की जाती हैं. दूसरे दिन यात्री मीना से लगभग 10 किलोमीटर दूर अराफात की पहाड़ी पर पहुंचते हैं.यहां जाए बिना हज पूरा नहीं माना जाता. हाड़ी को जबाल अल-रहम भी कहा जाता है. माना जाता है कि पैगंबर मोहम्मद ने अपने आखिरी प्रवचन यहीं​ दिए थे. सूरज ढलने के बाद हाजी मुजदलफा पहुंचते हैं. पैदल यात्रा के दौरान वे अपने साथ शैतान को मारने के लिए पत्थर जमा कर लेते हैं.

यात्रा के तीसरे दिन बकरी ईद होती है, लेकिन कुर्बानी से पहले हाजी मीना पहुंचकर शैतान को तीन पत्थर मारते हैं. ये पत्थर जमराहे उकवा, जमराहे वुस्ता व जमराहे उला जगहों पर मारे जाते हैं. पत्थर मारने की रस्म अगले दो दिन और करनी होती हैं. कुबार्नी के बाद पुरूष अपने बाल मुंडवाते हैं और महिलाएं बहुत छोटे बाल करवा लेती हैं.चौथे दिन फिर से नमाजें अदा करने का सिलसिला जारी होता है और इस बीच शैतान को पत्थर मारने का क्रम भी अनवरत जारी रहता है. दूसरे दिन शैतान को 7 बार पत्थर मारे जाते हैं. इसके साथ ही काबा के 7 चक्कर लगाए जाते हैं. इसे तवाफ की रस्म कहते हैं. पांचवे दिन भी इसी प्रक्रिया को दोहराया जाता है. इसके साथ ही हज यात्रा पूरी होती है.सऊदी अरब ने हज यात्रा के लिए हर देश का एक कोटा तय कर रखा है. क्योंकि मक्का शहर है देश नहीं. कोटे के अनुसार सबसे ज्यादा इंडोनेशिया का है. जहां से हर साल 2,20,000 लोग हज के लिए पहुंचते हैं. यह टोटल कोटे का 14 फीसदी हिस्सा है. इसके बाद पाकिस्तान (11 फीसदी), भारत (11फीसदी) और बांग्लादेश (8 फीसदी) पर है.

हज करने आने वाले व्यक्ति का परिवार और समाज में बहुत मान होता है. यही कारण है कि मरने से पहले हर कोई एक बार अल्लाह को महसूस करने काबा पहुंचता है. जमजम पीता है और अपने सारे दर्द वहीं भूल आता है.