युवाओं के बड़े वर्ग को हिंसक और पागल बनाने वाली नशीली दवाइयों पर सरकार सख्ती से बैन के दावे करती हो, लेकिन पूरे प्रदेश में नशे के कारोबारियों के नेटवर्क की पहुंच शहरों से गांवों की गलियों तक है। ये दवाइयां प्रतिबंधित हैं, डाॅक्टर के प्रेस्क्रिप्शन (पर्ची) के बिना नहीं बेची जा सकतीं। लेकिन नशेड़ियों से डाॅक्टर पर्ची मांगी जानी बंद है। दिलचस्प ये है कि नशेड़ियों को ये दवाइयां गल्ले से लेकर पंक्चर की दुकानों में भी मिल रही हैं। प्रदेश के प्रमुख शहरों रायपुर, बिलासपुर और दुर्ग-भिलाई शहर के अलावा आसपास के ग्रामीण इलाकों में स्टिंग कर खुलासा किया कि इन दवाइयों पर सरकारी बैन की धज्जियां किस तरह उड़ाई जा रही हैं।
प्रदेश में कुछ मेडिकल स्टोर्स नशे का कारोबार कर रहे हैं। दोगुनी-तिगुनी कमाई के चक्कर में दवा दुकान वाले ऐसी दवाएं बेच रहे हैं, जिनका उपयोग करते ही नशा छा जाता है। ये दवाएं जीवन रक्षक तो हैं, लेकिन नशीली होने के कारण डाॅक्टर की पर्ची के बिना बेचना बैन है। पर बाजार मेंे दवाएं धड़ल्ले से मिल रही हैं। सैकड़ों युवा इन दवाओं की गिरफ्त में फंसकर पागलपन की दहलीज तक पहुंच चुके हैं। रायपुर में ही पिछले एक महीने में हत्या की पांच वारदातें हुईं और पुलिस ने खुलासा किया कि हत्या के अारोप में पकड़े गए सभी लोगों ने इन्हीं दवाइयों का नशा किया हुअा था।
क्यों किया राज्यभर में स्टिंग : प्रदेश में चाकूबाजी, छिनताई के साथ घरेलू हिंसा के केस लगातार बढ़ रहे हैं। राजधानी में इसी महीने से एक युवक ने अपने तीन बच्चों को चाकू मारकर उनकी जान लेने की कोशिश की। बच्चे गंभीर रूप से घायल हो गए। पुलिस ने जब पिता को पकड़ा तो पता चला उसने नशे की गोलियां खाईं थी। नशे में उसने अपने ही बच्चों को मारने की कोशिश की। झांकी के दौरान एक ही रात में हत्या की 3 वारदातें हुईं। तीनों हत्या गोली के नशे में हुई। राज्यभर में ऐसी वारदातें हो रही हैं। डीजी डीएम अवस्थी ने नशे के खिलाफ मुहिम के निर्देश दिए। इसकी पड़ताल की तो पता चला मेडिकल स्टोर्स ही नशे की दुकान चला रहे हैं। उसके बाद ही बड़े शहरों में एक साथ स्टिंग किया गया।
बाइक से भी चल रहा रैकेट
नशीली दवाओं का धंधा करने वाले मेडिकल स्टोर्स संचालक रैकेट बनाकर काम कर रहे हैं। मेडिकल स्टोर्स से तो दवाएं परमानेंट कस्टमर को ही दी जाती हैं, लेकिन नए ग्राहकों के लिए वे पुराने कस्टमर की ही मदद ले रहे हैं। कई पुराने कस्टमर को कमीशन पर दवाओं का स्टॉक दे दिया जाता है। वे बाइक और आटो में घूमते-फिरते नशीली दवाएं बेच रहे हैं। रायपुर, बिलासपुर और दुर्ग-भिलाई की घनी आबादी और झुग्गी इलाके में नशीली दवाइयों का पागलपन ज्यादा है। फनसीडील हो या एल्प्राजोलम, नेट्रावेट हो या कोडीन और टोरेक्स सिरप नशे के आदी लोगों को आसानी से मिल रही है। ड्रग विभाग के अफसर लगातार जांच और कार्रवाई का हवाला देकर खामोश बैठे हैं और नशे का धंधा गली-गली फैल रहा है।
पान और चाय वालों से लेकर छोटी गुमटियों में सेटिंग से मिल रही दवाइयां
स्टिंग-1 : नशीली दवा के उपयोग के लिए चर्चित संतोषी नगर में गुरुवार दोपहर 2 बजे एक मेडिकल स्टोर में भास्कर संवाददाता ने नाइट्रोजेपाम गोली मांगी। संचालक ने मना कर दिया। अासपास के लोगों ने बताया कि एक दिव्यांग और एक महिला की मेडिकल स्टोर से सेटिंग हैं। उनसे मांगने पर दवा मिल जाएगी। महिला के घर पहुंचने पर उसने साफ मना कर दिया। उसने एक पान ठेले में बात की, फिर दूर खड़े एक दुबले-पतले युवक को बुलाकर पैसे दे दिए। वह 5 मिनट में नाइट्राेजेपाम का पत्ता ले अाया।
स्टिंग-2 : लोधीपारा अवंति बाई चौक के पास एक मेडिकल स्टोर में शाम करीब 4 बजे। दुकान में संचालक के अलावा एक सेल्समैन था। सेल्समैन को बुलाकर धीरे से उससे नाइट्रोटेन का एक पत्ता मांगा। उसने अपने मालिक से दवा का नाम लेकर पूछा। उसने मना कर दिया। उसने कहा- उससे भी अच्छी चीज ले जाओ, ये भी नशा देगी। फिर कफ सिरप निकालकर दे दिया। इसके बदले में 80 रुपए मांगे और पर्ची के बिना ही दे दिया।
स्टिंग-3 : सड्डृू कॉलोनी के पास की पंक्चर दुकान नशीली टेबलेट और दवा के लिए चर्चित है। यहां सालूशन भी मिलता है। करीब में चाय का ठेला है। लोगों ने बताया कि वह कमीशन पर दवा दिलवा देता है। मांगने पर उसने एक लड़के को 100 का नोट देकर भेजा। वह लड़का चंद मिनट में टेबलेट का पूरा पत्ता लेकर आ गया। उसकी कीमत 40 रुपए थी, लेकिन 100 रुपए देने पड़े। चायवाले ने साफ कहा-इससे कम में नहीं मिलेगा।