भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के पूर्व गवर्नर रघुराम राजनने कहा कि आलोचनाओं को लेकर असहिष्णु रवैये के कारण सरकारें नीति बनाने में गलती करती हैं. अगर आलोचना (criticism) कर रहे हर व्यक्ति को सरकार की ओर से कोई व्यक्ति फोन कर चुप रहने के लिए कहेगा या ट्रोल आर्मी उस व्यक्ति के पीछे पड़ेगी तो बहुत बड़ी संख्या में लोग आलोचना करना बंद कर देंगे. इसके बाद सरकार तब तक सब कुछ बेहतर होने की खुशफहमी में रह सकती है, जब तक इसके खराब नतीजे सामने नहीं आ जाते हैं. राजन ने कहा कि सच को ज्यादा समय तक झुठलाया नहीं जा सकता है.
इतिहास में खोए रहने से नहीं बढ़गी हमारी मौजूदा क्षमता
आरबीआई के पूर्व गवर्नर ने कहा कि ऐतिहासिक उपलब्धियों में खोए रहने, विदेशी विचारों का विरोध और विदेशियों को लेकर असुरक्षा की भावना आर्थिक विकास पर बुरा असर डालती है. प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (PMEAC) ने सरकार की नीतियों पर चिंता जताने वाले दो सदस्यों को हटाने की आलोचना की है. राजन ने एक ब्लॉग में लिखा है कि सार्वजनिक आलोचना नौकरशाहों को सरकार के सामने सच रखने की गुंजाइश देती है. उन्होंने कहा कि इतिहास को समझना और जानना निश्चित तौर पर अच्छी बात है, लेकिन इसमें खोए रहना हमारी असुरक्षा को दिखाता है. इससे हमारी मौजूदा क्षमता को बढ़ाने में मदद नहीं मिलने वाली है.
मौजूदा सिस्टम को बेहतर करने की प्रक्रिया न हो प्रभावित
राजन ने कहा कि ऐतिहासिक उपलब्धियों की वजह से मौजूदा सिस्टम को बेहतर बनाने की प्रक्रिया प्रभावित नहीं होनी चाहिए. इससे पहले राजन ने कहा था कि आर्थिक सुस्ती चिंता का विषय है. सरकार को इससे निपटने के लिए ऊर्जा और एनबीएफसी सेक्टर की समस्याओं का तत्काल समाधान करना चाहिए. साथ ही निजी क्षेत्र में निवेश को बढ़ाने के लिए नए सुधार करने चाहिए. हालांकि, राजन ने कहा था कि हाल-फिलहाल बड़े वित्तीय संकट का अनुमान तो नहीं है, लेकिन अगर ऐसा होता है तो इसका कोई एक कारण नहीं होगा. इस बार मंदी के लिए कई सेक्टर में सुस्ती जिम्मेदार होगी.
वैश्विक हितों के बजाय सिर्फ अपना फायदा सोच रहे हैं देश
रघुराम राजन ने कहा कि इस समय वित्तीय क्षेत्र को लेकर परेशानी नहीं है. असल में इस समय कारोबार में सुस्ती के साथ ही वैश्विक निवेश चिंता का कारण है. अगर हम इस ओर ध्यान नहीं देंगे तो यह बड़ी परेशानी के रूप में सामने आएगा. इस समय ज्यादातर देश वैश्विक हितों के बारे न सोचकर सिर्फ अपने फायदे पर ध्यान दे रहे हैं. ऐसे में आर्थिक आधार पर दुनिया नए ही स्वरूप में दिख रही है. सरकार को ध्यान रखना होगा कि पुरानी समस्याओं को दुरुस्त कर लेने का मतलब यह कतई नहीं है कि नई समस्याएं नहीं आएंगी.