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पीएम मोदी का संसदीय क्षेत्र बाढ़ की चपेट में, सैकड़ों गांव पानी में डूबे, लेकिन सरकार जश्न मनाने में मस्त!

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सितंबर का महीना जल्द ही खत्म होने वाला है साथ ही मॉनसून खत्म होने के कगार पर है लेकिन यूपी के कई शहरों में बाढ़ जैसे हालात अब भी बने हुए हैं। यही हाल वाराणसी शहर का भी है। जहां गंगा का पानी निचले इलाकों में घुस गया है। हालात यह है कि गंगा ने नई कालोनियों को अपनी चपेट में ले लिया है। लोग सुरक्षित ठिकाने पर पहुंच रहे हैं या फिर अपनी जगह पर बैठकर गंगा के शांत होने का इंतजार कर रहे हैं।

अस्सी घाट की सीढ़ियां मारकर यहां भी गंगा के पानी ने गली का रास्ता अपना लिया है। अक्सर सूखी सूखी सी रहने वाली कृशकाय वरुणा नदी का स्वास्थ्य इन दिनों देखने लायक है। अपने निर्धारित तटबंधों की ऐसी तैसी कर वरिता ने अपने निकटवर्ती मोहल्लों को ग्रास बनाना शुरु कर दिया है। खुरी पंचक्रोशी सहित सैकड़ों मोहल्लों में वरिता का पानी लहरा रहा है। बाढ प्रभावित इन इलाकों के लोग सांसत में हैं। इन मोहल्लों की गलियां सडकें गुम हो गई हैं। इन स्थानों पर नावें और प्लास्टिक की डोंगियां चलाई जा रही हैं। कुछ लोग या फिर कांग्रेस के कुछ कार्यकर्ता बाढ प्रभावित इलाकों में राहत कार्य में जुटे हुए हैं। मजेदार बात यह कि जिस समय गंगा और दूसरी नदियां खतरे के निशान के आसपास पहुंचकर बनारस अथवा पूरब के लोगों पर कहर बरपा रही थीं। उनका सब कुछ डूबो देने पर अमांदा थी शासन करने वाली पार्टी के लोग साल गिरह मनाने के जश्न में डूबे हुए थे।

फोटो: हिमांशु उपाध्याय

पूरब के कई इलाके इन दिनों कुदरत की मार झेल रहे हैं। वाराणसी में गंगा गुस्से में हैं। गंगा ही क्यों इस शहर को अपना नाम दे उसे धन्य करने वाली वरुणा नदी की त्योरी भी चढ़ी हुई है। डरे हुए लोग छतों पर घर बना के बैठे हैं या फिर कहीं और शरण लेने को विवश हैं। गंगा घाट से सटे निचले मुहल्लों की गलियों में गंगा की धार लहराने लगी है। परेशानी का सबब बनी ये लहरें बच्चों की छपकछइयां के काम रहीं हैं जबकि घाटों के डूब जाने के कारण नियमित स्नान ध्यान करने वाले नेमी गली में ही गंगा का पुण्य लाभ अर्जित करने का सुख भोगने में लगे हैं। और तो और काशी के मुक्ति धाम मणिकर्णिका घाट की चिताओं ने भी गली के चबूतरों पर डेरा जमा लिया है। अमूमन बाढ़ के दिनों में यह नजारा यहां के वासिंदों के लिए आम है किन्तु सैलानियों को कम हैरत में नहीं डालता।

वरुणा, अस्सी ,मंदाकिनी जैसी सहायक नदियों सहित अनेक सरोवरों, कुंडों वाली काशी का नाम कभी आनंदवन था। आनंदवन नाम काशी का स्थायी भाव है। नाम जो भी रहे आनंद इसका स्वभाव है। इसलिए आपद विपद में भी वाराणसी आनंद की प्रवृत्ति से विमुख नहीं होता। बाढ भी यहां के मूल निवासियों के लिए बस पानी का बढना और घटना है। गंगा घाट, राजघाटपुल, वरुणा पुल या फिर जहां-जहां से भी बाढ का नजारा देखा जा सकता है, हजारों की संख्या में देखने वालों की भीड़ जमा मिलती है।

बहरहाल, बिगड़े मौसम, बरसात और गंगा मे आई बाढ के कारण इधर के कई जिले गहरी विपत्ति में घिर गए हैं। आसपास की बात करें तो गाजीपुर, मऊ और बलिया में उफनाई गंगा ने गदर मचा रखा है। इन जिलों में गंगा की कटान झेलते कई गांव जीवन मरण की जंग लड़ रहे हैं। हजारों लोगों ने अपनी हिफाजत में सडकों के किनारे अपना आशियाना तान दिया है। कई संपर्क मार्ग तो बाढ में अपना वजूद ही गंवा बैठे हैं। अपनी तो अपनी मवेशियों की जान के फिकरमंद उन्हें न बचा पाने की स्थिति में खून के आंसू रो रहे हैं। बहुत से लोग बांध पर शरण लेने को मजबूर हैं। खतरे के निशान से लुकाछिपी करती गंगा ने प्रभावित इलाकों में दहशत भर दी है। यही हाल चंदौली, मिर्जापुर और जौनपुर का हैं जहां गंगा और दूसरी सहायक नदियां विध्वंस करने में मशगूल हैं। नतीजा यह है सैकड़ों गांव बाढ के कहर से तिलमिलाना उठे हैं।