उत्तर प्रदेश में मैनपुरी जिले में करहल तहसील क्षेत्र में एक ऐसा गांव है, जहां लोग घरों में ही लाश दफनाने को मजबूर हैं। उनके यहां कब्रिस्तान नहीं है। जिसकी वजह से सालों से परिवारीजन किसी की मौत होने पर लाश को एक कोने में दफन कर देते हैं। यह गांव है मोहब्बतपुर, जहां 200 से भी ज्यादा मुस्लिम परिवार रहते हैं। इन्हें फ़कीर कहा जाता है। विकास और नौकरियों के अभाव में यहां मजदूरी ही मुख्य सहारा है। अपने परिवार का गुजर-बसर करने के लिए ये लोग भीख भी मांगते हैं।
गांववालों का कहना है कि ग्राम प्रधान ने और न ही क्षेत्रीय जन-प्रतिनिधियों ने उनकी किसी भी समस्या का समाधान किया। गांव के बाशिंदे अचल संपत्ति से अभी भी दूर हैं। जिनके पास बीघाभर भी जमीन नहीं है। वे अपने यहां मरने वाले वालो लोगों के शवों को घर के आंगन में या फिर घर के बरामदे में एवं चबूतरों वाली जगह पर ही दफनाते हैं। गांवभर में कब्र ही कब्र नजर आती हैं।
इससे पहले आगरा जिले में भी ऐसे गांव की खबर आ चुकी है। आगरा में अछनेरा ब्लॉक के छह पोखर गांव में कुछ मुस्लिम परिवार घरों में ही मुर्दे दफनाते हैं। उन्होंने अपने घरों में एक नहीं, कई-कई परिजनों के शव दफना रखे हैं। आलम ये है कि कोई कब्र के पास ही खाना बनाता है, तो कुछ उसी के ऊपर बैठकर खाना खाते हैं। वे खुशी से ऐसा नहीं करते। उन्हें अपने पूर्वजों के कब्रों पर इस तरह का काम करना बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं है। उन्हें लगता है कि वह अपने मृत परिजनों का अपमान कर रहे हैं। लेकिन, वो करें भी तो क्या करें? उनके पास कोई चारा नहीं है। क्योंकि, गांव में मुर्दों को दफनाने के लिए कोई सार्वजनिक जगह ही उपलब्ध नहीं है।