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मुस्लिम पक्ष की दलील- मूर्तियां रख देने से मस्जिद के अस्तित्व पर सवाल नहीं उठाए जा सकते

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अयोध्या में राम जन्मभूमि विवाद पर बुधवार को सर्वोच्च न्यायालय में 19वें दिन सुनवाई हुई। मुस्लिम पक्षकारों ने दलील दी कि लगातार नमाज ना पढ़ने और मूर्तियां रख देने से मस्जिद के अस्तित्व पर सवाल नहीं उठाए जा सकते। मुस्लिम पक्ष ने कहा कि यह सही है कि विवादित ढांचे का बाहरी अहाता शुरू से निर्मोही अखाड़े के कब्जे में रहा है। झगड़ा आंतरिक हिस्से को लेकर है जिस पर कब्जा किया गया, लेकिन अदालत में किए गए उनके दावों में यह नहीं है। हम प्रतिकूल कब्जा मांग रहे हैं।

मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय पीठ के समक्ष मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन ने कहा कि निर्मोही अखाड़े ने पूजा का अधिकार मांगा था। हमने उन्हें राम चबूतरा दे दिया। लेकिन पूरी इमारत और अहाते के प्रबंधन का अधिकार हमारे पास ही था। कई दशकों तक राम चबूतरे पर बनाए गए छोटे से मंदिर में रामलला की पूजा होती रही। लेकिन गवाह बताते हैं कि मूर्ति वहां बाद में रखी गई थी। निर्मोही अखाड़े के महंत रघुबर दास ने 1885 में स्वीकार किया था कि उनका बाहरी अहाते में पूजा का अधिकार था। धवन ने जब कहा कि निर्मोही अखाड़े के प्रबंधन अधिकार के दावे पर उन्हें कोई आपत्ति नहीं है। जस्टिस अशोक भूषण ने धवन से सवाल किया कि इसका मतलब है कि आप मान रहे हैं कि मंदिर का अस्तित्व है। जिस पर उन्होंने जवाब दिया, हो सकता है लेकिन सवाल कहां है।

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने धवन से पूछा जब आप कहते हैं कि अखाड़े के पास प्रबंधन अधिकार हैं, तो आप स्वीकार कर रहे हैं कि बाहरी आंगन के एक हिस्से में मूर्तियां थीं और इस तरह यह वह हिस्सा नहीं है जिस पर आप मस्जिद का दावा करते हैं। आपका मामला यह है कि मंदिर और मस्जिद दोनों अस्तित्व में हैं। मुस्लिम पक्ष के वकील ने कहा कि हां, मंदिर और मस्जिद सह-अस्तित्व में हैं लेकिन हम पूरी मस्जिद के लिए टाइटल का दावा कर रहे हैं। अखाड़े की लिखित दलील का हवाला देते हुए धवन ने यात्री ट्रैफनथैलर की किताब का हवाला दिया कि तब ऐसी मान्यता थी कि श्रीराम बाहर चबूतरे वाली जगह पर पैदा हुए थे।