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लाठी का सहारा लेकर जाती थी स्कूल, अब डिप्टी कलेक्टर बनी गरीब किसान की बेटी रजनी

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मध्यप्रदेश के बैतूल के एक छोटे से गांव सोहागपुर के एक किसान की दिव्यांग बिटिया ने डिप्टी कलेक्टर बनकर साबित कर दिया की बेटियां किसी से कम नहीं हैं। 2017 में उन्हें पोस्टिंग मिली।

जिला मुख्यालय से लगभग 12 किलोमीटर दूर स्थित इस गांव के किसान देवीप्रसाद वर्मा ने अपनी दिव्यांग बिटिया का सपना पूरा करने कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। वहीं बिटिया रजनी ने भी डिप्टी कलेक्टर बनकर साबित कर दिया कि बेटियां किसी से कम नहीं। किसान की दो बेटियां और एक बेटा हैं। छोटी बेटी रजनी को बचपन से ही पोलियो के कारण लाठी का सहारा लेकर चलना फिरना पड़ता था।

दिव्यांग होने के चलते लोग रजनी को कमतर आंकते थे और उसके भविष्य को लेकर तरह-तरह की बातें करते थे। ये ज्यादातर नकारात्मक बातें ही होती थी। इन सबके बीच देवीप्रसाद ही ऐसे थे जिन्होंने बिटिया को कभी मायूस नहीं होने दिया।

खुद ग्रेजुएट थे इसलिए पढ़ाई का महत्व जानते थे। उन्होंने सोच रखा था कि बिटिया की उम्मीदों का आसमान हासिल करवाने में वे कोई कसर नहीं छोड़ेंगे। करियर को लेकर थोड़ी समझ आते ही बिटिया ने जब प्रशासनिक सेवा में जाने की ख्वाहिश जताई तो उसी दिन से देवीप्रसाद ने भी तय कर लिया कि अब बिटिया को यह मंजिल दिलाकर ही रहेंगे। कक्षा 12 वीं पास करने के बाद रजनी ने संविदा शिक्षक की परीक्षा दी और गांव के ही सरकारी स्कूल के लिए उसका चयन हो गया। इसके बाद वह पढ़ाती भी रही और साथ ही कॉलेज से स्वाध्यायी रूप से पढ़ाई भी करती रही।

इसके बाद पिता और उसके जीजा विवेक वर्मा के प्रोत्साहन से वर्ष 2012 में एमपीपीएससी की परीक्षा दी। मुख्य परीक्षा पास कर ली। बदकिस्मती से पेपर लीक का मुद्दा उठा और इंटरव्यू पर रोक लग गयी। इधर दूसरी ओर रजनी के पिता हर तरह की मुश्किलों का सामना करते हुए रजनी का हौसला बढ़ाते रहे। पिता-बेटी के इस संघर्ष से मुश्किलें भी हार गईं और किस्मत ने पलटा खा लिया।

हाईकोर्ट ने 2016 में आदेश दिया कि वर्ष 2012 के जिन परीक्षार्थियों के इंटरव्यू रोके गए थे, वे कराए जाये। इंटरव्यू हुए और इसमें अच्छे अंक हासिल करते हुए रजनी ने डिप्टी कलेक्टर की रैंक हासिल की। वर्तमान में रजनी सिवनी जिले में पदस्थ है। देवीप्रसाद को लाड़ली पर गर्व है।