पश्चिम ओडिशा का महापर्व नुआखाई लौहनगरी में भी हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। ओड़िया समाज पारंपरिक रीति-रिवाज से नुआखाई पर्व भादो शुक्ल पंचमी तिथि को मनाता हैं।
पश्चिम ओडिशा का महापर्व नुआखाई लौहनगरी में भी हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। नुआखाई का शाब्दिक अर्थ नया खाना है। ओड़िया समाज पारंपरिक रीति-रिवाज से नुआखाई पर्व भादो शुक्ल पंचमी तिथि को मनाता हैं। इस वर्ष नुआंखाई पर्व तीन सितंबर को मनाया जाएगा।
पश्चिम ओडिशा निवासी लहलहाती फसल को इष्ट देवी मा संबलेश्वरी का आशीर्वाद मानकर सबसे पहले धान का भोग मां और अपने पूर्वजों को अर्पित करते हैं। सोनारी स्थित मां संबलेश्वरी शिव मंदिर में इस दिन समाज के लोगों की भीड़ उमड़ती है।
नुआंखाई पर कुरे पत्ता और नए धान का विशेष महत्व रहता है। पर्व के दिन कुरे पत्ते का दीया बनाकर पूजा-अर्चना की जाती है और नए अन्न का प्रसाद कुरे पत्ते पर ही ग्रहण किया जाता है। पर्व के दिन परिवार के सभी सदस्य नए उपजे अन्न का भोग लगाकर एक साथ ग्रहण करते हैं। इसके बाद घर के सभी छोटे सदस्य बड़ों को नुआखाई जुहार अर्थात प्रणाम करके उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
मा का भोग मिट्टी की नई हाडी में बनाया जाता है। प्रसाद में चूड़ा, गुड़ व नए धान का प्रयोग किया जाता है। पूजा के दौरान मंदिर में ओड़िशा का पारंपरिक वाद्य यंत्र ढोल, लीसान, मुहरी व झाझर बजाया जाता है। नुआंखाई के मौके पर घरों में आड़सा, मोड़ा और चकिल पीठा विशेष तौर पर बनाया जाता है। नुआखाई के मौके पर समाज के लोग एक माह पहले से ही घरों की साफ-सफाई शुरू कर देते हैं। पर्व के दिन जुहार भेंट कर बड़े बुजुर्गो को आशीर्वाद लिया जाता है। इस दिन लोग आपसी मन मुटाव को भूलकर एक-दूसरे के गले मिलते हैं।
खेत-खलिहान की करते पूजा
नुआंखाई के मौके पर गंडा समाज के लोग खेत-खलिहान की पूजा करते हैं। पूर्वजों को नया अन्न अर्पित करने के बाद सभी एक साथ बैठकर नया अन्न ग्रहण करते हैं। पर्व के मौके पर सभी घरों में विशेष पकवान बनाए जाते हैं। लोग एक-दूसरे के घर जाकर शुभकामनाएं देते हैं।
युवा भी परंपरा के प्रति जागरूक
पश्चिम ओडिशा में मनाए जाने वाले नुआंखाई पर्व जमशेदपुर में भी हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। समाज के युवा अपनी परंपरा के प्रति काफी जागृत हैं। नुआंखाई के अवसर मुर्गा, नया धान, टोकरी, सारु, नारियल, बिरीदाल, गुड़, हेडुआ, मिट्टी की हंडी आदि की आवश्यकता होता है।