Home जानिए एक ऐसा गणेश मंदिर जो बताता है आजादी के दीवानों की दास्तान…

एक ऐसा गणेश मंदिर जो बताता है आजादी के दीवानों की दास्तान…

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अंग्रेजी शासनकाल में संपूर्ण भारतवासियों को एकसूत्र में पिरोने और जन-जन में भक्ति-भावना जगाने के उद्देश्य से स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बाल गंगाधर तिलक ने ‘गणेश पर्व’ की शुरुआत की थी। उसी दौर में राजधानी की पुरानी बस्ती, टुरी हटरी के समीप गणेश मंदिर की स्थापना हुई थी।

देश को आजादी दिलाने के लिए जब भी छत्तीसगढ़ के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी राजधानी में एकत्रित होते थे, और अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने के लिए योजनाएं बनाते थे, योजनाओं को अमल में लाने से पूर्व वे टुरी हटरी के पास स्थित भगवान श्रीगणेश के दर्शन करके अपने-अपने मोर्चों पर रवाना होते थे। राजधानी में यह एक मात्र गणेश मंदिर है, जिसकी स्थापना हुए 100 साल से अधिक का समय बीत चुका है।

मंदिर निर्माण करने वाले शास्त्री परिवार के वंशज रविंद्र कुमार झा बताते हैं कि उनके नाना धर्मध्वज शास्त्री ने मंदिर का निर्माण करवाया था। उस समय मंदिर से थोड़ी ही दूर से घनघोर जंगल शुरू हो जाता था। पुरानी बस्ती के जैतूसाव मठ, दूधाधारी मठ, नागरीदास मठ जैसे प्रसिद्ध मंदिरों में भगवान श्रीराम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान विराजते थे।

तब भगवान श्रीगणेश का एक भी मंदिर नहीं था। उनकी मां ने उन्हें बताया था कि तब उनके नाना ने श्रीगणेश मंदिर बनाने का संकल्प लिया। चूंकि भगवान श्रीगणेश को प्रथम पूज्य देव माना जाता है, इसलिए सबसे पहले लोग अपने शुभ कार्यों की शुरुआत करने इसी मंदिर में आते थे।

बनारस से लाई गई थी गणेश की मूर्ति

100 साल पहले राजधानी से बनारस जाने के लिए ट्रेन सुविधा नहीं थी। उस समय बैलगाड़ी में महीनों का सफर करके भगवान श्रीगणेश की मूर्ति को लाकर प्रतिष्ठापित किया गया था। श्री झा बताते हैं कि उन्होंने पिताजी से सुना है कि जब गणेश पर्व की शुरुआत देश भर में हुई तब भक्ति का ऐसा माहौल था कि पचासों मील का सफर तय करके ग्रामीण रायपुर पहुंचते थे।

सालों से हर संडे भजन-कीर्तन

मंदिर में मैथिल ब्राह्मण समाज के लोग हर संडे को भजन-कीर्तन करते हैं। यह सिलसिला 100 साल से लगातार चल रहा है। चार-पांच पीढ़ी गुजर गई, लेकिन भजन-कीर्तन बंद नहीं हुआ।

दक्षिणमुखी मंदिर में मांगते हैं मन्नत

दक्षिण दिशा में भगवान गणेश की प्रतिमा होने से भक्तगण इसे विशेष फलदायी मानते हैं। कहा जाता है कि सच्चे मन से मांगी गई मन्नत भगवान गणेश अवश्य पूरी करते हैं। मंदिर का निर्माण करने वाले धर्मध्वज शास्त्री का पूरा परिवार आज भी कोई भी शुभ कार्य करने से पहले भगवान गणेश को निमंत्रण देते हैं।

बूढ़ा तालाब के सामने 40 साल पहले बना गणेश मंदिर

यूं तो गणेश पर्व पर राजधानी में 15 हजार से अधिक प्रतिमाओं की स्थापना घर-घर में और पंडालों में की जाती है लेकिन वास्तव में कुछ ही गणेश मंदिर हैं जहां प्रतिदिन भक्तों की भीड़ लगती है। ऐसा ही एक मंदिर ऐतिहासिक बूढ़ातालाब के ठीक सामने श्याम टाकीज के बगल में दक्षिणमुखी गणेश मंदिर है। इसकी स्थापना 1979-80 में हुई थी।

पनवाड़ी को स्वप्न में हुए थे दर्शन

पुजारी वीरेन्द्र शुक्ला बताते हैं कि सदर बाजार के एक पनवाड़ी को भगवान गणेश स्वप्न में दिखाई दिए थे। भगवान ने पनवाड़ी को आदेश दिया कि सरोवर के किनारे मंदिर बनवाओ। इसके बाद पनवाड़ी और अन्य भक्तों के प्रयास से मंदिर का निर्माण किया गया।

भाटापारा से लाई प्रतिमा

मंदिर में प्रतिष्ठापित एक ही पत्थर से निर्मित प्रतिमा को राजधानी से 50 किलोमीटर दूर भाटापारा से लाया गया।

एक वस्त्र एक बार

मंदिर की पूजन परंपरा के अनुसार गणेश प्रतिमा को एक वस्त्र एक ही बार पहनाया जाता है। दोबारा उस वस्त्र का इस्तेमाल नहीं किया जाता। प्रतिदिन भक्तगण ही वस्त्र सेवा पूजा करने का जिम्मा लेते हैं। कई-कई दिनों तक वस्त्र पूजा की बुकिंग हो जाती है।

15 हजार भक्तों के लिए भंडारा

मंदिर में जब वार्षिकोत्सव मनाया जाता है तब 15 हजार से अधिक भक्तों के लिए भंडारे की व्यवस्था की जाती है। सुबह से लेकर रात तक भंडारे में प्रसाद ग्रहण करने तांता लगा रहता है।

मुंबई के सिद्धि विनायक समता कॉलोनी में विराजे

मुंबई के प्रसिद्ध सिद्धि विनायक मंदिर के स्वरूप को समता कॉलोनी के निगम काम्पलेक्स के सामने मेन रोड पर विराजित किया गया है। यहां प्रतिदिन सुबह-शाम आरती में भक्त उमड़ते हैं।

पुजारी पं.मनोज उपाध्याय बताते हैं कि मात्र 15 साल पहले गणेश पर्व पर गणेश प्रतिमा बिठाने वाली समिति जय विजय गणेश उत्सव समिति के सदस्यों ने मंदिर का निर्माण करवाया। यहां पर दिशाओं में सर्वश्रेष्ठ मानी जाने वाली दिशा ईशान पूर्व में भगवान श्रीगणेश विराजे हैं। उनके माता पार्वती-शिव उत्तर दिशा में और हनुमानजी दक्षिण दिशा में विराजित हैं। कुछ ही सालों में मंदिर की प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैल चुकी है।