छत्तीसगढ़ की एक मात्र रजिस्टर्ड देसी नस्ल की कोसली गाय और छत्तीसगढ़ी भैंस की खूबियां अब चिप में एकत्रित की जाएंगी। यह चिप इन नस्ल के पशुओं लगाई जाएगी, जिसके माध्यम से कोई भी व्यक्ति उस पशु के बारे में सारी जानकारी मात्र 10 मिनट में प्राप्त कर सकेगा। उस पशु के बारे में किसी से पूछने की जरूरत नहीं पड़ेगी। नेशनल ब्यूरो ऑफ एनिमल जेनेटिक रिसोर्सेस करनाल (हरियाणा) सारी जानकारी चिप में अपलोड करेगा और इसे अपडेट भी करता रहेगा।
मिली जानकारी के अनुसार गाय, भैंस की नस्ल, दूध और बच्चा देने की क्षमता, प्रमुख रोग, टीकाकरण सहित कई विषयों की जानकारी चिप में अपलोड रहेगी। इसके लिए नेशनल ब्यूरो ऑफ एनिमल जेनेटिक रिसोर्सेस करनाल के पशु वैज्ञानिकों की टीम छत्तीसगढ़ पहुंची है। टीम ने पशुधन सेवाएं विभाग के सहयोग से प्रथम चरण में आरंग विकासखंड के ग्राम दरबा, बकतरा, दूसरे चरण में धरसींवा विकासखंड के ग्राम सेरीखेड़ी, अभनपुर के गातापारा में गायों के सीरम एकत्रित किया।
भारत में पहली बार होगा प्रयोग
करनाल की टीम के तकनीकी अधिकारी डॉ. सुभाषचंद्र ने बताया कि माइक्रो चिप सिस्टम का चलन अब तक विदेशों में हुआ करता है। अब भारत में शुरू किया जा रहा है। वैज्ञानिक नेशनल ब्यूरो ऑफ एनिमल जेनेटिक रिसोर्सेस के माध्यम से देश भर के सभी रजिस्टर्ड पशुओं के रक्त व सीरम लेकर जांच की जाती है। पूर्व में तकनीकी जानकारी के अभाव में पशुओं के नस्ल में बहुत सुधार नहीं हो पा रहा था, इसलिए पशुपालकों की आर्थिक स्थिति में सुधार लाने के लिए पहली बार चिप का उपयोग पशुओं की जानकारी इकट्ठा करने के लिए किया जा रहा है।
144 नस्लों का हुआ है पंजीकरण
संस्थान में अब तक देश भर की लगभग 144 नस्ल के पशुओं का पंजीकरण किया गया है। इनमें भैंस की 13, गाय की 43, बकरी की 23, सुअर की दो, गधे की एक, भेंड़ की 39, घोड़े की छह, ऊंट की आठ व मुर्गी की 15 नस्ल शामिल हैं। वर्ष 2012 में पंजीकृत नौ नस्लों में ओडिशा की कालाहांडी भैंस, तमिलनाडु की पुल्ली कुल्लम गाय, छत्तीसगढ़ की कोसली गाय व भैंस, कर्नाटक की गाय, महाराष्ट्र की दो बकरी की नस्ल, वेस्ट बंगाल का घुंघरू सुअर, मेघालय का मियांग मेघा सुअर व हिमाचल प्रदेश के गधे की एक नस्ल शामिल है।
छत्तीसगढ़ की कोसली गाय, भैंस का पालन मध्यम वर्ग के किसानों के लिए काफी लाभकारी है। इसके दूध में मिठास अधिक होती है। इनमें बच्चे पैदा करने की क्षमता अधिक होने के साथ रोग इन्हें कम होते हैं। इसके पालन के लिए किसानों को जागरूक होने की जरूरत है।
चिप में नस्ल की पूरी जानकारी होगी। इससे देश-विदेश में बैठे पशुपालकों को इन नस्ल की जानकारी महज दस से मिनट में उपलब्ध हो जाएगी।
प्रदेश की कोसली व छत्तीसगढ़ी भैंस की मांग अन्य राज्यों में बढ़े इसके लिए नस्ल सुधार रिसर्च की टीम आई है। टीम सैंपल के माध्यम से चिप तैयार करेगी। इसके माध्यम से नस्ल की जानकारी तुरंत उपलब्ध होगी।