उल्टापानी के नाम से जाना जाने वाला यह इलाका अंबिकापुर से 56 किलोमीटर दूर मैनपाट की गोद में बसे बिसरपानी गांव में है। स्थानीय सरगुजा भाषा में बिसरपानी का अर्थ ‘पानी का रिसना’ होता है। यहां पर मुख्यमंत्री सड़क योजना के किनारे एक छोटे से पत्थर के नीचे से निकलकर पानी की धारा ऊपर पहाड़ी की ओर 2 किलोमीटर का सफर तय करती है।
इंसान व विज्ञान की मान्यताओं को झूठलाकर यहां चार साल पहले ग्रामीणों द्वारा बनाई गई मेढ़ में पानी एक ही धार में नीचे से ऊपर पहाड़ के टीले जैसे स्थान से घूमकर दूसरे पारे में एक ही फ्लो में बह रहा है। ये देखकर बोलना ही पड़ा, ‘अद्भुत, अविश्वसनीय और अकल्पनीय’। वाकई में ये अजब-गजब मैनपाट है।
मैनपाट में प्रकृति का जल स्रोत से जुड़ा एक और हैरान कर देने वाला बेजोड़ नमूना है, जो अभी मशहूर नहीं हुआ है। इसका नाम है ‘उल्टापानी’, जिसकी खोज किसी वैज्ञानिक या रिसर्चर के जरिए नहीं, बल्कि बिसरपानी पंचायत के ग्रामीणों ने की है।
ग्राम पंचायत बिसरपानी में ऐसी कोई भी जमीन नहीं है, जो पानी न उगलती हो। यहां का वाटर लेबल काफी ऊपर है, इसकी वजह से ग्रामीणों को खेतों की सिंचाई में कभी दिक्कत नहीं आती। आज से करीब चार साल पहले यहां जमीन से एक जगह बड़ी मात्रा में निकल रहे पानी को ऊपर तक खेतों व गांव के ही दूसरे पारे में ले जाने की सोची और मेढ़ तैयार की।
इसके बाद जो हुआ, वो हैरान कर देने वाला था। इस मेढ़ से पानी गुजरते ही एक ही धार में नीचे से ऊपर घूमते हुए दूसरे पारे में जा पहुंचा और तब से इस जगह को उल्टापानी के नाम से जाना जाने लगा। ग्रामीण इस स्थान को पर्यटन के दृष्टिकोण से संरक्षित करने की मांग कर रहे हैं। ताकि मैनपाट में ये जगह भी प्रदेश व देश में मशहूर हो सके।