सेनेटरी पैड से अब पर्यावरण को नुकसान नहीं होगा। आईआईटी दिल्ली के दो छात्रों ने केले के फाइबर से सेनेटरी पैड बनाने की तकनीक तैयार की है। इस पैड को 122 बार धोकर दो साल तक प्रयोग किया जा सकता है। बार-बार प्रयोग के बाद भी इससे किसी प्रकार के इंफेक्शन का खतरा नहीं है। एक सेनेटरी पैड सौ रुपये में उपलब्ध होगा। आईआईटी दिल्ली के बीटेक के चौथे वर्ष के छात्र अर्चित अग्रवाल और हैरी सहरावत ने विभिन्न विभागों के प्रोफेसर की अध्यक्षता में यह सेनेटरी पैड बनाने में सफलता हासिल की है। बीटेक छात्रों ने सांफे नाम से स्टार्टअप बनाया है। इसी स्टार्टअप के तहत इस सेनेटरी पैड को तैयार किया गया है।
स्टार्टअप के संस्थापकों में से एक अर्चित अग्रवाल ने कहा कि अधिकांश सैनिटरी नैपकिन सिंथेटिक सामग्री और प्लास्टिक से बने होते हैं, जिन्हें सड़ने में 50-60 साल से ज्यादा वक्त लग सकते हैं। मासिक धर्म के समय इस्तेमाल किए जाने वाले इन नैपकीन को कूड़ेदान,खुले स्थान या और जल में फेंक दिया जाता है, जला दिया जाता है या मिट्टी में दबा दिया है या फिर शौचालयों में बहा दिया जाता है।
उन्होंने कहा कि इन्हें निपटान के ये तरीके पर्यावरण के लिए खतरा पैदा करती हैं। उदाहरण के लिए, जलने से डाईऑक्सिन के रूप में कार्सिनोजेनिक धुएं का उत्सर्जन होता है, जिससे वायु प्रदूषण का खतरा पैदा होता है। इस कचरे को लैंडफिल में डालने से केवल कचरे का बोझ बढ़ता है।