छत्तीसगढ़ में जारी अघोषित बिजली कटौती को लेकर घमासान मचा हुआ है. राजनीतिक दलों से लेकर आम जनता तक इसकी जद में है. आलम यह है कि मामले में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल तक अधिकारियों को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं. सीएम के अनुसार बिजली कंपनी और सरकार को बदनाम करने की साजिश रची जा रही है.
पर्यावरण दिवस पर ऊर्जा पार्क में पौधरोपण करने के बाद मीडिया से चर्चा में बिजली कटौती पर सीएम भूपेश बघेल ने बड़ा बयान देते हुए कहा कि छत्तीसगढ़ राज्य बिजली के क्षेत्र में सरप्लस उत्पादन वाला राज्य है. बावजूद इसके यहां अगर बिजली कटौती हो रही है तो इसके लिए बिजली विभाग में मौजूद बीजेपी मानसिकता वाले अधिकारी ही हैं. साथ ही यह भी कहा कि ऐसे अधिकारियों पर जल्द कड़ी कार्रवाई की जाएगी.
छत्तीसगढ़ में बिजली की मांग और आपूर्ति का गुणा-गणित
अप्रैल 2019 में अधिकतम 4500 मेगावॉट की आपूर्ति की गई. मई 2019 में मांग के अनुरूप 4200 मेगावॉट की आपूर्ति की गई. हर आधे घंटे की रिपोर्ट के अनुसार औसतन 58 मेगावॉट सरप्लस बिजली मौजूद. अक्टूबर 2018 से दिसंबर 2018 तक आचार संहिता के कारण मेनटेंनस नहीं हुई. मार्च 2019 से 27 मई 2019 तक आचार संहिता के कारण मेनटेंनस नहीं हुई.
आचार संहिता के तुरंत बाद आंधी-तूफान के कारण मेनटेंनस में परेशानी हई. बारिश पूर्व पूरी तरह से मेनटेंनस करना विभाग के लिए बड़ी चुनौती है. 28 मई को ट्रांसफर्मर खरीदी-संधारण, सब स्टेशन के लिए टेंडर जारी हो चुके हैंं.
अघोषित बिजली कटौती पर मचे राजनीतिक घमासानों के बीच तमाम दावे और हकीकत भले ही कुछ कहें लेकिन यह सच है कि अघोषित बिजली कटौती से लोग परेशान हैं और इसका जवाब शायद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के पास भी नहीं है और यही वजह हैं कि विभाग से लेकर सूबे के मुखिया होने के बाद भी सीएम बिजली कटौती की जिम्मेदारी बीजेपी मानसिकता वाले अधिकारियों पर डाल रहे हैं. बहरहाल देखना होगा कि इस समस्या से लोगों को निजात कब तक मिल पाता है.