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छत्तीसगढ़ की परंपरा के अनुसार, धान की झालर क्यों लगाए जाते हैं घर के बाहर

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रायपुर। छत्तीसगढ़ में अनेक तीज-त्यौहार मनाएं जाते हैं. हर त्यौहार का अपना एक अलग महत्व होता हैं, और उसे मनाने का तरीका भी अनोखा होता हैं. इसी कड़ी में अब दीपावली का त्यौहार भी नज़दीक हैं. इस पर्व पर घर के मुख्य द्वार को सजाने के लिए अनेक सजावटी सामान के बीच छत्तीसगढ़ के धान की बाली से बनी झालर भी इस समय बाजार में बिक रही है और इसे खूब पसंद भी की जा रही है. पूजा में धान का महत्व होने के चलते इसे लोग पूजन सामग्री के साथ खरीद रहे हैं. कई लोग अपने घर के मुख्य द्वार को सजाने के लिए भी धान की बाली की झालर खरीद रहे हैं।
छत्तीसगढ़ की परंपरा के अनुसार, धान की झालर को अपने घरों की सजावट कर लोग अपनी सुख और समृद्धि के लिए मां लक्ष्मी के प्रति धन्यवाद ज्ञापित करते हुए उन्हें पूजन के लिए आमंत्रित करते हैं। ऐसा माना जाता है कि उनका यह आमंत्रण उन चिड़ियों के माध्यम से देवी तक पहुंचता है, जो धान के दाने चुगने आंगन और दरवाजे पर उतरती हैं।
पक्षियों के लिए रखा जाता है धान
धान का कटोरा माने जाने वाले छत्तीसगढ़ के ग्रामीण इलाकों में दहलीज पर चिरई (चिड़िया) चुगने टांगने की परंपरा चली आ रही है. जब धान पककर तैयार हो जाता है तो धान काटने के बाद बालियों का झूमर बनाकर द्वार पर लगाया जाता है ताकि गौरैया, कबूतर, कोयल व अन्य पक्षी दाना चुग सकें. दीवाली में कई प्रकार के फलों के साथ ही चावल से बनाए जाने वाले लाई, बताशा (शक्कर पारा) और देशी फलों को लक्ष्मी पूजा में शामिल किया जाता है।
प्रदेश धान का कटोरा कहलाता है क्योंकि यहां का मुख्य फसल धान होता है और धान से ही यहा के लोगों को पैसा मिलता है. इस लिए धान की पूजा कर सदियों से चली आ रही है. परंपरा को निभाई जाती है. इसी लिए बाजार में धान से बनी बालियों की पूछपरख होती है।