नांदणी। नांदणी मठ में, दिगम्बर जैनाचार्य 108 श्री विशुद्ध सागर जी गुरुदेव ने धर्मसभा को संबोधन करते हुए कहा कि -अंतिम तिर्थेश वर्धमान स्वामी के शासन में हम सभी विराजते हैं। तीर्थंकर भगवान की पीयूष देशना जिनेंद्रवाणी जगतकल्याणी है। यह सर्वज्ञशासन, नमोस्तुशासन जयवन्त हो। जयवन्त हो वितरागी श्रमणसंस्कृती।
आचार्यश्री विशुद्ध सागर जी गुरुदेव ने कहा की – ज्ञानियों किसी से भी तुरंत प्रभावित नहीं होना। मित्रों जानों इस रहस्य को,आप खाना लेकर दुकान जाते ही होंगे, कभी न कभी अपने पिताजी के लिए भी दुकान पर खाना लेकर गए होंगे,आप उस दिन भी भोजन लेकर गए थे जिस दिन रिमझिम रिमझिम बारिश गिर रही थी,लेकिन टिफिन बंद था,पानी की बूंदे टिफिन पर गिरी थी। पर भीतर रखी खीर,पूड़ी को कुछ नहीं हुआ।
मित्रों जब सीलबंद टिफिन में पानी की बूंदे कुछ नहीं कर सकी, ऐसे आप चाहो देश विदेश में कही भी जाओ, जैसे पैक टिफिन में पानी प्रवेश नहीं कर सका, ऐसे आप अप्रभावित रहना,अपना भी ढक्कन बंद करके रखना,चाहे आप देश में जाओ या विदेश में जाओ, धर्म कमाने जाना।
आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी गुरुदेव ने कहा कि विज्ञान धर्म हो न हो,लेकिन धर्म विज्ञान है। विज्ञान मात्र विज्ञान है,परंतु धर्म वीतराग विज्ञान है। इस वीतराग विज्ञान को जिसने समझ लिया, उस जीव ने विश्व को समझ लिया। सुखमय जीवन जीने के लिए आपने अज्ञान का आश्रय लिया है तो संक्लेषता को प्राप्त हुए। और सुखमय जीवन जीने के लिए आपने विज्ञान का आश्रय लिया है,विश्वास मानिए क्लेष से पूरित होंगे। मित्रों यदि आपने सुखमय जीवन जीने के लिए धर्म का आश्रय लिया है तो परम सुखी हो जाओगे।
आचार्य श्री विशुद्ध सागर महाराज जी ने कहा कि लोग कहते हैं मैं निरोगी रहूं,स्वस्थ रहूं | विज्ञान कह रहा है गर्म पानी पियो। मित्रों विज्ञान जो कह रहा है वह मात्र शरीर को स्वस्थ करने के लिए गर्म पानी पिला रहा है। पर क्रूरता से भरा हुआ है। ज्ञानियों धर्म कहेगा जीवों की रक्षा करो, पानी को छानकर और प्रासुक करके पानी का प्रयोग करो। जीवों की रक्षा होगी। जब आप नाना जीवों की रक्षा करोगे,उसमें आप भी एक जीव हो। अप्रासुक बगैर छना पानी पियोगे तो शरीर में रोग होंगे।
आचार्य श्री विशुद्ध सागर महाराज जी ने कहा कि अब आप सवाल करते हो कि किसी से प्रभावित नहीं होंगे तो विकास कैसे करेंगे। मित्रों आप तो एक चींटी को भी देखकर चलते हो,ताकि जीव हत्या न हो, आपके दादा ने सिखाया है कि किसी को सताना नहीं। एक माँ ऐसी जगह सर्विस कर रही थी ,जहां उसको बच्चों को भोजन देना पड़ता है। एक दिन अधिकारियों ने कहा कि आप पहले भोजन खाओगे फिर बच्चों बच्चों को देंगे। उस मां ने कहा कि मैं नहीं खाऊंगी | तो उसे कहा गया कि आप पूरे बच्चों के अधिकारी हो,तो उस मां ने कहा हां मैं अधिकारी अवश्य हूं,लेकिन धर्म मेरा अधिकारी है। तब अधिकारियों ने उससे कहा आपको खाना ही पड़ेगा,उस मां ने कहा कि यहां अभक्ष भी बनता है, हम जैन हैं, मैं सर्विस छोड़ने को तैयार हूं लेकिन भोजन नहीं करूंगी। तब कार्य की योग्यता देखकर उन अधिकारियों को बदलना पड़ा,बोले ठीक है आप दूसरे को खिला देना परंतु आपका धर्म बोलता है तो मत खाना।