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जीवन में मिथ्यात्व रूपी अंधेरा सम्यक दर्शन श्रद्धा रूपी प्रकाश से दूर होता है – आचार्य श्री वर्धमान सागर जी

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पारसोला। आचार्य श्री वर्धमान सागर जी पारसोला नगर में संघ सहित विराजित हैं आज के धर्म सभा में आचार्य श्री ने उपदेश में बताया कि रात्रि के अंघकार को प्रकाश की एक किरण लाखों किलोमीटर दूरी से समाप्त कर देती है उसी प्रकार हमारे जीवन में आत्मा पर मिथ्यातव का अंधेरा सम्यक दर्शन ,श्रद्धा और धर्म से दूर होता है ।श्रद्धा का भाव प्रकाश का प्रतीक है ।अंधकार से सबको भय लगता है प्रकाश से भय दूर होता है । भयरहित जीवन में धर्म आता है ।क्योंकि धर्म प्रकाश देता है। वर्तमान में समय के साथ व्यक्ति मूल से दूर होता जा रहा है जिनेंद्र भगवान हमारे मूल है भगवान के गुणो की भक्ति करना चाहिए भगवान की भक्ति से जीवन में प्रकाश आता है मिथ्यात्व दूर होता है ।आचार्य श्री ने यह धर्म देशना पारसोला की धर्म सभा में प्रकट की। ब्रह्मचारी गजु भैया राजेश पंचोलिया अनुसार आचार्य श्री ने आगे बताया कि वर्तमान में आप उद्योगपति व्यापारी बनकर नश्वर भौतिक संपदा को एकत्र करते हैं, आचार्य श्री शांति सागर जी भी उद्योगपति थे वह धर्म के उद्योगपति थे उन्होंने चारित्र ,ज्ञान तप जाप आदि अध्यात्मिक संपदा एकत्र की थी जो की शाश्वत सुख प्रदान करती है। बचपन से उन्होंने धर्म और स्वाध्याय की संपदा एकत्र की थी। आचार्य श्री ने मैत्री भाव का जिक्र कर बताया कि मैत्री धर्म मय और करुणावान होती है। आचार्य शांति सागर जी का एक प्रसंग बताया कि उनके स्वाध्याय प्रेमी मित्र को रोग होने पर उन्होंने करुणाभाव से मित्रता को निभाकर उसकी सम्यक समाधि करवाई ।आचार्य श्री ने बच्चों के संस्कार पर काफी जोर दिया कि बच्चों को संस्कार देने के पहले स्वयं को संस्कारित होना जरूरी है ।गर्भवती महिलाओं को धर्म ध्यान पूर्वक समय बिताना चाहिए अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु का जिक्र कर बताया कि उसने गर्भ में चक्रव्यूह में प्रवेश की कला सीखी थी इसी प्रकार वर्तमान में जो आप करते हैं बच्चों पर उसका वैसा ही प्रभाव होता है ।आचार्य शांति सागर जी ने जिनेंद्र भक्ति से जिन धर्म का संकट कई बार दूर किया। आचार्य शांति सागर जी चक्रवर्ती कहे जाते हैं क्योंकि उन्होंने धर्म के 6 खंडों पर विजय प्राप्त की थी ।उन्हें पूर्व जन्म के मुनि धर्म के संस्कार प्राप्त थे, जीवन में श्रद्धा बहुत जरूरी है देव शास्त्र गुरु के प्रति श्रद्धा से जीवन का निर्माण होता है इसके पूर्व शिष्या आर्यिका पद्मयश मति माताजी ने आचार्य शांति सागर जी का गुणानुवाद किया। जयंतीलाल कोठारी अध्यक्ष जैन समाज तथा ऋषभ प्रचोरी चातुर्मास कमेटी अध्यक्ष अनुसारआगामी 13 से 15 अक्टूबर तीन दिवसीय कार्यक्रम के लिए भव्य पंडाल निर्माण और अन्य व्यवस्था की तैयारी युद्ध स्तर पर चल रही है। आचार्य पद प्रतिष्ठापना कार्यक्रम की पत्रिका समाज जैन द्वारा संपूर्ण राजस्थान के अनेक नगरों में व्यक्तिगत रूप से जाकर वितरित की जा रही है और उन्हें पधारने हेतु आमंत्रित किया जा रहा है।