पितृपक्ष में पितरों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण और श्राद्ध किया जाता है। गरुड़ पुराण के अनुसार पितरों की आत्मा की शांति के लिए जो मनुष्य तर्पण करता है, उसे पितृदोष से मुक्ति मिलती है। साथ ही जीवन की सभी बाधाएं भी दूर होती हैं। पितरों का श्राद्ध या तर्पण करते समय कुछ नियमों का ध्यान रखना भी बेहद जरूरी है। जैसे, पितरों का श्राद्ध कहां-कहां किया जा सकता है, इससे भी कुछ नियम जुड़े हुए हैं। आइए, इसके बारे में विस्तार से जानते हैं।
घर की इस दिशा में करें श्राद्ध
पितृपक्ष में अगर आप अपने पितरों का तर्पण घर पर कर रहे हैं, तो आपको दक्षिण दिशा में मुंह करके पितरों का तर्पण करना चाहिए। दक्षिण दिशा यमलोक की दिशा मानी जाती है, इसलिए इस दिशा में ही तर्पण करना चाहिए क्योंकि इस दिशा में किया गया श्राद्ध सीधे पितरों तक पहुंचता है।
नदी के तट पर कर सकते हैं श्राद्ध
गरुड़ पुराण में इस श्राद्ध से जुड़े इस नियम का भी उल्लेख मिलता है कि आप नदी के तट पर भी श्राद्ध कर्म कर सकते हैं। आप किसी पवित्र नदी, समुद्र के किनारे बैठकर भी पूरे विधि-विधान के साथ पितरों के नाम का श्राद्ध कर सकते हैं।
बरगद के पेड़ के नीचे भी कर सकते हैं श्राद्ध
पितृपक्ष में अगर आप अपने पितरों का तर्पण घर पर कर रहे हैं, तो आपको दक्षिण दिशा में मुंह करके पितरों का तर्पण करना चाहिए। दक्षिण दिशा यमलोक की दिशा मानी जाती है, इसलिए इस दिशा में ही तर्पण करना चाहिए क्योंकि इस दिशा में किया गया श्राद्ध सीधे पितरों तक पहुंचता है।
गौशाला में भी कर सकते हैं श्राद्ध
गरुड़ पुराण के अनुसार गौशाला में भी आप श्राद्ध कर सकते हैं। गौशाला को गोबर से लीपने के बाद पूरी विधि-विधान के साथ इस पर पूजा का सामान रखें। फिर पूरे विधि-विधान के साथ गौशाला में दक्षिण दिशा की तरफ बैठकर पितरों का श्राद्ध कर सकते हैं।
जंगल में बैठकर भी कर सकते हैं श्राद्ध
जंगल को हमेशा से पवित्र माना जाता है क्योंकि वन या जंगल प्रकृति का मूल भाग रहे हैं। जंगल में प्रकृति की गोद में बैठकर भी कोई मनुष्य अपने पितरों का श्राद्ध कर सकता है। जंगल में उपलब्ध फल, फूल, जल आदि से भी पितरों का श्राद्ध किया जा सकता है।