हैदराबाद। अभी पर्वराज पर्युषण पर्व गये – लोगों ने एक दूसरे से क्षमा मांगी और लोगों ने भी हँसकर एक दूसरों के इस अभिवादन को स्वीकार किया। क्षमा का हमारे जीवन में अब इतना ही अर्थ है, कि गलती दूसरों से होती है, तो क्षमा हम तीसरे से मांगते हैं, या हमने गलती की और क्षमा दूसरों से मांग ली।
क्षमा का जो आध्यात्मिक मूल्य है, वह अब एक ही शब्द में सिमट गया है। साॅरी। क्षमा मांगना सॉरी कहने जितना आसान नहीं है। क्योंकि —
क्षमा से क्रोध का विसर्जन होता है,
नम्रता से – मान गलता है,
सरलता से – माया मिटती है, और
सन्तोष से मन के लोभ को जीतते हैं।
ये चारों वाक्य बहमूल्य अर्थ के बोध को देने वाले हैं। जो इनके अर्थ को समझकर जीना चाहते हैं — वे कभी क्रोध के शिकारी नहीं बन सकते। क्रोध के पीछे अपेक्षाएं छुपी होती है।
आप मन्दिर से घर जा रहे हैं, रास्ते में एक कुत्ता आपको देखकर भौंकता है, तब आप उस समय कोई भी प्रतिक्रिया नहीं देते, और यदि वहीं से आपका प्रतिद्वन्दी गुजर रहा हो और उसने आपको देखा और कहा कुत्ता – तब आपकी प्रतिक्रिया क्या होगी-? कुत्ता भौंकता है तो कोई जवाब नहीं देता परन्तु आदमी – आदमी को देखकर भौंकता है तो आप नाराज हो जाते हैं और प्रतिक्रिया देना शुरू कर देते हैं। प्रतिक्रिया क्यों देना बाबू–???
क्षमा का अर्थ है अपेक्षाओं को समाप्त करना। अन्यथा क्रोध का महल अपेक्षाओं की नींव पर ही टिका होता है। क्रोध तब आता है जब अपेक्षाओं की उपेक्षा होती है। क्रोध का सम्बन्ध अपेक्षाओं से है, तो क्षमा का सम्बन्ध दूसरों से नहीं बल्कि खुद के विवेक के बोध से है। जब आप स्वयं से सन्तुष्ट होते हैं, तो क्षमा का भाव पैदा होता है। क्षमा क्रोध के विपरीत नहीं है। क्षमा – क्रोध के अभाव का नाम है। अपेक्षाओं के सागर में ही क्रोध की लहरें हिलोरे मारती है…!!!।