नांदणी। पर्युषण महापर्व पर आयोजित “आध्यात्मिक श्रावक संयम साधना संस्कार शिविर” में संबोधन करते हुए आचार्य विशुद्ध सागर जी महाराज जी ने कहा कि- ब्रह्मचर्य महान् व्रत है। ब्रह्मचर्य सिद्धि का साधन है। ब्रम्हचर्य साधनाओं का द्वार है। ब्रम्हचर्य व्रतों का सम्राट है। ब्रह्मचर्य सुख-शांति- आनन्द का दाता है। ब्रम्हचर्य वीरों का व्रत है। ब्रह्मचर्य अहिंसा है। ब्रह्मचर्य संयम है। ब्रम्हचर्य कठोर व्रत है। ब्रह्मलीनता परमोत्कर्ष है। ब्रह्मचर्य महा- व्रत है। ब्रह्मचर्य गुण है। ब्रम्हचर्य रत्न है। ब्रम्हचर्य तिलक है। शील सर्वस्व है। शील सज्जनों का श्रृंगार है। शील सम्पत्ति है। शील का सम्मान है। शील की कीमत है।
ब्रम्हचर्य की साधना से मंत्र की सिद्धि होती है। विवेक की जाग्रति होती है। आत्मिक शक्तियाँ जानत होती हैं। शरीर स्वस्थ, सुन्दर ओज युक्त होता है। ब्रम्हचर्य अंक है और शेष सर्व-साधनायें शून्य के समान हैं। ब्रह्मचर्य चारित्रोन्नति का बीज है। ब्रह्मचर्य से प्रज्ञा प्राञ्जल होती है। ब्रह्मचर्य से संयम तप, ज्ञान, साधना, प्रज्ञा, यश, पुण्य वर्धमान होता है। ब्रह्मचारी को देव भी नमस्कार करते है।