कोल्हापूर। आचार्य श्री शांतिसागर जी महाराज के बारे में हम क्या ही कह सकते हैं। मेरा परम सौभाग्य है की ऐसे चारित्र्य चक्रवर्ती आचार्य श्री शांतिसागर जी महाराज का वर्तमान में आचार्य पदारोहण का शताब्दी वर्ष चल रहा है। सन 1924 में उन्हें समडोली महाराष्ट्र में आचार्य पद पर समाज ने प्रतिष्ठापित किया था। और वे बीसवीं शताब्दी में प्रथम आचार्य के रूप में इस धरती पर हम सबके लिए दिगदिगन्त बने थे। आज भी उन आचार्य महाराज की सारी बातें चाहे हमने दर्शन न किये हो, लेकिन पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी के मुख से जब हम सुनते हैं। तो ऐसा लगता है कि हमने भी आचार्य श्री शांतिसागर महाराज के साक्षात दर्शन ही कर लिए।
पूज्य गणिनी श्री ज्ञानमती माताजी के रूप में आज हमें आचार्य श्री शांतिसागर जी महाराज का दर्शन परिलक्षित होता है | क्योंकि पूज्य ज्ञानमती माता जी ने अपने जीवन में अपने गुरुणां गुरु प्रथमाचार्य चारित्र चक्रवर्ती श्री शांतिसागर जी महाराज के हर आदेश को,हर संदेश को,हर उनकी बातों को, अपने जीवन में अंगीकार किया है।और आज वे उन्हीं शांतिसागर जी महाराज के प्रथम पट्टशिष्य आचार्य श्री वीरसागर जी महाराज से दीक्षित होकर सन 1956 में माधोराजपुरा (राज.) में इनकी दीक्षा हुई | और आज भी हम सबको विगत 72 साल से लगातार जैन धर्म के पताका फहराने का संदेश, आदेश और आशीर्वाद दे रही है।
ऐसी पूज्य माताजी आज 90 वर्ष की हो रही है। जिन्होंने आचार्य शांतिसागर जी महाराज के साक्षात संदेशों को, उनके साक्षात दिग्दर्शन को, पूरे विश्व में गुंजायमान किया है। पूज्य माताजी का कोई भी प्रवचन ऐसा नहीं होता है। जब वे शांतिसागर जी महाराज के बारे में कोई विषय, कोई बात, ना बताए या उनकी जयजयकार ना करें।
आज ऐसे शिष्यों का मिलना भी बहुत अनूठा है | जो अपने गुरु के भी गुरु,गुरुणां गुरु, गुरु और समस्त गुरु परम्परा को आज इस प्रकार से प्रभावित, प्रसारित करती हैं, की पूरे देश में हम सब एक आदर्श गुरु परंपरा को प्राप्त करते हैं।
आचार्य शांतिसागर जी महाराज हमारी पूरी जैन समाज के आदर्श हैं। पूरी संत समुदाय के आदर्श हैं। उनकी ही बातों को, उनके ही बताए मार्ग को,पालन करते हुए आज हमारे जैन समाज के दिगंबर जैन समाज के सारे संत समुदाय, आर्यिका माताएं, दिगंबर मुनि सभी लोग उनके बतायें मार्ग पर मुलाचार ग्रंथ में बताई बातोंका पालन कर रहे हैं।
ऐसे आचार्य शांतिसागर जी महाराज के प्रती हमारा शत शत नमन हैं। और उनके आचार्य पदारोहन शताब्दी वर्ष की यह मिसाल हम सबके लिए बहोत अच्छी कायम हो। हमारे लिए सबके लिए अमर बन जाए।
ऐसी मंगल प्रार्थनाओंके साथ में आचार्य श्री शांतिसागर जी महाराज आज भी पूजे जायें आनेवाले हजारो साल तक भी उनका नाम दिगदिगंत रहे, उनकी चर्या दिगदिगंत रहे, उनके संदेश दिगदिगंत रहे,और आनेवाली पिढी भी आचार्य श्री शांतिसागर जी महाराज के बतायें संदेशो और मार्ग पर चलते हुये जैन धर्म की पताका को फैराती रहे | और दिक्षा लेकर के मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करती रहे ऐसी मंगल भावना हैं।