कोल्हापूर। स्वस्ति श्री जिनसेन भट्टारक पट्टाचार्य महास्वामी संस्थान मठ नांदणी में श्रावक संयम साधना संस्कार शिविर का आयोजन 8 सितंबर से 17 सितंबर 2024 तक हो रहा हैं | जिसमे अध्यात्मयोगी आचार्य श्री विशुद्धसागर जी महाराज (25 पिच्छी संसघ) का मंगल सानिध्य प्राप्त होगा |
धन्य हैं वे नांदणी महाराष्ट्र के श्रावक जिनको पर्युषण पर्व में आचार्य श्री विशुद्ध सागर महाराज जी के मुखारविंद से अमृत पान का अवसर मिला हैं |
जैन धर्म के सभी त्योहारों में पर्युषण पर्व बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है । आचार्य विशुद्ध सागर महाराज जी ने श्रद्धालुओं को संबोधित किया की – पर्युषण पर्व साल में तीन बार आता हैं जो माघ, चैत्र और भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी से प्रारंभ होकर चोदश तक चलते हैं l ये दशलक्षण पर्व न केवल जैनो को, आपितु समुचे प्राणी – जगत को सुख – शांति का संदेश देते हैं |
सारा ब्रह्मांड ऊर्जा के बल पर ही संचालित है। ऊर्जा का स्त्रोत परमाणु में इलेक्ट्रोन-प्रोटन रूप है, तो शरीर में अनंत शक्ति का स्त्रोत आत्मा है। जिस प्रकार शरीर में भोजन करने पर रसादि करने पर खून आदि बनकर अंतिम शक्तिशाली तत्व बनता है, जो कि महाशक्तिशाली होता है।
यदि हम उस शक्ति को अपने निज स्वरूप में लीन होकर पूरे शरीर में समाहित कर लें, तो हमारे अंदर निश्चित रूप से ब्रह्मत्व प्रकट हो जाता है।
आचार्य श्री विशुद्ध सागर महाराज जी ने कहा कि जिस शक्ति के सामने सारे ब्रह्मांड की शक्ति भी कुछ नहीं हैं। उसी आत्मशक्ति को पाने के लिए संत व महापुरुष तपस्या करते हैं। तप के द्वारा अपने अंदर की ऊर्जा को रिजर्व करते हैं क्यों कि ईश्वर महाशक्ति का पुंज है। ऐसी महाशक्ति को पाने के लिए हमें सबसे पहले सारी ऊर्जा को एकत्रित करके शक्तिशाली होना पड़ता है। इसी शक्ति को पाने के लिए संत लोग ब्रह्मचर्य व्रत को धारण करते हैं।
आचार्य श्री विशुद्ध सागर महाराज जी ने कहा कि इसी ब्रह्मचर्य को धारण करने पर संत को अनेक मंत्र-तंत्र की सिद्धियां स्वयं ही प्राप्त हो जाती हैं। यही कारण है कि पूरे ब्रह्मांड में तपस्या में लीन संत का सामना करने में सारे इन्द्र भी सक्षम नहीं है। ऐसे संत के तेज के सामने सारी दुनियां की शक्ति भी कमजोर पड़ जाती है।
आचार्य श्री विशुद्ध सागर महाराज जी ने कहा कि जिस प्रकार पानी को ऊपर उठाने के लिए यंत्र की जरूरत होती हैं, वैसे ही अपने अन्दर शक्तियों को विकसित करने के लिए ब्रह्मचर्य के महामंत्रों की आवश्यकता होती है। जो लोग ब्रह्मचर्य का पालन नहीं करते वे लोग शरीर और आत्मबल से कभी भी ताकतवर नहीं होते।
ऐसे लोग निश्चित रूप से शारीरिक व मानसिक दोनों से कमजोर होते हैं। प्रणायाम व ध्यान करने से ब्रह्मचर्य को मजबूत बनाया जा सकता है और शरीर की सारी ऊर्जा को एकत्रित करके मस्तिष्क तक ले जाया जाता है इससे वह ऊर्जा ज्ञान में ही नही महाज्ञान में बदल जाती हैं।
अपने अंदर ईश्वर को विद्यमान निज स्वरूप को पहचाने –
आचार्य श्री विशुद्ध सागर महाराज जी ने कहा कि भगवान महावीर, हनुमान व श्रीराम ने भी अपनी ऊर्जा को उर्ध्यवायाम देकर सर्वज्ञान को पाया है, जो सर्वज्ञ हुए हैं। अतः प्रत्येक व्यक्ति को ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करना चाहिए और अपने अंदर ईश्वर को विद्यमान करके सभी सांसारिक क्रियाओं से दूर रहकर अपने निज स्वरुप को पहचानना चाहिए, तभी हम ईश्वर की सच्ची आरधना कर सकते हैं। अतः हर व्यक्ति के जीवन में ब्रह्मचर्य व्रत होना चाहिए।
दिगंबराचार्य विशुद्ध सागर महाराज जी ने कहा – हे माँ, घर के काम न करना पडे इसलिए शास्त्र मत पढना, कर्मो का नाश हो जाये इसलिए शास्त्र पढना |