अहंकार के विसर्जन से ही परमात्मा का दर्शन होता है- भावलिंगी संत
दिल्ली। कृष्णानगर जैन मंदिर दिल्ली में परम पूज्य जिनागम पंथ प्रवर्तक, आदर्श महाकवि भावलिंगी संत श्रमणाचार्य श्री विमर्शज्ञागर जी महामुनिराज के विशाल चतुर्विध संघ का अद्भुत चातुर्मास महोत्सव चल रहा है। प्रतिदिन प्रातः 8:00 बजे चाहे भक्तामर महिमा का समय हो, दोपहर 3:30 बजे, स्वाध्याय का समय हो शाम 6:30 बजे भक्तिगंगा महोत्सून या टू डेज सोलूशन का टाइम हो या फिर वैयावृति का समय हो गुरुभक्तों का कारवां बढ़ता ही जा रहा है। पूरी दिल्ली N.C.R. में यह चातुर्मास चर्चा का विषय बना हुआ है। पूज्य आचार्य श्री का दमकता उमा मुखमण्डल एवं ओजस्वी वाणी एवं चतुर्यकालीन साधकों जैसी – कठोर चर्या से प्रभावित हो, दूर दूर से सैकड़ो गुरुभक्त रोज कृष्णानगर – पधारकर धर्मलाभ ले रहे हैं। भक्तामर महिमा में तृतीय काव्य की व्याख्या करते हुये भावलिंगी संत ने कहा कि जब भी परमात्मा के द्वार पर जाओ तो ज्ञान का अहंकार लेकर मत जाना, धन-वैभव का अहंकार लेकर मत जाना भगवान ने जैसा भक्त का स्वरूप बताया है वैसा ही विनयवान भक्त बनकर प्रभु के द्वार पर जाना। अगर भक्त बनकर जाओगे तो भक्ति का फल भी प्राप्त होगा, और अहंकार लेकर जाओगे ती अहंकार का फल दुर्गति की प्राप्ति होगी भक्ति से भरा भक्त प्रभु के द्वार से अपना पुण्य कोष भरके लौटता है। और अहंकार से भरा व्यक्ति प्रभु के दरवार से पाप का अर्जन करके लौटता है। जब तक श्रद्धा सच्ची नहीं होती और ज्ञान सम्यक नहीं होता तब तक परमात्मा को सन्मुख पाकर भी वह परमात्मा से भेंट नहीं कर पाता । श्रद्धा सच्ची होती है तो भगवान सिद्धालय में भी क्यों न हो भक्त उन्हें अपने श्रच्छालय में विराजित कर लेता। परमात्मा के सन्मुख वर इतना सहज, सरल, और विनम्र हो जाता है कि प्रभु के सन्मुख वह अपना कुछ अस्तित्व ही नही समझता है। कहता भगवन मैं तो – अकिंचन आपके चरणों का दास हूँ। और मेरे लिये सबकुछ आप हो। प्रतिदिन यमुना पार समाजो द्वारा गुरु चरणों में पधारकार शुभाशीष प्राप्त करने का क्रम जारी है इसी क्रम में आज णवकार जैन समाज जमुना पार की कार्यकारिणी के सदस्य पधारे और शुरु आशीष प्राप्त किया श्री प्रदीप जी संजय जी देवेन्द्रजी विराग जी आदि पधारे। साज के श्रावक श्रेष्ठी बनने का सौभाग्य श्री राजेश जो श्रीमति संध्या जैन राधेपुरी वालों ने प्राप्त किया।