भक्त सच्चे बनो, कच्चे नहीं – आचार्य श्री विमर्शरसागर जी सुनिराज
दिल्ली। श्री महावीर दिगम्बर जैन मंदिर कृष्णानगर दिल्ली में प्रथम बार वर्षायोग करने पधारे जिनागम पंथ प्रवर्तक, जीवन है पानी की बूँद’ महाकाव्य के रचयिता या परम पूज्य भावलिंगी संत राष्ट्रयीगी श्रमणाचार्य श्री 108 विमर्शरसागर जी महामुनिराज ने प्रतिदिन की भाँति आज भी अपने विश्वविख्यात जीवन है पानी की बूँद महाकाव्य भी पन्तियों से धर्मसभा की शुरुवात करते हुये कहा कि-
भक्ति तो नजराना है, प्रभु को हृदय बुलाना है।
प्रभु वन्दन प्रभु स्तुति से, सोया भाग्य जगाना है।।
भक्ति भावों में, उत्साह जगाये रे ।
जीवन है पानी की बूँद कब मिट जाय रे ।।
होनी अनहोनी, कब क्या घट जाये रे ॥
सच्चे भक्तों को ही प्रभु की भक्ति प्राप्त हो पाती है। जो कच्चा भक्त होता है वो भगवान के निकट आकर भी उनका सानिध्य पाकर भी भक्ति की उपलब्ध नहीं हो पाता। सच्चा भक्त ही भक्ति के मूल्य को समझ पाता है। भक्ति का मूल्य श्रद्धा, और समर्पण है। अगर हम श्रद्धा और समर्पण की कीमत चुका सकते है’ तो निश्चित ही हम भक्ति को उपलब्ध हो सकते है। क्योंकि जिसके हृदय में श्रद्धा और समर्पण का भाव होता है उसी के हृदय में भक्ति निवास करती है। वो ही भक्ति के सम्यक मूल्य को समझ सकता है।
भक्त के अंदर जब समर्पण का भाव होता है तो भगवान के प्रति फिर वह शिकायत का भाव नहीं रखता । भक्त कहता है जो मेरे जीवन में – प्रतिकूलता बन रही है उसमें भूल मेरी ही रही होगी अपराध मेरा ही रहा होगा। मैं ही आपके द्वारा बताये मार्ग से प्रतिकूल चला है; आपकी भक्ति से ये कर्म भी में अवश्य ही काट दूंगा।
आचार्य श्री विमर्शसागर जी गुरुदेव के मंगल उपदेश के पूर्व आज के श्रावक श्रेष्ठी श्री नरेन्द्र कुमार जैन (नेताजी) सपरिवार द्वारा मंगल दीप प्रज्ज्वलन, पाद प्रक्षालन, शास्त्र भेंट एवं संगीतमय गुरु पूजन आदि पुण्यवर्धन के मंगल कार्य सम्पन्न हुये । आज श्री भक्तामरमहिमा में तृतीय काव्य की विशेष व्याख्या आचार्य श्री द्वारा की गई।