Home रायपुर जैनधर्म प्राकृतिक धर्म- भावलिंगी संत श्रमणाचार्य विमर्शसागर जी

जैनधर्म प्राकृतिक धर्म- भावलिंगी संत श्रमणाचार्य विमर्शसागर जी

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  •  मनुष्य का जीवन पानी की बूंद की तरह यह मनुष्य का जीवन पानी की बूंद भी तरह होता है।

कृष्णानगर | नदी, सरोवर झील की तरह विशाल नहीं है अपितु यानी की बूँद भी तरह अल्प है। उस भल्प जीवन में मनुष्य की परीक्षा होती है कि वो अपने इस बूंद से जीवन को सागर की तरह विशाल कैसे बनायेगा। बिरले जीव होते वो बूँद की तरह जन्म लेकर ऐसा महान पुरुषार्थ भरते हैं कि बूँद को सागर की तरह बना लेते हैं। शेष लोग तो कुंद से जीवन को मिटाकर नई बूँद की तलास में दुनिया से विदा हो जति हैं। उक्त उद्‌गार परम पूज्य जिनागम पंथ प्रवर्तक आदर्श महाकवि भावलिंगी संत श्रमणाचार्य श्री विमर्शसागर जी महामुनिराज ने कृष्णानगर में धर्मसभा को संबोधित करते हुये व्यक्त किये। आचार्य श्री ने कहा कि धर्म के बिना जीवन विष का छूट है। धर्म के बिना भमृत्व का मार्ग प्रशस्त नहीं होता । धर्म करने वालों को, धर्म के स्वरूप का अनुभव करने वालों को दुनिया में कोई मार नहीं सकता, क्योंकि धर्म अमर है और उसी धर्म की उन जीवी ने हृदय में धर्म की बरसा रखा है। और धर्म कभी मरण को प्राप्त नहीं होता, जिसके हृदय में धर्म का बास हो उसे दुनिया में कोई भी ताकत मार नहीं सकती । धमटिमा जीव मृत्यु भो भी मार डालते हैं और अपने अमर तत्त्व को पर्याय में’ प्रगट कर लेते हैं। अमृत्व आत्मा का स्वभाव है. जन्म और मरण आत्मा के स्वभाव नहीं, पर्याय का परिणमन है। तीर्थकर देव ने हमें ऐसे प्राकृतिक धर्म से परिचय कराया है जी हमें प्रकृति के साथ जीना सिखाये, वह प्राकृतिक धर्म एक मात्र जैन धर्म है। संसार में चारों गतियों में जीव का जन्म होता है तो दिगम्बर अवस्था में ही जन्म होता है। यह दिगम्बर जैन मुद्रा प्राकृतिक मुद्रा है, इस मुद्रा में कोई बनावटी, दिसवावटी और माया के प्रपंचों से सहित कार्य वर्जित हैं। इस धरती पर प्रकृति के साथ अगर कोई जीता है वो दिगम्बर संत ही जीते हैं। कृष्णानगर में प्रतिदिन प्रातः 8:00 मंगल प्रवचन, दीप. 3:30 स्वाध्याय, 6:30 भक्ति गंगा और इज्ज ‘सालूसन, आरती में भारी संख्या में लोग बजे लोग शामिल हो रहे है |