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श्रमण संस्कृति के इतिहास में गुरुवर विरागसागर जी की आदर्श समाधि – भावलिंगी संत आचार्य श्री विमर्शसागर जी मुनिराज नजफगढ़

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जालना | भरत क्षेत्र सहा नहीं गया गुरु का वियोग, रो पड़ा शिष्यों का हृदय, आँखें हो गईं सजल, दुलक पड़ी आखों से अश्रुधारा, जन विशाल चतुर्विध संयं महानामक 500-530 पीछी धारी साधु-संतों के महागुरु परम पूज्य शुद्धोपयोगी संत सूरिगच्छाचार्य गणाचार्य गुरुदेव श्री 108 विरागसागर जी महामुनिराज का सल्लेखना- समाधिमरण का समाचार सुना । महाराष्ट्र प्रान्त के जालना नगर में रात्रि 02:50 बजे पूर्णतः जागृत एवं सन्चेत अवस्था में मुनिवृन्दों के मध्य महामंत्र णमोकार का न्सु-स्मरण करते करते इस युग के महासंत गणाचार्य श्री विरागसागर जी महामुनिराज का देवलोक गमन हुआ। रात्रि में ही यह समाचार सम्पूर्ण भारतवर्ष हवा की तरह प्रसारित हो गया था। प्रातः काल का सूर्योदय होते-होते लाखों की संख्या में श्रद्धालु भक्तगण अंतिम गुरुदर्शन के लिए पहुंचने लगे थे। 04 जुलाई की मध्याहन बेला में सम्पूर्ण जैन विधि-विधान के अनुसार महासंत के पार्थिव शरीर को मुखाग्नि दी गई। सम्पूर्ण देशभर में विराजमान महासते के 500 शिष्य-शिष्याओं ने अपने गुरुदेव के चरणों में विनयांजलि द्वारा अपने भाव- सुमन समर्पित किए। गणाचार्य श्री सुयोग्य शिष्यों में भावलिंगी संत आचार्य श्री विमर्शसागर जी महामुनिराज “जीवन है। पानी की बूंदे” महाकाव्य के मूल रचियता के रूप में विख्यात हैं। विहार के दौरान जब आचार्यश्री को अपने गुरुदेव के वियोग का समाचार ज्ञात हुआ तब प्राचार्य श्री के सम्पूर्ण संघ की आँखें नम हो गई। तत्काल आचार्यश्री ने अपनी संघस्थ शिष्या बालब्रह्मकारिणी विशु दीदी सहित सभी त्यागी-व्रतियों को अपने गुरुदेव के अंतिम दर्शन के लिए प्रस्थान करा दिया। 04 जुलाई की प्रातः बेला में आचार्ययी ससंच पश्चिमी दिल्ली के नजफ -गढ़ में स्थित जैन तीर्थ भरत क्षेत्रम् पहुंचे। वहाँ विशाल विनयांजलि सभा में आचार्य श्री विमर्शसागर जी मुनिराज ने अपने गुरुवर महासने गणान्चार्य श्री विरागसागर जी महामुनिराम के चरणों में भान- श्रद्धासुमन समर्पित करते हुए एक दूरदर्शी विचारधारा धारण करने वाले महान आचार्य थे। कहा- हमारे गुरुवार । गुरुदेव ने अपने साधना काल में प्रत्येक कार्य सोच-समझकर एवं आगम आज्ञा पूर्वक सम्पापित किये हैं। आर जो यह समाचार प्राप्त हुआ, इस भवितव्यता से भी गुरुदेव पूर्व से ही परिचित थे । इसी कारण उन्होंने समय से पूर्व ही अपने पद व जिम्मेदारी को त्याग दिया था, वे पूर्णतः हलके होकर उर्ध्वलोक में गये हैं अतः निश्चित ही उपरिम स्वर्गों में गुरुदेव ने जन्म प्राप्त किया होगा। मुझे याद था रहे वे वात्सल्य भरे क्षण जो मैंने शुकदेव के चरणों में, उनकी गोद में सिर रखकर बिताये थे। गुरुदेव हमारे बीच नहीं रहे लेकिन वे हमारे साथ थे और हरदम हमारे पास में रहेंगे। 05 जुलाई शुक्रवार को जनसमुदाय के बीच नजफगढ़ जैन समान के अग्रह पर क्राचार्य श्री विमरे चागर जी ने कहा- 4 जुलाई- आचार्यश्री विरागसागर जी मुनिराज का समाधि दिवस ” अहिंसा शाकाहार दिवस” के रूप में मनाया जाए, यही मेरा ममल आाशीनार है।