बांसवाड़ा | आचार्य श्री वर्धमान सागर जी 30 साधुओं और मुनि श्री पुण्य सागर जी 19 साधुओं सहित बांसवाड़ा की खांदू कालोनी में विराजित हैं। सन 1950 में जन्मे, सन 1969 में दीक्षित , सन 1990 सेआचार्य पद पर पदस्थ पंचम पट्टाधीश आचार्य श्री वर्धमान जी का 35 वा आचार्य पदारोहण भक्तिपूर्वक चरण वंदना,जिनवाणी भेट ,पूजन गुणानुवाद सभा सहित मनाया
आर्यिका श्री महायशमति माताजी ने गुणानुवाद सभा का संचालन कर आचार्य श्री वर्धमान सागर जी में पूर्वाचार्यों के सभी गुण होना बताया ।
जो संयम धारण करते हैं वह आत्मा को पूज्यता पर ले जाने का पुरुषार्थ करते हैं बांसवाड़ा का पुण्य है कि यहां आचार्य शांति सागर जी महाराज की परंपरा के सभी आचार्यों का आगमन हुआ है। जैन धर्म में वह शक्ति है कि आप पाप क्रियायो को पुण्य संपदा में परिवर्तित कर सकते हैं। पाप में लिप्त जीवन में जैन धर्म वह साधन है जिससे पाप पुण्य में बदलता है। यह मंगल देशना आचार्य श्री वर्धमान सागर जी ने धर्म सभा में प्रगट की आपने आगे बताया कि प्रथमाचार्य शांतिसागर जी का जैन धर्म पर बहुत उपकार है ।वर्तमान साधु परंपरा उन्ही की की देन है ।आचार्य श्री ने बताया कि यद्यपि आचार्य पद आषाढ़ शुक्ल दूज को आता है पर श्रावको को अंग्रेजी मास से मनाने की आदत हो गई है। आचार्य श्री ने आचार्य शिवसागर जी ,आचार्य धर्म सागर जी, आचार्य अजित सागर जी महाराज के अनेक संस्मरण भाव विभोर होकर सुनाएं ।आचार्य श्री धर्मसागर जी की समाधि के बाद संघ के साधु अजमेर में थे तब पंडित हँसमुख जी शास्त्री आचार्य अजीतसागर जी का एक पत्र लेकर आए जिसका आशय यह था की मिलाने वाला तो दुर्लभ है, किंतु में प्रतीक्षा कर रहा हूं। आचार्य संघ के सभी साधु पत्र पढ़कर भाव विह्वल हो गए और संघ ने त्वरित गति से भिंडर की ओर बिहार किया। आचार्य श्री ने गुरु शिष्य के रिश्ते बाबद संस्मरण बताया कि शिष्य के ऊपर गुरु की कितना वात्सल्य होता है जब हमने आचार्य श्रीअजीतसागर जी के जब चरणों को स्पर्श किया तब हमारे नेत्रों की अश्रुधारा उनके चरण का प्रक्षालन अभिषेक कर रही थी ,वही हमारे गुरु आचार्य श्रीअजीतसागर जी के नेत्रों से प्रेमाश्रु की धारा हमारे मस्तक को भिगो रही थी।आचार्य श्री ने हमे आचार्य पद देने का निर्णय साबला में किया था ब्रह्मचारी गज्जू भैया ,समाज सेठ अमृत लाल अनुसार इसके पूर्व मुनि श्री पुण्य सागर जी ने गुणानुवाद मे बताया कि सनावद में जन्मे बालक श्री यशवंत जी ने धार्मिक शिक्षा आर्यिका श्री सुपार्श्व मति एवम आर्यिका श्री ज्ञानमति जी ने दी आचार्य कल्प श्री श्रुत सागर जी ने संघ में अध्ययन कराया। आपने आचार्य वर्धमान सागर जी के वात्सल्य ,सरलता,श्रुतज्ञान संयम साधना,समन्यवता गुण दृढ़ता,गुरुभक्ति,समर्पण भाव का गुणानुवाद किया। वर्ष 1993,2006 वर्ष 2018 में श्री बाहुबली भगवान के महामस्तकाभिषेक में सभी साधुओं के साथ समन्वय गुण की प्रशंसा की। आपने बताया हमारे दीक्षा गुरु जी 3 वर्ष में समाधि होने पर 13 वर्षो तक पुत्रवत स्नेह ,संबल दिया। श्री पुण्य सागर जी ने आचार्य श्री वर्धमान सागर जी के हृदय में हिमालय विशालता, सिंह समान पराक्रम, है आपके पैर में चक्र का निशान हैं जो धर्म प्रभावना का द्योतक हैं।आपने आचार्य पद का 50 वर्ष का पदारोहण मनाने की शुभ मंगल भावना प्रगट की। आर्यिका श्री सौरभ मति माताजी ने नेत्र ज्योति जाने और अनेक संस्मरण अश्रु पूर्ण नेत्रों से भाव विहल होकर बताए। दीक्षा के पूर्व के संस्मरण बताए।आज प्रातकाल गुरु वंदना में सभी 48 साधुओं ने 36 मुलगुण आचार्य श्री वर्धमानसागर जी महाराज की चरण वंदना प्रक्षालन परिक्रमा लगाकर भक्ति प्रदर्शित की।
राजेश पंचोलिया एवम अक्षय डांगरा अनुसार इसके पूर्व प्रातः शांतिधारा के पश्चात आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज का 35 वा आचार्य पदारोहण पूर्ण श्रद्धा और भक्ति पूर्वक मनाया गया आचार्य श्री के चरण प्रक्षालन का सौभाग्य पुण्य शाली परिवार को प्राप्त हुआ ।आचार्य श्री को शास्त्र 35 पुण्यार्जक परिवारों द्वारा भेंट किए गए जिसमें इंदौर के राजेश पंचोलिया ,सनावद के वारिस जैन , धरियावद से पधारे महावीर चंपावत सहित अनेक श्रावकों ने आचार्य श्री को जिनवाणी भेंटकर अपनी भक्ति प्रदर्शित की ।आचार्य श्री वर्धमान सागर जी का पूजन सौधर्म इंद्र बनकर करने का सौभाग्य नरेंद्र रारा परिवार गुवाहाटी को प्राप्त हुआ ।विभिन्न नगरों और स्थानीय समाज द्वारा आचार्य श्री की पूजन में विभिन्न द्रव्य चढ़ाए गए। पूजन मुनि श्री पुण्य सागर जी एवम आर्यिका श्री महायश मति जी ने कराई।