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साधु के जन्म और समाधि का महोत्सव मनाया जाता है-आचार्य श्री वर्धमान सागर जी

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बांसवाड़ा| महापुरुषो महान आत्माओं का जीवन और समाधिमरण मंगलकारी होता है आज के दिन आचार्य श्री वीर सागर जी से दीक्षित हमारे शिक्षा गुरु आचार्य कल्प श्री श्रुतसागर जी महाराज का समाधि दिवस है । आप सही मायने में श्रुत जिनवाणी के सागर रह कर नाम और साधु जीवन को सार्थक किया ।संसारी प्राणी जन्म का महोत्सव मनाते हैं किंतु महान आत्माओ , महापुरुषों संयम दीक्षा लेकर जन्म और मृत्यु दोनों का मंगल महोत्सव मनाया जाता हैं।
यह मंगल देशना बांसवाड़ा की धर्म सभा में आचार्य श्री वर्धमान सागर जी ने विनयांजलि सभा में प्रगट किए आचार्य श्री ने शिक्षा गुरु आचार्य कल्प श्री श्रुत सागर जी की गृहस्थ अवस्था का एक संस्मरण बताया कि श्री फागुलाल जी दोस्तों के साथ श्री सम्मेद शिखर की यात्रा करने गए शिखर जी में पारसनाथ भगवान की टोक स्वर्ण कूट पर सभी ने अपनी मनोकामना कागज पर लिखकर रखी ,कुछ ने दीवाल पर अंकित की ,दोस्तों के कहने पर फागुलाल जी ने भी अपनी इच्छा पेंसिल से दीवार पर लिखी कि मेरा सर्वनाश हो जाए दोस्तों के चकित होकर पूछने पर सहजता से फागुलाल जी ने कहा कि यह जीवन शाश्वत स्थाई नहीं है आत्म तत्व तभी प्राप्त होगा जब हम गृहस्थ अवस्था में नहीं रहेंगे और संयम दीक्षा धारण करेंगे मैंने संयम दीक्षा धारण करने की कामना की है फागुन माह में उत्पन्न होने के कारण आपका नाम फागुलाल जी रखा गया। ओसवाल समाज में बीकानेर में आपका जन्म हुआ किंतु व्यापार व्यवसाय अपने कोलकाता में किया। श्रीमती गज्जू देवी छोगालाल जी के पुत्र फागुलाल जी का जन्म विक्रम संवत 1962 सन 1905 में हुआ। श्रीमती बसंती देवी के साथ विवाह के पश्चात आपके तीन पुत्र और तीन पुत्री हुए जिस वक्त अपने 1954 में आपने क्षुल्लक दीक्षा धरण की आपकी छोटी पुत्री सुशीला की उम्र मात्र 7 वर्ष की थी ।वर्तमान मेंआर्यिका श्री श्रुत मति राजस्थान में धर्म प्रभावना कर रही है ।आपकी पत्नी ने भी मुनि श्री गुण सागर जी महाराज से आर्यिका दीक्षा धारण की थी। हिमांशु एवम राजेश पंचोलिया अनुसार
आप प्रथमाचार्य चारित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री शांति सागर जी महाराज के प्रथम मुनि शिष्य आचार्य श्री वीर सागर जी से काफी प्रभावित रहे ।अपने 7 प्रतिमा एवं गृह त्याग का नियम वर्ष 1954 में लिया सन 1954 में ही अपने कार्तिक कृष्ण तेरस को क्षुल्लक दीक्षा ग्रहण की आपका नाम श्री चिदानंद सागर जी रखा गया। आप स्वाध्याय करते हुए मुनि दीक्षा के लिए निवेदन करते रहे क्योंकि मनुष्य जीवन की सार्थकता संयम धारण करने से होती है। आपने सन 1957 भादो सुदी तीज को आचार्य वीर सागर जी महाराज से मुनि दीक्षा धारण कर मुनि श्री श्रुत सागर जी हुए आप आचार्य वीर सागर जी महाराज के अंतिम मुनि शिष्य रहे।हमें भी यह सौभाग्य प्राप्त हुआ कि जब हमने सन 1968 में आचार्य श्री शिवसागर जी के संघ में प्रवेश किया तब हमें आपके चरण सानिध्य में शिक्षा धार्मिक शिक्षा प्राप्त करने का सौभाग्य मिला। जयपुर खनिया जी में आचार्य शिवसागर जी के सानिध्य में तत्व चर्चा जैन धर्म के ही विभिन्न शाखों के मध्य हुई जिसमें सभी पक्ष के विद्वानों ने आचार्य शिवसागर जी महाराज की निष्पक्षता की प्रशंसा की।
आपने आचार्य श्री धर्म सागर जी महाराज से 27 अप्रैल 1976 को 12 वर्ष की नियम सल्लेखना धारण की।जयेष्ट माह की भीषण गर्मी में लूणवा जो की बालू रेत का रेगिस्तान है वहां पर आठ उपवास पूर्ण कर 9 वे दिन आपकी समाधि ज्येष्ठ कृष्ण पंचमी 6 मई सन 1988 को हुई।इस अवसर पर समाज द्वारा आचार्य संघ सानिध्य में विशेष पूजन  किया गया।