- भावलिंगी संत आचार्य श्री विमर्श सागर जी महामुनिराज यह संसार ही दुःखमय है।
तिजारा– अज्ञानी प्राणी अपने वर्तमान दुःखों से छूटकर संसार के ही नश्वर क्षणभंगुर सुखों को भोगना चाहता है। ज्ञानी जीव सम्पूर्ण संसार को ही दुःखमय जानता है अतः वह संसार के दुःख एवं क्षणिक सुखों को भी त्यागकर आत्मा के वास्तविक सुख को प्राप्त करने का सतत् पुरुषार्थ करता रहता है। यह धर्मोपदेश अतिशय क्षेत्र तिजारा में विराजमान परमपूज्य भावलिंगी संत राष्ट्रयोगी श्रमणाचार्य श्री विमर्शसागर जी महामुनिराज ने धर्मसभा के मध्य दिया। धर्मसभा को सम्बोधित करते हुए आचार्यश्री ने बताया. – बन्धुओ ! यदि आप अपने परिवार के बीच सुख-शान्तिमय जीवन बिताना चाहते हैं तो इस चिंतन को अपने जेहन से निकाल देना कि “इस परिवार का संचालन में कर रहा हूँ।” यदि मैं न होऊँ तो किसी भी प्रकार से परिवार का संचालन संभव नहीं है।” इन विचारों में डूबा हुआ व्यक्ति जब अपने ही परिवारीजनों की उपेक्षा का पात्र बनता है तब उसके जीवन में एक अशांति का ही विस्तार होता जाता है। बन्धुओ ! ध्यान रखना, इस जगत् में कोई भी प्राणी किसी भी दूसरी शक्ति से संचालित नहीं है। संसार में प्रत्येक प्राणी जैसे कर्म और जैसे भाव करता है उसे अपने कर्मबंध के अनुसार ही अच्छे या बुरे फलों की प्राप्ति होती है। एक किसान अपने खेल में जिस बीज का वपन करता है वह समय पाकर उसी के फलों को प्राप्त करता है। विचार करना, यदि आप ही परिवार को संचालित करते हो तो यदि आपके परिवार कोई मन्दबुद्धि बालक जन्म लेता है तो आप उसे बुद्धिमान बनाकर बता दें । बन्धुओ! आप किसी अज्ञानी को ज्ञानी नहीं बना सकते, जब तक वह व्यक्ति स्वयं को ज्ञानवान बनाने का विचार न करे। आप दूसरे के परिवर्तन में निमित्त बन सकते हैं किन्तु निमित्त बन ही जायें यह जरूरी नहीं है। अतः अपने अन्दर से कर्ताबुद्धि को त्याग देना। जब कभी आप किसी कार्य को सम्पादित करें तो उस कार्य में स्वयं को निमित्त मात्र विचार करें। आप अनेक विध संक्लेराताओं व दुःखों से मुक्त हो जायेंगे |