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माता पिता बच्चों की प्रथम पाठ शाला हैं।दया धर्म का मूल हैं-आर्यिका श्री दर्शना मति

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बांसवाड़ा– पंचम पट्टाधीश वात्सल्य वारिधि आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज अपने संघ सहित मोहन कॉलोनी बांसवाड़ा में विराजित है आज की धर्म सभा मेंआर्यिका 105 श्री दर्शनमती माताजी ने प्रवचन में बताया कि वर्तमान परिवेश में पश्चिमी संस्कृति का तेजी से प्रभाव बढ़ रहा है, लोग भारतीय संस्कृति को भूल रहे हैं इस कारण रहन-सहन खान पान पहनावा दूषित हो रहा है संसारी प्राणी सुख चाहते हैं सुख अच्छे कर्म धर्म करने से मिलता है |
धर्म, देव शास्त्र गुरु के दर्शन से जिनालय और संत समागम में मिलता है। बालकों को जैसे संस्कार आप देंगे वैसे कार्य बच्चे करेंगे क्योंकि माता-पिता जैसा कार्य करते हैं बालक उनका अनुसरण करते हैं। माता-पिता बच्चों की प्रथम पाठशाला है दया धर्म का मूल है। गुरु आचार्य श्री वर्धमान सागर जी श्रावकों का भला करने के लिए नियम लेने की प्रेरणा देते हैं सभी को आहार दान देना चाहिए आहार देखना चाहिए । मोहन कॉलोनी के अध्यक्ष सुनतीलाल बोहरा और मंत्री महावीर नशनावत अनुसार माताजी ने प्रवचन में बताया कि आचार्य श्री शांति सागर जी महाराज जब माता के गर्भ में थे तो उनकी माता का भावना हुई कि मैं 1008 पंखुड़ी वाले 108 कमल से भगवान जिनेंद्र की पूजा की। जैसे संस्कार दिए जाते हैं उस हिसाब से फल मिलता है आचार्य श्री वर्धमान सागर जी की चर्या चतुर्थ कालीन चर्या है ,जैसी भक्ति आप करेंगे वैसा पुण्य मिलेगा। आचार्य शांति सागर जी को तो हमने नहीं देखा किंतु आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज जी में आचार्य शांति सागर जी और पूर्वाचार्यो के गुण परिलक्षित होते हैं।
आचार्य श्री वर्धमान सागर जी को निकट के अनेक नगरों से समाज जन श्रीफल भेंट कर निवेदन कर रहे हे आगामी दिनों में बांसवाड़ा की कमर्शियल कॉलोनी में आचार्य संघ का प्रवास होगा |