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प्रभु भक्ति से शक्ति प्राप्त होकर नेत्र ज्योति बिना चिकित्सा इलाज के वापस आई-आर्यिका श्री महायशमति माताजी

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बांसवाड़ा– पंचम पट्टाधीश आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज संघ सहित बाहुबली कॉलोनी बांसवाड़ा में विराजित है ।आज की प्रवचन सभा में आर्यिका श्री महायशमति माताजी ने बताया कि भगवान की भक्ति में बहुत शक्ति होती है। बांसवाड़ा में विराजित आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज कि जब सन 1969 में मुनि दीक्षा हुई तब दीक्षा के कुछ माह बाद उनकी नेत्र ज्योति जयपुर में अनायास चली गई, उन्होंने 3 घंटे लगातार भगवान श्री चंद्र प्रभु की भक्ति की उसे भक्ति के फलस्वरुप उनकी नेत्र ज्योति बगैर डॉक्टरी इलाज के पुनः वापस लौट आई। समाज प्रवक्ता महेंद्र कवालिया गज्जू भैया अनुसार एक अन्य कथा के माध्यम से माताजी ने बताया कि कई सैकड़ो वर्ष पूर्व कुष्ठ रोग से पीड़ित एक मुनिराज ने एकीभाव स्रोत की रचना की उसे रचना में प्रभु भक्ति के प्रभाव से कुष्ठ रोग से ग्रस्त मुनिराज का शरीर स्वर्ण मय हो जाता है ।प्रभु भक्ति में चौथे श्लोक में मुनिराज भगवान की प्रभु भक्ति में कहते हैं कि तीर्थंकर भगवान के धरती पर जन्म लेने के पूर्व से यह धरती स्वर्णमयी आपके पूर्ण प्रताप से हो जाती है, तो ,है भगवान में प्रभु भक्ति से आपको हृदय में विराजित कर ध्यान करूंगा तो मेरा शरीर क्यों नहीं स्वर्णमय हो सकता है। और प्रभु भक्ति से मुनिराज के शरीर कुष्ठ रोग दूर होकर शहरी स्वर्ण समान सुन्दर हो जाता है प्रभु की भक्ति किसी भी रूप में दर्शन,अभिषेक,पूजन, स्तोत्र, स्वाध्याय,चिंतन करने से आनद, और पुण्य की प्राप्ति होती है प्रभु से ज्ञान दान की प्रार्थना करते हैं ज्ञान से दुर्गुण,बुराई नष्ट होकर पुण्य सद गति की प्राप्ति होती हैं।मिश्री के समान पुण्य भी मीठा होता हैं।प्रभु भक्ति के समय भाव परिणाम निर्मल होना चाहिए

माताजी ने प्रवचन में बताया कि भगवान की भक्ति विनय पूर्वक करना चाहिए क्योंकि जब तक पुण्य की क्रिया नहीं करेंगे तब तक पुण्य में वृद्धि नहीं होगी हम प्राचीन परंपरा, संस्कृति, सभ्यता से विमुख होते जा रहे हैं मंदिरों में भगवान की भक्ति में हमारा मन लगता नहीं है ।संत की तुलना बसंत ऋतु से की जिस प्रकार बसंत के आने से प्रकृति सुधर जाती है ठीक उसी प्रकार संत के आने से संस्कृति सुधर जाती है। आचार्य संघ का सानिध्य प्राप्त कर आप धर्म प्रभावना और पुण्य में वृद्धि कर सकते हैं। प्रभु की भक्ति का महत्व में गुणों बाबद बताया कि जिस प्रकार व्रज के प्रहार से पहाड़ , चट्टान टूट जाती है उसी प्रकार प्रभु की भक्ति से कर्म रूपी पहाड़ टूट जाते हैं नष्ट हो जाते हैं। प्रभु भक्ति संजीवनी अमृत समान है। प्रभु भक्ति समर्थ है इससे दुख का निवारण होता है। आज का मानव स्वयं से, परिवार से ,मंदिर से ,गुरु से, संस्कारों से दूर होता जा रहा है प्रभु की भक्ति के लिए उम्र नहीं देखी जाती है प्रभु की भक्ति हर पल हर क्षण करने से पुण्य में वृद्धि होकर मंगलकारी होती है। रावण की कथा में बताया कि प्रभु की भक्ति में वह प्रसिद्ध थे ।आर्यिका माताजी ने प्रथमाचार्य आचार्य श्री शांति सागर जी महाराज का प्रसंग बताया कि उन्होंने सन 1955 में अंतिम समय में संलेखना धारण की ।30 दिन के उपवास के बावजूद प्रभु की भक्ति से उनमें इतनी शक्ति थी कि उन्होंने पहाड़ पर जाकर भगवान का पंचामृत अभिषेक देखा। आचार्य संघ बांसवाड़ा बाहुबली उप नगर में विराजित हैं |