पंचम पट्टाधीश वात्सल्य वारिधी आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज पारसोला सन्मति भवन में संघ सहित विराजित है।
पाषाण को शिल्पकार की संगति मिलती है तब उसे मूर्ति बना देता है ,मूर्ति को प्रतिष्ठाचार्य की संगति मिलती है तो वह उसका पंचकल्याणक करते हैं, इस मूर्ति को जब आचार्य मुनि साधु की संगति मिलती है तो वह मूर्ति सूरी मंत्र संस्कार देने से भगवान बन जाती है ।क्योंकि उस पत्थर की प्रतिमा में सूरी मंत्र देने से वह मूर्ति भव्यता को भगवता को प्राप्त हो जाती है ।इस भगवान की मूर्ति के आप दर्शन अभिषेक पूजन अर्चना करते हैं यह मंगल देशना पंचम पट्टाधीश 108 आचार्य श्री वर्धमान सागर जी ने पारसोला की धर्म सभा में प्रगट की ब्रह्मचारी गज्जू भैया,राजेश पंचोलिया अनुसार आचार्य श्री ने आगे उपदेश में बताया कि
भगवान की प्रतिमा के दर्शन, अभिषेक ,पूजन ,भक्ति, अर्चना से सुख की प्राप्ति करते हैं। संसार का वातावरण दुखमय है ,भौतिक साधनों से क्षणिक सुख मिलता है संसार के वातावरण में अशांति मिलती है अशांति ही दुख देता है। इसलिए संस्कार संगति का प्रभाव हमारे जीवन पर होता है जैसी हम संगति करते हैं उसका वैसा परिणाम मिलता है ।आचार्य श्री ने पानी की बूंद का उदाहरण देकर बताया की पानी की बूंद जैसी संगति करती है वैसा उसका असर होता है पानी की बूंद गन्ने में जाने से गन्ना मीठा हो जाता है, पानी की बूंद कर सर्प के मुंह में जाती है तो पानी की वह बूंद जहर हो जाती है, वही पानी की बूंद जब किसी सीप में जाती है तो वह पानी की बूंद मोती बन जाती है । इसी प्रकार स्वर्ण पाषाण में कुशल कारीगर उसमें से स्वर्ण निकालने में सफल होता है आप बांसवाड़ा समाज ने महावीर जयंती हेतु संघ सानिध्य में मनाने हेतु निवेदन किया साधु समागम की संगति प्राप्त कर जीवन में परिवर्तन आना चाहिए क्योंकि हमने अनंत भव बिता दिए संसार में भ्रमण करते हुए संसार रूपी समुद्र में हमें अभी तक किनारा नहीं मिला है सिंह की पर्याय में महावीर स्वामी के जीव को चारण रिद्धि धारी मुनियों के संबोधन से उस संगति से उस सिंह के परिणाम सुधर गए ,भव सुधर गया ।इसलिए आपको देव शास्त्र गुरु की संगति करना चाहिए इससे जीवन में सुख प्राप्त होता है। देव शास्त्र गुरु की संगति से जीवन में परिवर्तन लाने का पुरुषार्थ कर मनुष्य जीवन को सफल बनाएं। आचार्य श्री के चरण प्रक्षालन एवम जिनवाणी भेट अतिथियों ने की बांसवाड़ा समाज के पंचों का स्वागत पारसोला समाज द्वारा किया गया।