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धर्म हमे दया सिखलाता है आत्महत्या करना महापाप है रत्नत्रय से सुख शांति मिलती हैं-आचार्य श्री वर्धमान सागर जी

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पंचम पट्टाधीश वात्सल्य वारिधी आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज पारसोला सन्मति भवन में संघ सहित विराजित है।
देव शास्त्र गुरु हमारे परम आराध्य हैं ,इनकी आराधना ,अर्चना करने से पाप कर्म रूपी मेल दूर होता है। इन तीनों का जीवन में बहुत महत्व है ,क्योंकि गुरु ने हमें शास्त्र दिए हैं धर्म सिखाया है और तीर्थंकरों की वाणी का परिचय कराया जब सब साधन होते है ,तब हम कार्य करते हैं ।आपको संत समागम देव शास्त्र गुरु का साधन मिला है तो आपको धर्म का कार्य करना चाहिए यह मंगल देशना पंचम पट्टाधीश वात्सल्य वारिधी आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज ने पारसोला की धर्म सभा में प्रकट की ब्रह्मचारी गज्जू भैया, राजेश पंचोलिया अनुसार आचार्य श्री ने उपदेश में कहा कि पूर्व में कई वर्षों पूर्व हमने कच्चे भवनों झोपड़ियों में आहार किया था आज 20 वर्ष के बाद वहीं कच्चे भवन महलों में बदल गए हैं गुरु हमारे दुख दूर कर सकते हैं गुरु की भक्ती श्रध्दा के बिना नहीं होती है, इसलिए श्रद्धा जरूरी है श्रद्धा और विश्वास से ही धर्म के कार्य होते हैं ।इसलिए जो भी कार्य आप करते हैं चाहे लौकिक जीवन निर्वाह के लिए करते हैं या धार्मिक उन्नति के लिए करते हैं आपको अपनी आत्मा पर विश्वास होना चाहिए क्योंकि आत्मा चिरस्थाई है, अजर अमर है आपके नगर के श्री मूलचंद जी घाटलिया ने संसार के दुखों से घबरा कर स्थाई सुख के लिए इसी पारसोला में दीक्षा ली और उन्हें हमारे प्रथम मुनि शिष्य बनने का सौभाग्य मिला ।मूलचंद जी दीक्षा लेकर मुनि ओम सागर जी बने ।उन्होंने धर्म का चिंतन किया धर्म की ध्वजा से भीतर के संसार में विजय प्राप्त कर रत्नत्रय रूपी ध्वज को धारण किया, क्योंकि रत्नत्रय रूपी ध्वज से ही सुख शांति प्राप्त होती है। आचार्य श्री ने भरत चक्रवर्ती बाहुबली के प्रसंग का उल्लेख कर बताया कि चक्रवर्ती सांसारिक वैभव के बाद भी सुखी नहीं होते, वह भी दीक्षा लेते हैं ।चक्रवर्ती के पास सुदर्शन चक्र होता है ,और साधुओं के पास रत्नत्रय रूपी चक्र होता है आचार्य श्री वर्धमान सागर जी ने प्रवचन में आगे बताया कि आचार्य शांति सागर जी महाराज भी घर में रहकर बैरागी रहे घर पर रहकर उन्होंने संयम की आराधना की ।माता-पिता के आग्रह पर उनकी समाधि होने तक घर में रहकर धर्म की आराधना की। गृहस्थ अवस्था में भी उन्होंने घर पर रहते हुए अजेन व्यक्तियों को धर्म में लगाया मिथ्यात्व दूर कराया ।धर्म हमें दया सिखलाता है वर्तमान परिपेक्ष्य में आत्महत्या पर आचार्य श्री ने चिंता व्यक्त करके बताया कि आत्महत्या करना महापाप है, इससे वर्तमान जीवन के साथ आगामी अनेक जन्मों में जीवन छोटा हो जाता है जीवन पूर्ण नहीं होता। धर्म हमें दया का उपदेश देता है सबसे पहले हमें आत्मा पर दया करना चाहिए शरीर को देवालय की संज्ञा देते हुए बताया कि जिस प्रकार देवालय में भगवान होते हैं उसी प्रकार शरीर रूपी देवालय में आत्मा देव रूपी है ।आत्मा को कर्म बंधन दुखी करते हैं। इसलिए धर्म को धारण कर परम सुख को प्राप्त करने का पुरुषार्थ कर मानव जीवन को सफल बनाने की मंगल प्रेरणा दी पुण्यार्जक परिवारों द्वारा आचार्य श्री के चरण प्रक्षालन कर जिनवाणी भेंट की ।उदयपुर से पधारे शांतिलाल वेलावत ,पारस चितोड़ा ,सुरेश पद्मावत कमलकांत आदि का पारसोला समाज ने भावभीना स्वागत किया।
राजेश पंचोलिया इंदौर