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भगवान श्री आदिनाथ का जन्म एवम तप कल्याणक रथ यात्रा के साथ संपन्न

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आचार्य श्री वर्धमान सागर जी का वर्ष 2024 का चातुर्मास पारसोला में होगा

पारसोला– हमें सन 1990 में आचार्य पद इसी पारसोला नगर में मिला है यहां की समाज में देव शास्त्र, गुरु ,धर्म के प्रति बहुत भक्ति भाव श्रद्धा है। पारसोला समाज ने धर्म प्रभावना के अनेक बड़े-बड़े कार्यक्रम किए हैं । पारसोला समाज की भक्ति को देखते हुए विगत 35 वर्षों में पहली बार काफी समय पूर्व यह घोषणा कर रहे हैं कि वर्ष 2024 का वर्षायोग पारसोला नगर में करेंगे ।वर्षायोग से धर्म प्रभावना होती है ,वर्षायोग से आप सभी जीवन में परिवर्तन लाने का पुरुषार्थ कर मनुष्य जीवन को सार्थक करने का प्रयास करें। यह उद्बोधन पंचम पट्टाधीश वात्सल्य वारिधी आचार्य श्री वर्धमान सागर जी ने प्रथम तीर्थंकर युग प्रवर्तक श्री आदिनाथ भगवान के जन्म एवम तप कल्याणक के अवसर पर आयोजित धर्म सभा में प्रगट की। ब्रह्मचारी गज्जू भैया,राजेश पंचोलिया पारस पाटनी अनुसार आचार्य श्री ने प्रवचन में बताया कि बच्चे युवा नारे लगाते हैं कि हम सब की यह अभिलाषा पारसोला में हो चौमासा। 20 वर्षो के लंबे इंतजार के बाद पूर्ण होगी। आचार्य श्री शांति सागर जी का आचार्य पद शताब्दी महोत्सव कार्यक्रम वर्ष 2024 में संघ के सानिध्य में होना है। इसके पूर्व आचार्य शांति सागर जी ने सन 1920 में मुनि दीक्षा ली थी तब मुनि दीक्षा शताब्दी वर्ष महोत्सव भी दीक्षा भूमि यरनाल में संघ सानिध्य में मनाया गया था। प्रथमाचार्य श्री शांति सागर जी को वर्ष 1924 समडोली में आचार्य पद मिला था उसे 100 वर्ष सन 2024 में पूर्ण हो रहे हैं इस कारण उनके उपकारों का अंश चुकाने के लिए पूरे देश में अक्टूबर 2024 से आचार्य शताब्दी महोत्सव मनाया जाएगा।

आचार्य श्री ने बताया कि

श्री ऋषभदेव जी का जन्म नाभि राय श्रीमती मरु देवी की कुक्षी से अयोध्या नगरी में चैत्र कृष्णा नवमी के दिन हुआ । भोग भूमि में जनता भूख प्यास से पीड़ित होने लगी ,दुखी होने लगी तब राजा नाभिराय के दरबार में गए और अपने दुख निवारण की प्रार्थना की राजा ने उन्हें राजकुमार ऋषभदेव के पास भेजा ।श्री ऋषभ देव ने जगत के कल्याण की भावना लेकर ही तीर्थंकर नाम कर्म प्रकृति का बंध किया था उन्होंने जनता के दुख पीड़ा को समझ कर असी,मसी ,कृषि, वाणिज्य, शिल्प और कला का ज्ञान जनता , प्रजा को दिया असी अर्थात रक्षा करना मसी मतलब लेखन कार्य करना ,कृषि खेती कार्य ,वाणिज्य व्यापार कार्य, शिल्प अर्थात भवन निर्माण मूर्ति निर्माण का कार्य का ज्ञान , और कला से विद्या ,ज्ञान प्राप्त करने का माध्यम बताया ।इसी प्रकार अपने दो पुत्री ब्राह्मी और सुंदरी को भी उन्होंने लिपि और अंक विद्या का ज्ञान दिया।
राजा ऋषभदेव की आयु 83 लाख वर्ष का समय व्यतीत होने पर सोधर्म इंद्र ने राज दरबार में नीलांजना के नृत्य का निमित्त बनाया नीलांजना की मृत्यु होने से राजा ऋषभदेव ने संसार को असार जानकर वैराग्य धारण किया संयोग ऐसा रहा कि चैत्र कृष्ण नवमी के दिन ही उन्होंने दीक्षा धारण की। 6 माह तक योग धारण किया आगामी 6 माह आहार के लिए नगर नगर गए किंतु किसी को भी मुनिराज को पड़गाहन और नवधा भक्ति का ज्ञान नही होने से बिना आहार के एक वर्ष से अधिक का समय हो गया। हस्तिनापुर के राजा श्रेयांस को दिगंबर मुनिराज को पिछले जन्म का जाति स्मरण होता कि आहार केसे दिया जाता है उन्होंने नवधा भक्ति पूर्वक पड़गाहन कर आहार दिया। आचार्य श्री ने बताया कि यद्यपि उन्हें आहार की जरूरत नही थी किंतु भविष्य में मुनिराज साधु किस प्रकार आहार लेंगे इस बात का ज्ञान देते हुए आहार लिया। वह शुभ दिन अक्षय तृतीया का दिन था। मुनिराज साधु वर्षा काल में सूक्ष्म जीवों की रक्षा और अहिंसा महाव्रत का पालन करने के लिए वर्षा योग करते है । जैन समाज के जयंती लाल कोठारी ने बताया कि इसके पूर्व मुनि श्री हितेंद्र सागर जी ने उपदेश में बताया कि जिन भव्य प्राणी का जन्म मरण दोबारा नही होता उनकी जन्म जयंती कल्याणक मनाया जाता है मुनि श्री ने श्रावको को देव दर्शन अभिषेक पूजन दान आदि धर्म कार्य करने की प्रेरणा दी। प्रवचन के पूर्व मंदिर में श्री जी का पंचामृत अभिषेक आचार्य श्री सानिध्य में हुआ उसके बाद श्री जी की रथ यात्रा का समापन नगर के प्रमुख मार्ग होकर सन्मति भवन में हुआ |