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शब्द संसार: विज्ञान और साहित्य के मेल से बना रहे शब्दों का अनूठा संसार

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  • युवा साहित्यकार और गजल गायक आशीष का कहना है समाज के लिए कुछ करना है तो पहले जानना और समझना होगा
बिलासपुर – आंखों पर मोटा सा नजर का चश्मा, शर्ट या फिर कुर्ते की जेब में कलम। बाएं या फिर दाहिने कंधे पर लटकता थैला। थैले में मोटी-मोटी डायरी और उस पर लिखी मन की बातें। ये पुराने जमाने के साहित्यकार और कवि का सीन हम आपके सामने खींच रहे हैं। बदलते दौर के साथ नए युग में नव सृजन करने वाले युवा साहित्यकार, कहानीकार और कवियों की एक ऐसी फौज तैयार हो रही है जिनकी रचनाओं को पढ़कर और सुनकर ही मन गदगद हो जाता है।

हमारी और आपकी कल्पनाओं से दूर ये नवसृजनकार शब्दों का ऐसा सुनहरा संसार का सृजन कर रहे हैं, जिसमें समाज के लिए चिंता, युवाओं के लिए संदेश के साथ ही प्रांत व देश के लिए उन्नति की कामना की झलक साफतौर पर दिखाई देती है। ऐसी झलक जिसकी प्रतिकृति और प्रतिमूर्ति चमकदार तो है साथ ही इसमें संदेश भी छिपा हुआ है। ऐसा ही कुछ सकारात्मक भाव से साहित्य का सजृन कर रहे हैं युवा गजलकार व साहित्यकार आशीष श्रीवास।

नाम के अनुरूप आशीष नवसृजनकारों की श्रृंखला के साहित्यकार हैं। रसायन शास्त्र में एमएससी की स्नातकोत्तर डिग्री हासिल करने के बाद आशीष ने हिंदी साहित्य में एमए की स्नात्कोत्तर डिग्री भी हासिल की। विज्ञान और साहित्य का अनूठा संगम ऐसा कि दोनों ही विषयों में मास्टर डिग्री हासिल करने वाले आशीष की रुचि साहित्य की ओर बढ़ती चली गई। आप कल्पना कर सकते हैं कि विज्ञान का ऐसा विषय जिसमें मास्टर डिग्री हासिल करने के बाद रुचि साहित्य की ओर बढ़ जाए। आमतौर पर ऐसा होता नहीं। चमकदार करियर राह देखते रहती है। इस ओर युवा आगे बढ़ते चले जाते हैं। आशीष के साथ ऐसा नहीं हुआ।

अपना भविष्य संवारने के बजाय आशीष का युवा कवि व साहित्य मन समाज को नई दिशा देने की सोची। अकादमी अनुभव का लाभ समाज के बहुसंख्य लोगों को मिले साथ ही युवाओं को एक ऐसी प्रेरणा और राह दिखाने की सोची जिससे आगे चलकर समाज को नई दिशा मिले। समाज, प्रांत और राष्ट्र को आगे रखकर उन्होंने लेखन की ओर अपना ध्यान लगाया। लेखनी भी ऐसी कि जिसे पढ़ने मात्र से ही एक नई दिशा की ओर जाने के साथ ही सकारात्मक विचारधारा को आत्मसात कर आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती है।

साहित्य में बढ़ती गई रुचि
आशीष बताते हैं कि बचपन से ही उनकी रुचि साहित्य की ओर थी। महाविद्यालय की पढ़ाई करते-करते कवि सम्मेलन के अलावा गोष्ठियों में जाने का अवसर मिलने लगा। धीरे-धीरे इस ओर बढ़ता ही गया। कब कविता लिखने लगा और कवियों के साथ मंच साझा करने के साथ ही कविता का पाठ करने लगा पता ही नहीं चला। मंच के माध्यम से जब श्रोताओं की ताली के रूप में वाहवाही मिलने लगी और मंच पर बैठे मूर्धन्य कवियों की सराहना तब लगा कि इस दिशा में कदम इतने आगे बढ़ चुके हैं कि पीछे हटने का अब मन ही नहीं करता। तब लगा कि समाज के लिए कुछ करना चाहिए। जिस समाज ने इतना कुछ दिया उसके लिए कुछ करने का मन लगने लगा। इस दिशा में आगे बढ़ने की सोची और कदम-दर-कदम आगे बढ़ते ही गया।

संग्रह
आशीष बताते हैं कि उज्जैन से प्रकाशित साझा संग्रह में एक किताब का प्रकाशन हुआ है। दूसरी किताब गजल संग्रह की है। तुम और इश्क गजल संग्रह का प्रकाशन हुआ है।

पीएचडी का उद्देश्य ही समाज को कुछ देने की
आशीष बताते हैं कि विकलांग विमर्श जैसे गहन और महत्वपूर्ण विषय पर शोध कार्य प्रारंभ किया है। डा विनय पाठक ने यह विषय सुझाया है। उनका कहना है कि समाज के लिए अगर कुछ कर सको तो पहले उसे जानना जरूरी है। जानने के बाद समझने और फिर आगे बढ़ने की सोच होनी चाहिए। इसी दिशा में आगे बढ़ने का निर्णय लिया है।