अब तक शायद लोग ग्लोबल वॉर्मिंग को हल्के में लेते रहे हों लेकिन अब सतर्क हो जाने का वक्त आ गया है. ग्लोबल वॉर्मिंग और अंटार्कटिका-ग्रीनलैंड की बर्फ पिघलने की वजह से धरती के घूमने की रफ्तार कम हो गई है और यह वक्त मापने को भी प्रभावित कर सकता है|
‘तेजी से पिघल रही पोलर आईस’
बुधवार (27 मार्च) को पब्लिश हुई एक स्टडी में सामने आया कि क्लाइमेट चेंज के कारण अंटार्कटिका-ग्रीनलैंड की बर्फ लगातार पिघल रही है और इस वजह से धरती के घूमने की रफ्तार घट रही है. सैन डिएगो के कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी में स्क्रिप्स इंस्टीट्यूशन ऑफ ओशनोग्राफी में जियोफिजिसिस्ट और स्टडी के लेखक डंकन एग्न्यू ने कहा कि पोलर आईस तेजी से पिघल रही है, जहां धरती का द्रव्यमान केंद्रित है. बदले में, बदलाव धरती की एंगुलर वेलॉसिटी को प्रभावित करेगा क्योंकि पोलर में कम बर्फ होने से भूमध्य रेखा के आसपास ज्यादा मास बढ़ जाएगा|
एनसीबी न्यूज से बातचीत में मेसाचुसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में जियोफिजिक्स के प्रोफेसर थॉमस हेरिंग ने कहा, ‘पिघली हुई बर्फ के साथ आप क्या कर रहे हैं, आप अंटार्कटिका और ग्रीनलैंड जैसी जगहों में जमे हुए ठोस पानी को ले रहे हैं, और जमा हुआ पानी पिघल रहा है. आप तरल पदार्थ को धरती की बाकी जगहों पर ले जाते हैं. यह पानी भूमध्य रेखा की ओर बहता है.’ इस स्टडी से पता चला है कि इंसान कैसे कुछ ऐसा करने के काबिल है जिसके बारे में कभी सोचा भी नहीं गया था कि यह इंसान के नियंत्रण में है.’ हालांकि प्रोफेसर थॉमस हेरिंग इस स्टडी का हिस्सा नहीं थे|
प्रोफेसर एग्नू ने कहा, ‘यह काफी दिलचस्पी भरा है, जो यह मापने में आसानी लाएगा कि धरती तेज कैसे घूमती है. अब जो चीजें हो रही हैं, वह अभूतपूर्व हैं|
क्या 2029 में ठहर जाएगा वक्त?
यह तो हर कोई जानता है कि हर 4 साल में एक बार फरवरी के महीने में एक दिन जोड़ दिया जाता है, जिसे लीप ईयर कहा जाता है. लेकिन कुछ वर्षों में ‘लीप सेकंड’ भी जून या दिसंबर के अंत में जोड़ दिया जाता है|
ऐसा इसलिए होता है क्योंकि जिस रफ्तार से धरती अपनी धुरी पर घूमती है, वह थोड़ा हिलता है, जिसका मतलब है कि एक चक्कर पूरा कर लेना असल में एक दिन नहीं होता. लेकिन इस स्टडी के बाद एग्नू ने नेगेटिव लीप ईयर की बात कही है, जिसका मतलब है कि इतिहास से पहली बार सेकंड को हटाया जाएगा.
प्रोफेसर ने सुझाव दिया कि धरती के तेजी से घूमने के कारण 2029 में नेगेटिव लीप सेकंड आना चाहिए, हालांकि, उन्होंने चेतावनी दी कि इससे स्मार्टफोन और कंप्यूटर में ‘अभूतपूर्व’ समस्याएं पैदा हो सकती हैं|
प्रोफेसर एग्नू ने अपने पेपर में कहा, धरती के भविष्य की बात करें तो मूल और बाकी प्रासंगिक घटनाओं के रुझानों से पता चलता है कि कॉर्डिनेटेड यूनिवर्सल टाइम (यूटीसी) को अब डिफाइन करने के लिए 2029 तक नकारात्मक असंतोष की जरूरत होगी|
नेटवर्क टाइमिंग में आ सकती है दिक्कत
उन्होंने आगे कहा, इस वजह से कंप्यूटर नेटवर्क टाइमिंग के कारण दिक्कत आ सकती है और यूटीसी में पहले से ही बदलाव करने पड़ेंगे. कॉर्डिनेटेड यूनिवर्सल टाइम (यूटीसी) एक अति सटीक परमाणु घड़ी है, जो हर वक्त घूमती रहती है|
लेकिन ये परमाणु घड़ियाँ सोलर टाइम के साथ अलाइन होने में नाकाम रहती हैं, जिसके मुताबिक हर दिन धरती के एक चक्कर लगाने को दिखाता है. अगर बर्फ पिघलने के कारण धरती के घूमने की रफ्तार कम नहीं होती है तो 2026 में तीन साल पहले ही नेगेटिव लीप ईयर की जरूरत पड़ेगी |