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विकसित भारत ख़ुशहाल क्यों नहीं है

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किसी भी देश की प्रगति का मूल्याङ्कन वहां के नागरिकों को प्राप्त सुविधाओं और अवसरों के आधार पर आसानी से
किया जा सकता है | प्राप्त अवसर और सुविधाएँ ही किसी व्यक्ति के जीवन में खुशियों का संचार करती है, क्योंकि
संघर्ष एक ऐसा विषय है जिससे विरलों के आलावा सभी दूर ही रहतें है | ऐसे में सरकारों का दायित्व बढ़ जाता है की
वहां के नागरिकों के लिए प्रतिबद्ध होकर कार्य करें | आज देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है, राम राज्य की
चर्चा हर जगह है, सरकारें अपनी उपलब्धियां गिनाने में प्रथम है यानि की यह महसूस कराया जा रहा है की देश तेजी
से विकसित हो रहा है | पर पिछले दिनों प्रकाशित वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट – 2024 में 143 देशों की सूची में भारत को
126वां स्थान दिया गया | इन वैश्विक आकड़ों ने इस पर बड़ा प्रश्न लगा दिया है आखिर “विकसित भारत ख़ुशहाल क्यों
नहीं है ?”
यदि हम एक दशक पूर्व में जाए तो वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट 2013 में भारत कुल 156 देशों की सूची में देश 111 स्थान पर
था | यानि प्रगति की गति जिस तीव्रता के साथ आगे बढ़ी है हमारी खुशियाँ उसमे गुम सी होती जा रही है |
बाजारवाद का दबाव, आर्थिक दबाव, वैश्विक हस्तक्षेप और अनियंत्रित सिधान्तों ने प्रत्येक इन्सान के जीवन में उथल-
पुथल मचा रखा है जिसका सीधा सम्बन्ध खुशियों से है | यदि चार दशक पूर्व में हम जाए तो हम शायद ज्यादा खुश थे
| आज की इस आधुनिकता के चक्रव्यूह में प्रत्येक आदमी दबाव महसूस कर रहा है | अंतर्राष्ट्रीय संगठन जब भी किसी
बड़े पैमाने पर मूल्याङ्कन करतें है तो इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता है की मानक स्पष्ट और आकड़ें सटीक हो |
वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट को प्रकाशित करने के पूर्व एक गहन अध्ययन और कई निर्धारित मानकों को ध्यान में रखकर
प्रत्येक देश की स्थिति का अध्ययन कर अंतर्राष्ट्रीय मानको पर परिणाम सत्यापित किया जाता है |
भारत के सन्दर्भ में वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट का अध्ययन करने के लिए कई पहलुओं के अतिरिक्त – रहने की व्यवस्था से
संतुष्टि, कथित भेदभाव, और स्व-मूल्यांकित स्वास्थ्य जीवन इन तीन आधारों पर अध्ययन कर संतुष्टि ज्ञात की गयी है |
अध्ययन से पता चला है कि – भारत में वृद्धावस्था को उच्च जीवन संतुष्टि से जोड़ा जाता है | भारत में औसतन, वृद्ध
पुरुष वृद्ध महिलाओं की तुलना में जीवन से अधिक संतुष्ट हैं | अधिक उम्र की महिलाएं अपनी पति की तुलना में अपने
जीवन से अधिक संतुष्ट | शिक्षित और उच्च वर्ग के लोग अशिक्षित और अन्य वर्गो के लोगो की तुलना में अपने जीवन से
अधिक संतुष्ट है | यह अध्ययन इस लिए अधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि भारत की वृद्ध जनसंख्या दुनियां की दूसरी सबसे
बड़ी श्रेणी में आती है | देश में 60 वर्ष से अधिक आयु के 140 मिलियन लोग है |
कई देशों में जन हित की कई योजनाओं के जरियें एक आम आदमी की खुशियों का ध्यान रखा जाता है तथा सामाजिक
सुरक्षा की अनेकों योजनाओं को जन-जन तक पंहुचा कर आम आदमी के हितों को सुरक्षित किया जाता है | जिससे
खुशियों की पूर्ति हो रही है | देश ही नहीं बल्कि दुनियां का प्रत्येक आदमी खुशियों की तलाश में ही रहता है और इसके
लिए कई कार्य करने को तैयार रहता है | आधुनिकतम और विकासवादी युग में पूरा देश परिवर्तित हो रहा है जिसका
सीधा असर आम आदमी पर है | परिवर्तन का यह दौर यदि सफल रहा तो आम आदमी का जीवन बेहतर दिखेगा, यदि
यह असफल हुआ तो इसका भयावह परिणाम भी देखने को मिलेगा | आज आर्थिक दबाव अधिकांश आबादी पर है जो
नित् जमीनी आवश्यकताओं रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा और स्वास्थ्य को प्राप्त करने के लिए बाजारवाद और आर्थिक
दबाव से लड़ रहा है परिणाम स्वरुप उसकी खुशियाँ अब उससे दूर होती जा रही है | अब समय आ गया है की दिखावें
के कार्यो के बजाव आम आदमी की खुशियों को केंद्र में रखकर कार्य किया जाए | कम से कम जमीनी जरूरतें निःशुल्क
उच्च कोटि की प्रदान करके खुशियों में इजाफा किया जा सकता है अन्यथा की स्थिति में हम विकसित तो हो जायेगे पर
खुशियों से दूर हो चुकें होगे | इस तरह की वैश्विक रिपोर्ट हम सभी की भविष्य की चुनौतियों से लड़ने के लिए आगाह भी करती है |