- 2009 के लोकसभा चुनाव से भाजपा ने शुरू किया नए चेहरे पर दांव खेलना
- भाजपा के गढ़ को भेदने कांग्रेस लोकसभा चुनाव में चेहरा बदलकर प्रयोग कर रही
बिलासपुर- छत्तीसगढ़ के बिलासपुर लोकसभा एकमात्र ऐसी संसदीय सीट है, जहां वर्ष 1996 से आज तक हुए चुनाव में भाजपा व कांग्रेस चेहरा बदलते रही है। राजनीतिक रूप से लिए जाने वाले निर्णय में कांग्रेस हर बार असफल साबित हो रही है। राष्ट्रीय राजनीति में बनने वाले माहौल और मुद्दों का असर, ऐसा कि मतदाताओं का रुझान भाजपा के पक्ष में ही आ रहा है।
भाजपा के अभेद गढ़ को भेदने के लिए कांग्रेस प्रत्येक लोकसभा चुनाव में चेहरा बदल-बदलकर प्रयोग कर रही है। चेहरा बदलने के बाद भी असफलता ही हाथ लग रही है। चेहरा बदलने में भाजपा भी पीछे नहीं है। वर्ष 2009 से लेकर वर्ष 2019 तक हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा भी हर चुनाव में नए चेहरे उतरते रही है। चेहरा बदलने के बाद भी मतदाताओं का झुकाव भाजपा की ओर ही रहा है।
2009 के लोकसभा चुनाव से भाजपा ने नए चेहरे पर खेला दांव
ये अलग बात है कि जीत-हार का आंकड़ा हर बार बदल जा रहा है। राज्य गठन के बाद वर्ष 2004 में लोकसभा का चुनाव हुआ। इस चुनाव में भाजपा ने सांसद मोहले को आखिरी बार चुनाव मैदान में उतारा। जीते और दिल्ली पहुंच गए। वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव से भाजपा ने नए चेहरे पर दांव खेलना शुरू किया है।
यह सिलसिला आज भी जारी है। दिलीप सिंह जूदेव, लखनलाल साहू व अरुण साव के बाद अब लोरमी के पूर्व विधायक तोखन साहू को उम्मीदवार बनाया है। कांग्रेस बीते एक दशक से यह प्रयोग करते आ रही है। राज्य गठन के बाद डा बसंत पहारे, डा रेणु जोगी, भाजपा से कांग्रेस प्रवेश करने वाली करुणा शुक्ला, कोटा के विधायक अटल श्रीवास्तव, ये कुछ ऐसे चेहरे हैं जिस पर दांव लगाने के बाद भी कांग्रेस को सफलता नहीं मिल पाई है।
कांग्रेस ने इन पर लगाया दांव
वर्ष 1998- कन्या कुमारी उर्फ तान्या अनुरागी, वर्ष 1999- रामेश्वर कोसरिया, वर्ष 2004- डा बसंत पहारे, वर्ष 2009-डा रेणु जोगी,वर्ष 2014 करुणा शुक्ला, वर्ष 2019-अटल श्रीवास्तव।
भाजपा का लगातार ओबीसी पर दांव
वर्ष 2014 से लेकर मौजूदा चुनाव में भाजपा लगातार ओबीसी उम्मीदवार पर दांव लगाते आ रही है। प्रदेश की राजनीति में अन्य पिछड़ा वर्ग को साधते की कोशिश कहें या फिर राजनीतिक विवशता, बिलासपुर संसदीय सीट से इसी वर्ग के उम्मीदवार को चुनाव मैदान में उतारा जा रहा है।
पहले लखनलाल साहू, अरुण साव और अब तोखन साहू जैसे ओबीसी चेहरे को सामने लाया गया है। कांग्रेस के पराजित उम्मीदवारों की सूची पर नजर डालें तो कांग्रेसी रणनीतिकारों ने अनुसूचित जाति से तीन, एक बार अल्पसंख्यक और दो चुनाव में सामान्य वर्ग के उम्मीदवार को चुनाव मैदान में उतारा है। इस सीट से कांग्रेस ने ओबीसी वर्ग पर फोकस नहीं किया है।