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पुण्य उदय होते है तब आप सिद्ध चक्र महामण्डल विधान का हिस्सा बन पाते है —श्रुतसंवेगी मुनि श्री आदित्य सागर मुनिराज

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कोटा- मंदिर अध्यक्ष अंकित जैन ने बताया कि शाश्वत अष्टान्हिका महापर्व के तहत सिद्धशिला पर विराजमान सिद्ध परमेष्ठी के बत्तीस गुणों की पूजा अर्घ समर्पित कर  मंगलवार को सम्पन्न की गई। जिसमें उनके अनन्त दर्शन, ज्ञान अवगाहनत्व, अनंत वीर्यत्व, अव्याधत्व आदि अनंत गुणों  से युक्त सिद्धस्वरूप को नमस्कार किया गया।
प्रतिष्ठाचार्य डॉ.अभिषेक जैन ने सम्पूर्ण अनुष्ठान संगीतमय कराकर भक्तिभाव से नाचकर विधान से इंद्र—इंद्राणियों को जोडा। उन्होंने सिद्ध परमेष्ठी के गुण धर्म की आध्यात्मिक शास्त्रीय विवेचना की।मंगलवार को सिद्ध परमेष्ठी की 32 गुणों युक्त आराधना  प्रात 7:00 बजे जिनाभिषेक शान्तिधारा, नित्यमहपूजन जन, नंदीश्वर पूजन व सिद्धचकृविधान सम्पन्न किये गए। संगीतकार सौरभ सिद्धार्थ ने वाद्य यंत्रों पर साथ दिया। मंगलवार को राजमल पाटौदी,अर्पित जैन, ज्ञानचंद जैन,विनोद टोरडी,संजय जैन,राहुल जैन ,विमल जैन सहित सैकड़ों की संख्या में जैन समुदाय के लिए विशुद्ध ज्ञान ग्रीष्मकालीन वाचन में उपस्थित रहे। महामंत्री अनुज जैन ने बताया कि मंगलवार को महाआरती का पुण्य विनोद जैन को प्राप्त हुआ।
पुण्य उदय होते है जब सिद्ध चक्र महामंडल विधान से जुड पाते है
चर्या शिरोमणि आचार्य श्री 108 विशुद्ध सागर जी महाराज के शिष्य परम पूज्य श्री 108 आदित्य सागर जी महाराज ससंघ ने अपने प्रवचन में कहा कि संचित पुण्य के फल से ही आप महामण्डल विधान का हिस्सा बन पाते है। सिद्धचक्र में पुण्य जितना अधिक होगा वह उतना ही हिस्सा बन पाएगे। जिसके पास पुण्य है उसके पास सबकुछ है,पुण्य नहीं हो तो आपके पास कुछ नहीं बचता। उन्होने उदाहरण स्वरूप कहा कि पुर्णिमा पर चांद पूजा जाता है उसके पुण्य सर्वोत्तम होते है अगले दिन जब पुण्य घटते है तो कोई उसकी पूजा नहीं करता है। मुनि आदित्य सागर जी ने जीवन में धैर्य रखने,संतोष रखने की सलाह भी दी। उन्होने जीवन में बैर,घृणा,ईर्ष्या नहीं पालने की सलाह देते हुए कहा कि इससे कृष्ण लेश्या बनती है,जिससे हमें बचना है। उन्हे सलाह देते हुए कहा कि दूसरों के अपराध व गलती के लिए हमें अपनी लेश्या को  नहीं बिगाड़ना चाहिए।