बिलासपुर। इस बार भी बड़े पैमाने पर गोकाष्ठ (गोबर से बनी लकड़ी) से होलिका दहन किया जाएगा। जो पूरी तरह से इको फ्रेंडली रहता है और इससे पर्यावरण को किसी प्रकार से भी नुकसान नहीं होता है बल्कि पर्यावरण में फैले हानिकारक तत्वों का नाश करता है। नगर निगम संचालित शहर के चारों गोठानों में मौजूदा स्थिति में बड़े पैमाने पर गोकाष्ठ तैयार किया जा रहा है। इस साल भी नगर निगम की ओर हरे-भरे पेड़ों को बचाने के लिए होलिका दहन में गोकाष्ठ का उपयोग करने को बढ़ावा दिया जा रहा है। इसी वजह से हर साल की तरह इस साल भी होली पर्व के दौरान होने वाले होलिका दहन के लिए गोबर की लकड़ी (गोकाष्ठ) तैयार कराया जा रहा है। शहर के मोपका, सरकंडा, सकरी और सिरगिट्टी के गोठान को इस बार होलिका दहन के लिए कम से कम 25-25 क्विंटल गोकाष्ठ बनाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। इसके कईं फायदे मिलते हैं।
पहला यह कि गोठानों से जुड़े महिला स्व-सहायता समूह की महिलाओं को गोकाष्ठ बनाकर बिक्री करने पर आर्थिक लाभ मिलता है। इसके साथ ही आग जलाने के लिए हरे-भरे पेड़, पौधों को काटने के मामले में भी कमी आती हैं। इन बातों को ध्यान में रखते हुए गोठानों में गोकाष्ठ जोरो से बनाया जा रहा है। कुछ दिनों में इसकी बिक्री भी शुरू कर दी जाएगी।
पिछले बार बिक गई थी 120 क्विंटल गोकाष्ठ
गोठानों में तैयार गोकाष्ठ की अब साल दर साल मांग बढ़ते ही जा रही है। बीते साल होलिका दहन के दौरान 120 क्विंटल गोकाष्ठ की बिक्री हुई थी। इस दौरान छह रुपये प्रति किलो के हिसाब से बेचा गया। पिछले साल कई होलिका दहन समिति को गोकाष्ठ प्राप्त करने के लिए जद्दोजहद भी करना पड़ा। इसके चलते इन बातों को ध्यान में रखकर पिछले बार से ज्यादा गोकाष्ठ बनाने की कोशिश स्व-सहायता समूह की महिलाएं कर रही हैं।
एडवांस बुकिंग का लेते हैं सहारा
शहर के कुछ बड़ी समितियां गोकाष्ठ से बने होलिका का दहन करते हैं और पर्यावरण को संतुलित रखने का संदेश देते है। लेकिन शहर के सिर्फ चार गोठान में ही इनका निर्माण होता है। ऐसे में सभी होलिका दहन करने वालों को मांग के अनुरूप गोकाष्ठ नहीं मिल पाता है। इन बातों को ध्यान में रखते हुए ही कई समितियां पहले से ही एडवांस बुकिंग करा लेते हैं, ताकि अंतिम समय में उन्हें गोकाष्ठ आसानी से उपलब्ध हो सके।