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पीएम मोदी पश्चिम बंगाल का दौरा करेंगे, 1 और 2 मार्च को जाएंगे

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नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का पश्चिम बंगाल दौरा तय हो गया है। जानकारी के मुताबिक वे एक और दो मार्च को बंगाल का दौरा करेंगे। जानकारी के मुताबिक प्रधानमंत्री एक और दो मार्च को आराम बाग और कृष्णानगर का दौरा करेंगे। यह पश्चिम बंगाल के नदिया जिले में है। वहीं 6 मार्च को प्रधानमंत्री बारासात जाएंगे। बता दें कि पश्चिम बंगाल में संदेशखाली की घटना के बाद पीएम मोदी के बंगाल दौरे के कयास लगाए जा रहे थे।

लोकसभा चुनाव प्रचार का करेंगे शंखनाद

लेकिन अब जो खबर आई उससे साफ है कि प्रधानमंत्री का यह पश्चिम बंगाल दौरा एक तरह से लोकसभा चुनावों का शंखनाद होगा। माना जा रहा है कि प्रधानमंत्री मोदी एक बार फिर बंगाल में बीजेपी को ज्यादा से ज्यादा लोकसभा सीटों पर जीत दिलाने के पार्टी के अभियान की शुरुआत करेंगे।  वहीं आज प्रधानमंत्री नरेंद्र अपने लोकसभा क्षेत्र वाराणसी के दौरे पर हैं जहां वे कई कार्यक्रमों में शिरकत कर रहे हैं। अपने वाराणसी दौरे में वे विकास के लिए करीब 13 हजार करोड़ की परियोजनाओं की उद्घाटन कर रहे हैं।

परिवारवादी पार्टियां दलित आदिवासियों को आगे बढ़ने नहीं देना चाहती-पीएम मोदी

वाराणसी के सीरगोवर्धन में संत रविदास की 647वीं जयंती पर उनकी भव्य प्रतिमा का अनावरण करने के बाद अपने संबोधन में पीएम मोदी ने कहा कि परिवारवादी पार्टियां दलित आदिवासियों को आगे बढ़ने नहीं देना चाहती और दलित आदिवासियों का बड़े पदों पर बैठना इन्‍हें बर्दाश्त नहीं होता। उन्होंने संत रविदास का एक दोहा सुनाया और उसकी व्याख्या करते हुए कहा, ”ज्यादातर लोग जात-पात के फेर में उलझे रहते हैं, उलझाते रहते हैं, जात-पात का यही रोग मानवता का नुकसान करता है।”

हमें इन पार्टियों से सावधान रहना है-पीएम मोदी

उन्‍होंने किसी पार्टी का नाम लिए बगैर कहा कि परिवारवादी पार्टियों की एक और पहचान यह है कि वे अपने परिवार से बाहर किसी भी दलित आदिवासी को आगे बढ़ने नहीं देना चाहतीं और दलित आदिवासियों का बड़े पदों पर बैठना इन्‍हें बर्दाश्त नहीं होता। इस दौरान उन्होंने राष्‍ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के चुनाव की याद दिलाई। प्रधानमंत्री ने कहा, ‘‘आपको याद होगा जब वह राष्‍ट्रपति पद की उम्‍मीदवार बनीं तो किन- किन लोगों ने उनका विरोध किया था, किन किन लोगों ने सियासी लामबंदी की। ये सबकी सब परिवारवादी पार्टियां थी, जिन्‍हें चुनाव के समय दलित, आदिवासी अपना वोट बैंक नजर आने लगता है। हमें इन लोगों से इस तरह की सोच से सावधान रहना है।”