सागर – धातु या पाषाण को पूज्यता तब तक नहीं मिलती जब तक वह अपने मूल स्वरूप में रहती है लेकिन पाषाण और धातु को मूर्ति का स्वरूप देकर उसकी प्रतिष्ठा हो जाए तो वह पूज्य हो जाती है भावना का बहुत बड़ा प्रभाव होता है क्योंकि भाव से ही व्यक्ति पाषाण या धातु को परमात्मा बना देता है और लोग शीश झुकाते हैं यह बात मुनि श्री अजितसागर महाराज ने भाग्योदय तीर्थ में नवीन बेदी पर श्रीजी विराजमान के समय अपने उद्बोधन में कहीं उन्होंने कहा जब भी जीवन में आपको मंदिर के निर्माण और राई बराबर प्रतिमा विराजमान करने का अवसर प्राप्त हो यह सातिषय पुण्य का कारण होता है और मौका मिले तो भक्ति भाव के साथ प्रतिमा जी विराजमान करें मुनि श्री ने कहा चाहे दान करें या समय का दान दें वह भी एक योगदान होता है और यह भी एक जिनेंद्र भक्ति है मुनि श्री ने कहा आचार्य श्री जी ने सागर में जो सर्वतोभद्र विशाल जिनालय के निर्माण हेतु आप लोगों को संकल्प कराया है आपके पुण्य के कारण ही यह सागर की पवित्र भूमि पर बन रहा है गुरुदेव का सपना सागर वाले पूरा कर रहे हैं और सागर वालों पर भी गुरुदेव की कृपा सबसे ज्यादा बरसती है उन्होंने कहा कि कुंडलपुर का जिनालय 8.5 लाख घन फुट पत्थर से निर्मित हुआ है लेकिन सागर का जिनालय 11 लाख घन फुट पत्थर से बन रहा है यह विश्व का सबसे बड़ा जिनालय होगा।
मुनि सेवा समिति के सदस्य मुकेश जैन ढाना ने बताया कि सुबह शांतिविधान के बाद जाप और हवन हुआ उसके बाद श्री जी की प्रतिमाएं मूल बेदी के कमल पर और पूरी बेदी पर विराजमान हुई टडा में चातुर्मास संपन्न होने के बाद आर्यिका विलक्षणमति माताजी और आर्यिका वात्सल्यमती माताजी का भाग्योदय तीर्थ में आगमन हुआ जहां पर पूरे आर्यिका संघ ने मुनि संघ की भव्य अगवानी की। सभी आर्यिकाओ ने मुनि संघ की तीन परिक्रमाएं देकर नमोस्तु कर आशीर्वाद लिया