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जन्म, जरा, मरण रूपी रोग रतनत्रय रूपी ओषधि से दूर होता है – श्री वर्धमान सागर जी

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साबला (डूंगरपुर) – संसारी प्राणी संसार में राग द्वेष के कारण परिभ्रमण कर रहा है  ,इस कारण कर्मों का आश्रव होता है और कर्म का बंधन होता है ।यद्यपि आत्मा अजर अमर है जन्म लेना आसान है जन्म सभी का होता है किंतु जन्म का महत्व सार्थकता को समझना जरूरी है श्री राजमल जी ने  संसार में अनादि काल से जन्म जरा रूपी रोग को समझा ।आप सभी लोग रोग का इलाज चिकित्सक से कराते हैं । जन्म ,जरा ,मरण रूपी रोग की औषधि रत्नत्रय रूपी सम्यक दर्शन ,सम्यक ज्ञान, सम्यक चारित्र है। शारीरिक स्वास्थ्य के लिए आप डॉक्टर के पास जाते हैं किंतु आध्यात्मिक स्वास्थ्य में सुधार के लिए गुरु चरण में आना होगा। आज श्रावक और महिलाएं श्रावक धर्म भूल रहे हैं यह भूल रहे हैं कि हम किस कुल  में जन्मे हैं ।अरिहंत भगवान हमारे भगवान है। देव शास्त्र गुरु के समक्ष कैसे दर्शन करना चाहिए ,भक्ति करना चाहिए क्योंकि गुरुओं के आशीर्वाद से पुण्य का अर्जन होता है। गुरुओं देव स्थानों पर मर्यादित  कपड़े पहनना चाहिए।
जन्म सभी लेते हैं जन्म की खुशी मनाते हैं मृत्यु की कोई खुशी नहीं मनाता है ,जबकि संयमी व्यक्ति संलेखना धारण करता है और उनकी समाधि होने पर मृत्यु महोत्सव मनाते हैं। आचार्य श्री ने बताया कि सभी को मरण सुधारना जरूरी है घर से  आड़े होकर नहीं ,खड़े होकर निकलना चाहिए ।आचार्य श्री शिव सागर जी प्रवचन में कहते थे कि व्यक्ति की मृत्यु होने पर वह अर्थी के रूप में आड़ा होकर निकलता है, जबकि दीक्षा लेने वाला श्रावक खड़े-खड़े घर से बाहर निकलता है ।जीवन में संयम की साधना में  परिवार, धन के प्रति मोह, आसक्ति  मनुष्य जीवन में बाधक होती है इसलिए संलेखना को धारण कर आध्यात्मिक उन्नति करके जीवन की चरम सीमा को प्राप्त करना चाहिए जीवन की चरम सीमा अर्थात  संसार परिभ्रमण से छुटकारा पाना होता है। यह मंगल देशना आचार्य शिरोमणी वात्सल्य वारिघि पंचम पट्टाधीश आचार्य श्री वर्धमान सागर जी ने साबला  श्री अजित कीर्ति गिरी  परिसर में आयोजित  विशाल धर्म सभा में प्रगट की। राजेश पंचोलिया अनुसार आचार्य श्री ने उपदेश में बताया कि मध्यप्रदेश आष्टा नगर समीप ग्राम भोरा में सन 1926 में जन्मे श्री राजमल जी ने संसार के वास्तविक रोगों  को दूरदर्शिता से परख कर  सन 1944  मात्र 18 वर्ष की उम्र में आचार्य श्री वीर सागर जी के संघ में शामिल हुए। अगले 2 वर्षो में 7 प्रतिमा के नियम धारण किए। 35 वर्ष की उम्र में आपने सीकर में आचार्य श्री शिव सागर जी से मुनि दीक्षा लेकर मानव जीवन सार्थक किया। आचार्य श्री ने बताया कि आपको स्वाध्याय में बहुत ही ज्यादा रुचि रही। आपने अनेक ग्रंथो के साथ संस्कृत के 4000 से  श्लोकों की सर्वोपयोगी श्लोक संग्रह अनुपम रचना की जिसका सभी साधु और श्रावक अध्ययन करते हैं। प्रथमाचार्य चारित्र चक्रवती आचार्य श्री शांति सागर जी की परंपरा के तृतीय पट्टाधीश आचार्य श्री धर्म सागर जी की समाधि के बाद आप  परंपरा के चतुर्थ  पट्टाधीश 7 जून 1987 को मनोनीत हुए।
29 वर्ष के संयमी जीवन में आपने  अनेक दीक्षा दी। जिनमे वर्तमान में 4 शिष्यों में  2 शिष्य मुनि श्री चिन्मय सागर जी और आर्यिका श्री चेत्य मती माताजी संघ के साथ साबला उपस्थित है आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज ने समाधिस्थ   आचार्य श्री अजित  सागर जी  के जीवन के  अनेक  संस्मरण भाव विभोर होकर सुनाएं । संहिता सूरी पंडित हँसमुख जी शास्त्री अनुसार आचार्य श्री अजित सागर जी ने समाधि के पूर्व बसंत पंचमी 31 जनवरी 1990 को  मुनि श्री वर्धमान  सागर जी को परंपरा का पंचम पट्टाधीश का लिखित आदेश संघ और समाज को दिया आचार्य श्री अजित सागर  जी की समाधि  वैशाख शुक्ला पूर्णिमा सन 1990 को साबला में हुई।
आचार्य श्री वर्धमान सागर जी को 24 जून 1990 को आचार्य पद पर विभूषित किया गया प्रचार संयोजक बहादुर मल जैन अनुसार आचार्य श्री अजित  सागर जी की समाधि की इस पुण्य स्मृति स्वरूप   साबला  में श्री दिगंबर जैन अजित कीर्ति गिरी ट्रस्ट द्वारा आचार्य श्री अजित सागर जी महाराज जिन बिम्ब प्राण प्रतिष्ठा एवम् भव्य स्मारक प्रतिष्ठा का  3 दिवसीय कार्यक्रम आयोजित किया गया है ।प्रातः श्री जी के पंचामृत अभिषेक के बाद महा मंडल की पूजन हुई  आचार्य  श्री के प्रवचन एवम् संघ की आहार चर्या , सामायिक के बाद दोपहर को विमान शुद्धि जुलूस , बेदी संस्कार, वास्तु पूजन एवम् हवन पुण्यार्जक सोधर्म इंद्र बसंतलाल सराफ , कुबेर सुमति लाल, पंकज बेड़ा यज्ञ नायक , तथा ईशान इंद्र महावीर सेठ एवम् अन्य इंद्र  परिवार द्वारा की गई। इस अवसर पर आचार्य श्री अजित सागर  जी की गृहस्थ अवस्था के नगर से सैकड़ो परिजन एवम् समाज जन पधारे। साबला समाज ने उनका भी स्वागत अभिनंदन किया। इंदौर से पंडित श्री सुरेश जी मरोरा एवम् राजस्थान के अनेक नगरों से  भक्तो ने उपस्थित होकर भक्ति प्रदर्शित की।8 दिसंबर को अभिषेक पूजन आचार्य श्री के प्रवचन के बाद  विश्व शांति महायज्ञ पूर्णाहुति, रथ प्रवर्तन, पश्चात  आचार्य श्री अजित सागर जी की  प्रतिमा विराजित की जावेगी