- उत्तराध्ययन श्रुतदेव आराधना के 15वें दिवस सत्तावीसइमं अज्झयणं खलुकिज्जं का पाठ
रायपुर – उपाध्याय प्रवर प्रवीण ऋषि ने कहा कि व्यक्ति जिंदगी में क्यों सफल नहीं होता है? जैसा उसका इरादा, उसकी सोच होती है, वैसा क्यों नहीं होता है? इसका एक बहुत छोटा सा कारण है एक्सक्यूज़ या बहाना। जिस व्यक्ति के पास बहाना होता है वह जीवन में केवल दुःखों को ही जन्म देता है। अनुत्तरदेशन में प्रभु महावीर बहाना बनाने वाले के लिए एक्सट्रीम शब्द का उपयोग करते हैं। प्रभु महावीर कहते हैं कि बहाने देने वाले गली के गधे हैं। दो प्रकार के गधे होते हैं, एक धोबी का, कुम्हार का और एक गली का। वैसे देखा जाए तो गधा गधा ही है, किसी को मालिक की सुरक्षा मिलती है। लेकिन गली का गधा, उसके पास कोई सुरक्षा नहीं होती है। उपाध्याय प्रवर ने कहा कि कुछ बहाने अहंकार से पैदा होते हैं, कुछ क्रोध से, कुछ कपट से, कुछ लोभ से पैदा होते हैं। कुछ हमारे अनादर से पैदा होते हैं। और ऐसे बहाने देने वाले लोग जब किसी समर्थ आचार्य से मिलते हैं, तो उनकी क्या स्थिति होती है? आप सोच भी नहीं सकते। उक्ताशय की जानकारी रायपुर श्रमण संघ के अध्यक्ष ललित पटवा ने दी। उत्तराध्ययन श्रुतदेव आराधना के 15वें दिवस, मंगलवार को आज के लाभार्थी परिवार गौतमचंद उत्तमचंद अशलेश चंद्रप्रकाश गोलछा परिवार, मानकचंद राजेशचंद रजत सुराना परिवार, श्रीमती कुसुम धनराज बेगानी परिवार एवं श्रीमती कांतादेवी-निर्मलचंद वंदिता-नितिन कोठारी परिवार ने लालगंगा पटवा भवन पधारने वाले श्रावकों का तिलक लगाकर स्वागत किया। धर्मसभा को संबोधित करते हुए उपाध्याय प्रवर प्रवीण ऋषि ने कहा कि हम देख सकते हैं स्वयं के जीवन को, कि कब कब हम फेल हुए। हम फेल इसलिए नहीं हुए कि सफलता हमारे भाग्य में नहीं थी। हम सफल इसलिए नहीं हुए कि हम कर नहीं सकते थे। हम फेल इसलिए नहीं हुए कि समय अनुकूल नहीं था। हम फेल इसलिए हुए कि हमने बहाने तैयार रखे। और ये बहाने न केवल स्वयं को बल्कि संघ, समाज और परिवार को भी बर्बाद करते हैं। जहां एक्सक्यूज़ आ गया, वहां विनाश का रास्ता खुल गया। बहाना नहीं बनाएंगे तो शत प्रतिशत सफलता प्राप्त होगी। उत्तराध्ययन सूत्र का एक ऐसा अध्याय जिसे यदि हम अपने जीवन में साकार कर लें तो अपने गुरु को परेशान करने का दुर्भाग्य और पाप हमसे नहीं होगा। जिंदगी में सबसे बड़ा पाप अपने उपकारी को, श्रद्धेय को, अपने माता-पिता को परेशान करना है। परमात्मा कहते हैं कि किसी बहानेबाज के साथ रहने से अच्छा है कि जीवन में अकेले चलना। उनके साथ रहने का मतलब आप ने उनके बहानों को स्वीकार कर संरक्षण दे दिया है। बहनेबाजों के साथ रहने का पाप कभी नहीं करना चाहिए। अपने जीवन में अपने जहां जहां बहाना दिया है, उसे स्वीकार करें और प्रभु महावीर के चरणों में प्रणाम करते हुए एक संकल्प लें कि मैं अपनी आत्म-प्रतिबद्धता में कोई बहाना नहीं दूँगा। कारण हो सकता है, लेकिन बहाना नहीं।
उत्तराध्ययन सूत्र के सत्तावीसइमं अज्झयणं खलुकिज्जं का मूल समझाते हुए उपाध्याय प्रवर ने कहा कि अगर बैलगाड़ी के बैल चालक को सहयोग करें तो गाड़ी आराम से निकल जाती है। प्रभु फरमाते हैं कि जैसे संसार के जंगल को पार करने के लिए इस धर्मरथ को जोड़े हुए हैं शिष्य, अनुयायी और गाड़ी को चलाने वाला है गुरु। यदि बैल कपट कर के नीचे गिर जाए, गुस्से में उछलने लग जाए, गलत रास्ते पर चलने लग जाए, तो रास्ता भी पार नहीं होगा और गाड़ी भी टूट जायेगी। इसी तरह अगर धर्मरथ से जुड़े शिष्य और अनुयायी बहाने करने लगेंगे तो यह धर्मरथ ही टूट जाएगा । उपाध्याय प्रवर ने कहा कि निर्ग्रन्थ श्रमण के लिए मोक्ष साध्य है-प्राप्य है; उस प्राप्य की प्राप्ति के लिए सम्यक्ज्ञान-दर्शनचारित्र-तप समन्वित रूप से मार्ग-उपाय है और साध्य की ओर गति साधक का पुरुषार्थ- पराक्रम है। साध्य की प्राप्ति के लिए साधनों का आलम्बन अनिवार्य है । साध्य अथवा प्राप्तव्य को जान लिया जाये किन्तु उसकी प्राप्ति के साधनों का अवलम्बन न लिया जाय तो साध्य की प्राप्ति नहीं हो सकती। साधन भी उपलब्ध हो जायँ फिर भी साध्य की ओर साधक गति न करे, परिश्रम व पुरुषार्थ न करे तो भी उसके लिए साध्य की प्राप्ति असम्भव ही है। इसलिए मोक्ष प्राप्ति हेतु साधन और उन साधनों में पराक्रम आवश्यक है। मोक्ष-प्राप्ति के चार साधन हैं – ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप । इनमें प्रथम साधन ज्ञान – सम्यक्ज्ञान है। ज्ञान से ही आत्मा जिनकथित तत्त्वों – पुद्गल कर्म तथा आत्मा को जानता है, छह द्रव्यों के स्वरूप से परिचित होता है, उन्हें समझता है। दर्शन से ज्ञान द्वारा जाने हुए नौ तत्त्वों जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आस्रव, संवर, बन्ध, निर्जरा, मोक्ष इन पर श्रद्धा-अटूट और निश्चल विश्वास करता है। श्रद्धा की सहयोगिनी दश प्रकार की रुचियाँ हैं, जो सम्यक्त्व – सम्यग्दर्शन को पुष्ट करती हैं । आज के लाभार्थी परिवार : रायपुर श्रमण संघ के अध्यक्ष ललित पटवा ने बताया कि रायपुर की धन्य धरा पर 13 नवंबर तक लालगंगा पटवा भवन में उत्तराध्ययन श्रुतदेव आराधना होगी जिसमे भगवान महावीर के अंतिम वचनों का पाठ होगा। यह आराधना प्रातः 7.30 से 9.30 बजे तक चलेगी। उन्होंने सकल जैन समाज को इस आराधना में शामिल होने का आग्रह किया है। उन्होंने बताया कि 8 नवंबर के लाभार्थी परिवार हैं श्रीमती किरण देवी निर्मल कोठारी परिवार बालाघाट। सहयोगी लाभार्थी परिवार हैं श्रीमती चंद्रकांता-मोतीलाल ओसवाल परिवार, ज्ञान-प्रभा श्रीश्रीमाल परिवार तथा नवरतन निखिल नितिन सुराना परिवार। श्रीमद उत्तराध्ययन श्रुतदेव आराधना के लाभार्थी बनने के लिए आप रायपुर श्रमण संघ के अध्यक्ष ललित पटवा से संपर्क कर सकते हैं।