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सत्य तभी भगवान होता है, जब उसके साथ मैत्री का संबंध होता है : प्रवीण ऋषि

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श्रीमद उत्तराध्ययन श्रुतदेव आराधना के चौथे दिवस उपाध्याय प्रवर ने बताया कैसे जीना है..

आज के लाभार्थी : श्रीमती चंदा मुकेशजी चोरड़िया परिवार श्री उत्तमचंदजी सौरभ कुमारजी नाहटा परिवार खुज्जी

रायपुर – कैसे व्यक्ति जीवन में दुखी होता है, दुःख का कारण क्या है? कैसे कोई व्यक्ति सुखी होता है? क्या सोच होती है सुखी व्यक्ति की? शांति के सागर का जीवन जीने वाले व्यक्ति का दृष्टिकोण क्या होता है? जिन्होंने जीवन की समाधी को उपलब्ध कर लिया, उनका मरण भी समाधी में होता है। जिन्होंने जीवन में समाधी का अनुभव नहीं लिया, उन्हें मरण में शांति की अनुभूति नहीं होती। ऐसा परम समाधी का जीवन कैसे जिया जा सकता है? प्रभु महावीर ने इन जिज्ञासाओं का समाधान देते हुए जो वरदान बरसाए, उन वरदानों को सुधर्म स्वामी ने छट्ठमज्झयणं : खुड्डागनियंठिज्ज में शब्दों में पिरोकर रखा है। उक्त बातें प्रवीण ऋषि ने श्रुतदेव आराधना के चौथे दिवस धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहीं। उक्ताशय की जानकारी रायपुर श्रमण संघ के अध्यक्ष ललित पटवा ने दी। उपाध्याय प्रवर ने छट्ठमज्झयणं : खुड्डागनियंठिज्ज के दोहों का अर्थ समझाते हुए कहा कि पहला ही शब्द क्षुल्लक निर्ग्रन्थ बोध करता है। दिगंबर परंपरा में मुनि दीक्षा से पहले क्षुल्लकदीक्षा होती है। उस क्षुल्लक की क्या आचार संहिता होती है, कैसे जीवन जीना चाहिए? ‘पक्खी पत्तं समादाय’ पक्षी की तरफ देखें, इन सभी का एक काम होता है, ये भोर में उड़ने के पहले अपने पंखों को जोर से फड़फड़ाते हैं। जो कमजोर पंख रहते हैं, वे झड़ जाते हैं। ऐसा इसलिए कि जो पंख उड़ने के काम नहीं आ सकते हैं, उन्हें वे निकाल देते हैं। कैसे अपने मन को अपने जीवन को व्यवस्थित करना है, हमें यह सूत्र सिखाता है। बाज जब बूढ़ा हो जाता है तो वह अपने पंखों को झड़ाकर नहीं निकाल पाता है। वह उड़कर ऊँची चोटी पर बैठ जाता है और चोंच से बेकार पंखों को निकल फेंकता है। जो उड़ने के लिए काम नहीं आते हैं, उन्हें निकालना ही पड़ता है। पंछी तभी उड़ पाता है जब वह बेकार पंखों से मुक्त हो जाता है। 

उन्होंने कहा कि जीवन में यदि पंछी की तरह उड़ना है तो प्रभु कहते हैं कि स्वयं को जांचो, परखो और देखो की तुम्हारे पास ऐसा क्या है जो बोझ बन रहा है। जो उड़ने के काम नहीं आ रहा है, चलने के काम नहीं आ रहा है, जीने के काम नहीं आ रहा है, उस बोझ से मुक्त हो जाओ। जो बातें साधना में काम नहीं आती हैं, उन्हें अपने मन से निकाल दो। ग्रहण करो, लेकिन संग्रह मत करो। जैसे पक्षी बेकार पंखों को झाड़ देता है। इस अध्याय का यही सूत्र है कि मैं अपने मन में उन धारणाओं को नहीं रखूंगा जो मुझे जीवन का आनंद नहीं देते हैं।प्रभु कहते हैं कि सत्य की खोज कर, लेकिन खोज करते समय यदि मैत्री का भाव होगा तो शास्त्र का जन्म होगा। यदि मैत्री का भाव नहीं होगा तो सत्य की खोज में से विनाशकारी शस्त्र का जन्म होगा। इसलिए प्रभु ने सत्य की खोज करने के लिए एक संकेत दिया कि सत्य की खोज करते समय अंदर में मैत्री की भावना होनी चाहिए। इस भावना के साथ जब सत्य को खोजते हैं तब समाधी, सहयोग प्राप्त होती है। बिना मैत्री के सत्य को खोजते हैं तो संघर्ष होता है, विनाश का जन्म होता है। सत्य तभी भगवान होता है, जब उसके साथ मैत्री का संबंध होता है। बिना मैत्री के जो सत्य खोजते हैं, वे परमाणु बम को जन्म देते हैं। और मैत्री के साथ जो सत्य की खोज करते हैं, वे जीवन की कल्याणकारी खोजों को उपलब्ध हो जाते हैं। 

एमट्ठ सपेहाए, पासे समियदंसणे । 

छिन्द गेहिं सिणेहं च, न कंखे पुव्वसंथवं

प्रभु कहते हैं कि जिसका तुमने कल अनुभव कर लिए उसकी आज इच्छा मत कर, आगे बढ़। जो ज्ञात है उसमे नहीं अज्ञात में चला जा। जो जाना है उसमे समाधान मत करो, जो नहीं जाना है उसके तरफ कदम बढ़ाओ। जो पूर्व परिचय की बार बार तमन्न करता है वो पिसे हुए आटे को ही पीसता है। चाहे जैसे धन हो, तुम्हे दुःख से मुक्त नहीं कर सकता। 

अज्झत्थं सव्वओ सव्वं, दिस्स पाणे पियायए।

न हणे पाणिणो पाणे, भयवेराओ उवरए

भय और वैर की जोड़ी है, मन में डर आता है तो हम किसी को दुश्मन बनाते है। जब दुश्मनी मन में होती है तब किसी से डर लगता है। डर है तो दुश्मनी है और दुश्मनी है तो डर है। इसलिए प्रभु कहते हैं कि क्षमापन के कारण व्यक्ति भयमुक्त हो जाता है। अगर सुख-शांति पाना हो तो भय और दुश्मनी से परे निकालो। दोस्तों के बीच में कभी भय की अनुभूति नहीं होती है। 

आयाणं नरयं दिस्स नायएज्ज तणामवि। दोगुंछी अप्पणो पाए, दिन्नं भुंजेज्ज भोयणं। 

बिना दी हुई वस्तु लेना नरक-गमन का कारण है, दिया हुआ लेना ही मोक्ष है। एक छोटा सा तिनका भी बिना किसी के दिए मत लेना। बिना दिए नहीं लेते हो तो सामने वाले को दाता बनाते हो, और स्वयं भी सुख की अनुभूति करते हो। रायपुर श्रमण संघ के अध्यक्ष ललित पटवा ने बताया कि रायपुर की धन्य धरा पर 13 नवंबर तक लालगंगा पटवा भवन में उत्तराध्ययन श्रुतदेव आराधना होगी जिसमे भगवान महावीर के अंतिम वचनों का पाठ होगा। यह आराधना प्रातः 7.30 से 9.30 बजे तक चलेगी। उन्होंने सकल जैन समाज को इस आराधना में शामिल होने का आग्रह किया है। उन्होंने बताया कि आज के लाभार्थी परिवार थे : श्री भीखमचंदजी प्रदीपजी दिलीपजी अभिषेकजी गोलेच्छा परिवार। 28 अक्टूबर के लाभार्थी परिवार हैं श्रीमती चंदा मुकेशजी चोरड़िया परिवार श्री उत्तमचंदजी सौरभ कुमारजी नाहटा परिवार खुज्जी। श्रीमद उत्तराध्ययन श्रुतदेव आराधना के लाभार्थी बनने के लिए आप रायपुर श्रमण संघ के अध्यक्ष ललित पटवा से संपर्क कर सकते हैं।