उदयपुर – आचार्य शिरोमणी श्री वर्धमान सागर जी बीसा हूमड़ भवन में विराजित हैं सकल जैन समाज उदयपुर की धर्म सभा में आचार्य श्री ने प्रवचन में बताया कि रत्नत्रय सम्यक दर्शन ,सम्यक ज्ञान ,सम्यक चारित्र और अहिंसा दया धर्म धारण करना होगा, जिस प्रकार कीमती रतन जवाहरात की सुरक्षा तिजोरी में करते हैं, इसी प्रकार मनुष्य जीवन भी बहुत कठिनाई से मिलता है इसमें सम्यक दर्शन कीमती रत्न है ,अगर सम्यक दर्शन प्राप्त हो गया तो सम्यक ज्ञान और सम्यक चारित्र भी धर्म पुरुषार्थ करने से प्राप्त होगा ।इसलिए रतन त्रय धर्म को हृदय रूपी तिजोरी में मनन आराधना करें, धर्मात्मा की आराधना से जीवन को सुखी बनाकर मनुष्य जीवन को सार्थक करने का प्रयास करें ।यह प्रवचन उदयपुर में आचार्य शिरोमणि श्री वर्धमान सागर जी ने धर्म सभा में प्रकट किया ।आचार्य श्री ने प्रवचन में आगे बताया कि विगत दिनों 10 लक्षण महापर्व में आप सभी ने धर्म की आराधना अर्चना की। सभी जानते हैं कि परम धर्म अरिहंत भगवान से प्राप्त हुआ है अरिहंत भगवान ने अपने जीवन में धर्म को धारण कर सुखी बनाया ।धर्म आत्मा को सुखी बनाता है ।जगत के सभी जितने भी प्राणी है , अनंतानंत प्राणी है जो एक इंद्रिय से पांच इंद्रीय तक सभी चारो गतियों मनुष्य , तिर्यच नरक ,देव गति में होते हैं ,जगत के सभी प्राणी जीवन को सुरक्षित रखने की भावना रखते हैं जीवन तभी सुरक्षित रहेगा जब देव शास्त्र गुरु का सानिध्य पाकर जीवन का उद्धार भला करेंगे। देव शास्त्र गुरु की शरण प्राप्त करने के लिए हृदय में श्रद्धा होना जरूरी है ।भगवान का यही उपदेश है कि सभी धर्म में हिंसा की बात नहीं कही है, दया की बात कही है इसलिए पहले स्वयं पर दया करें परिवार पर दया करें। मेरी भावना में भी यही पंक्ति है सुखी रहे सब जीव जगत में, यह चिंतन अरिहंत भगवान करते हैं क्योंकि वह जगत के सभी प्राणियों को सुखी देखना चाहते हैं
जिस प्रकार भौतिक इंद्रीय सुखों की प्राप्ति के लिए आप मानसिक और शारीरिक श्रम करने में थकते नहीं है ,इच्छाओं की पूर्ति के लिए भी श्रम करते हैं इस प्रकार धर्म के पालन के लिए भी शारीरिक और मानसिक श्रम तप त्याग संयम से किया जाता है आचार्य श्री ने प्रवचन में बताया कि डॉक्टर लोगों का मत है कि शरीर का न्यूनतम तापमान 37 डिग्री होना चाहिए किंतु आप लोग पंखे कूलर एसी के उपयोग में शरीर की क्षमता कमजोर कर रहे हैं यहां तक की अब मंदिरों में भी आपने एसी लगवा लिए हैं। इंद्रीय विषय के सुख आत्मा को सुखी नहीं करते हैं ,क्योंकि इसमें दया धर्म का पालन नहीं हो रहा है। तत्वार्थ सूत्र में भी मोक्ष मार्ग के लिए रत्नत्रय सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान ,सम्यक चारित्र माध्यम है । संसारी प्राणी यश और कीर्ति चाहता है यश और कीर्ति अहिंसा और दया धर्म के पालन करने से प्राप्त होती है ।एक कथा के माध्यम से बताया कि एक मुनिराज दया और सेवा वेय्या वृति करने में प्रसिद्ध थे तो उनकी यश कीर्ति देव लोक में भी प्रशंसा हुई। एक देव उनकी परीक्षा करने के लिए आया और उसे वांछित सामग्री मुनिराज ने रिद्धि विद्या से उपलब्ध कराई ।तो वह देव भी मुनिराज की पूजा आराधना करके प्रशंसा करके वापस लौट गया मनुष्य जीवन भी बहुमूल्य रत्न है इसलिए देव शास्त्र गुरु के सानिध्य में रत्न त्रय धर्म सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान ,सम्यक चारित्र प्राप्त कर हृदय रूपी तिजोरी में मनन चिंतन कर जीवन को सुखी बनाकर मनुष्य जीवन को सार्थक करने का प्रयास करें।शांतिलाल वेलावत पारस चितोड़ा सुरेश पद्मावत अनुसार आचार्य श्री के प्रवचन के पूर्व क्षुल्लक श्री महोदय सागर जी के प्रवचन हुए।